एक था डॉक्टर, एक था संत
तेज प्रताप नारायण
एक था डॉक्टर एक था संत
एक करना चाहता था
जाति व्यवस्था का हो जाए अंत
एक कहता रहा
जाति है सामाजिक व्यवस्था का ज़रूरी अंग
संत कहते रहे
समाज बदलेगा धीरे धीरे
डॉक्टर चाहते थे
सामाजिक बदलाव तुरंत
संत
परंपरागत ढांचे में ही सुधार चाहते थे
डॉक्टर
इस ढांचे को करना चाहते थे भंग
संत का कहना था
जाति ज़रूरी है धर्म के लिए
डॉक्टर मानते थे
जाति व्यवस्था बनाती है
विकलांग,शिथिल और पंगु
एक था जो वंचितों के हित की खातिर लड़ा
दूसरा करता रहा
कभी सत्याग्रह
और कभी आमरण अनशन
एक था सामाजिक समानता का समर्थक
दूसरा बना रहा आध्यात्मिक सामंत
संत की अच्छी राजनीतिक समझ थी
डॉक्टर था
प्रज्ञावान और बुद्धिमंत
एक लड़ता रहा
बिना थके बिना हारे
वंचितों की लड़ाई
दूसरा करता रहा
सामाजिक लड़ाई की धार को मंद
एक राजनैतिक पैतरेबाज नहीं था
और था निष्पाप कलंक
एक करता बात बात पर
कोई न कोई राजनीतिक स्टंट
एक ने की ज़्यादा लीपापोती
एक लड़ता रहा वंचितों की जंग
एक इलाज करना चाहता था
भारत के रोगग्रस्त पुरुष और महिलाओं का इलाज
दूसरा रोग को मानता रहा
शरीर का अनिवार्य अंग
दोनो की अपनी थी खासियत
दोनो के थे अपने ढंग
एक था डॉक्टर ,एक था संत
दोनों के थे अपने रंग ।
2 Comments
डाक्टर और संत पर बहुत सटीक कविता
Thank you very much