आम जन जीवन से से जुड़ा व्यंग्य संग्रह ज़ीरो बटा सन्नाटा
संगीता , दिल्ली विश्वविद्यालय
सामाजिक,वैज्ञानिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, प्रेम – परिहास आदि विषयों पर किताबें लिखी जाती रही हैं | परन्तु इन सभी विषयों को एक साथ पाठकों के सामने बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है – तेज प्रताप नारायण जी ने |
तेज प्रताप नारायण जी द्वारा लिखित पुस्तक ‘ज़ीरो बटा सन्नाटा’ एक व्यंग्य संग्रह है । जिसका मुख्य विषय आम जन-जीवन से सम्बन्धित है| यह व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन की स्तिथियों को उजागर करता है । ‘साहित्य संचय’ द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में सामान्य व्यक्ति के जीवन को प्रभावित करने वाले कारकों को प्रस्तुत किया गया हैं, जिसमें राजनीति, प्रेम, पैसा आदि के प्रभाव को दिखाया गया है।
इस व्यंग्य संग्रह में बहु भाषिक शब्दों का प्रयोग किया गया है जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, भोजपुरी आदि के शब्द प्रमुख हैं | संग्रह की भाषा आम बोलचाल की होने के कारण पाठकों को अत्यधिक आकर्षित करती है । इसमें विषयों को प्रस्तुत करने की शैली इतनी रोचक एवम् प्रभावशाली है कि पाठक पुस्तक पढ़ते हुए एक बहाव के साथ बहता चला जाता है |
पुस्तक में विषय को प्रस्तुत करने के लिए उप-शीर्षकों का प्रयोग किया गया है जो किसी फिल्म के गाने आम भाषा, मुहावरा, लोकोक्ति आदि से सम्बद्ध होने के कारण पाठकों को जोड़े रखता है।
पुस्तक का शीर्षक ‘0/ सन्नाटा’ प्रतीक है जो विकास एवं योजनाओं की प्रगति आदि के परिणाम को दिखाता है, जो आम जन के लिए ‘ज़ीरो बटा सन्नाटा’ है।
पुस्तक में राजनीति से सम्बंधित अनेक प्रसंगों को प्रस्तुत किया गया है, जिनमें समाज पर राजनीतिक व्यवस्था के प्रभाव को अंकित किया गया है। समाज में आम लोगों के मौलिक अधिकार व मौलिक कर्तव्यों के प्रश्न को भी सामने लाया गया है| जिसमें हर व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों के प्रति तो जागरूक होता है परन्तु मौलिक कर्तव्यों को अनदेखा करता हुआ आगे बढ़ जाता है। जो व्यक्ति व समाज दोनों के विकास में बाधक सिद्ध होते हैं |
किसी व्यक्ति के लिए रोजगार का होना अत्यंत महत्वपूर्ण है । बेरोजगारी की स्थिति व्यक्ति में अवसाद उतपन्न करती है । रोजगार के अवसर एवं ज्ञान – विज्ञान के प्रचार – प्रसार का प्रभाव सीधा भाषा से सम्बन्धित होता है । इसी तरह के विषयों को रेखांकित करते हुए भारत में हिंदी की दोयम स्तिथि को प्रस्तुत किया गया है । जहाँ लोग हिंदी भाषी होते हुए भी हिंदी को उतना महत्व नहीं देते जितना अंग्रेजी को दिया जाता है । कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा तो मनाया जाता है, परन्तु इसके अलावा हिंदी के प्रचार- प्रसार से सम्बन्धित कोई गतिविधि देखने को नहीं मिलती। हिंदी , अंग्रेजी, जाति आदि विषयों के मार्मिक पक्ष को पात्रों के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है ।
प्रेम के बदलते स्वरूप को भी पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। पहले का प्रेम जहाँ “जब नयन मिले तो प्यार हुआ, तीर जिगर से प्यार हुआ ” वाली स्तिथि आधुनिक समाज में “नज़र के सामने जिगर से दूर” में बदलने वाली मानसिकता में बदलने लगी है । जहाँ मनुष्य क्षणवादी होता जा रहा है । वह प्रेम के आत्मिक स्वरूप से अधिक लौकिक स्वरूप को महत्व देने लगा है ।
आधुनिक समाज में सभ्य दिखने के लिए माता पिता बच्चों को संस्कारित करना चाहते हैं । परन्तु बच्चे को सभ्य बनाते हुए वे यह भूल जाते है कि उनका बच्चा उनका मोहरा नहीं है। वे अपने अनुसार उनकी दिनचर्या को निर्धारित करने लगते हैं जिसका सीधा प्रभाव उनके बचपने पड़ने लगता है। वह सामान्य न होकर मोहरा फिल्म के गीत “सुबह से लेकर शाम तक, शाम से लेकर रात तक, मुझे प्यार करो” को चरितार्थ करने लगती हैं। जिसमें माता – पिता अपने छोटे बच्चे पर अपनी महत्वकांक्षाओं का बोझ डालने लगते है । वे अपने जीवन की असफलताओं को अपने बच्चे के माध्यम से पूरा करने के प्रयास में लगे रहते हैं ।
वैज्ञानिक दुनिया में हमें यंत्रों का प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। लेकिन यंत्रों को संचालित करते – करते व्यक्ति स्वयं ही यांत्रिक होने लगता है । सोशल साइट व्यक्ति को समाज से बिलकुल काटने लगती है । जिसका प्रभाव न केवल मनुष्य के सामाजिक जीवन पर पड़ता है, बल्कि उसका पारिवारिक जीवन भी सामान्य नहीं हो पाता । पुस्तक में मोबइलमुखी शीर्षक के माध्यम से आम जन की इसी स्तिथि को दिखाया गया है। जिसमें मोबाइलमुखी होने के कारण पारिवारिक विघटन की मन:स्थिति उत्पन्न होती है। परन्तु लोग तब भी अपने मोबाइल की फेक आईडी वाले व्यक्ति को ही महत्व देने लगते है । जिसका परिणाम सदैव नकारात्मकता की ओर जाता है ।