एक मित्र के नाम…

…संवेदनशील, सहृदय एवं युवा कवि सुशील द्विवेदी नयी पीढ़ी के उभरते हुए आलोचक और कवि हैं । डायरी का पीला वरक इनकी कविताओं का संग्रह है अपनी कविताओं में सुशील कई रूपों में सामने आते हैं कवि, प्रेमी, दार्शनिक, संवेदनशील पुरुष, प्रकृति प्रेमी, सर्जक आदि । लेकिन इन सब में जो रूप सबसे अधिक उज्ज्वल है वो है प्रेम । प्रेम सुशील की कविताओं में बीज शब्द है । प्रेम कवि के लिए एक ऐसी चाभी है जिससे वो हर ताला खोलना चाहता है, कविता गाँव की हो या शहर की प्रेम हर स्थान पर पसरा बैठा है….
मै तुमसे प्यार करता हूँ/ ये दुनिया की सबसे छोटी कविता है/ और/ सबसे बड़ा महाकाव्य
सुशील समय के कवि हैं, वे क्षण क्षण को जीना चाहते हैं । गाँव की सौंधी महक से सुशील की कवितायेँ लबरेज़ हैं, इन कविताओं में महुए का रस है जो पाठक को धीरे धीरे अपनी आग़ोश में लेता है……
मेरा हृदय/ गाँव का एक पुराना तालाब है /और तुम उस तालाब की कोई सांवली मछली /जिसे कोई बदचलन मछुआरा मार ले गया है ।/अब केवल तुम्हारे थिरकने की पुरानी गंध बची है /जिसे मै महसूस करता हूँ
सांझ का दिया कविता अनेक बिम्बों का निर्माण करती है । कवि है कि स्मृतियों से लौटना नहीं चाहता और अपनी कविताओं के माध्यम से पाठक को भी लौटने नहीं देता । सुशील की कवितायेँ गहरे अनुभव की गाथाएं हैं । गोठिल चइला कविता का टिकरा तालाब, आंसुओं के ताप पर शब्दों का औटना, गोरुओं के खुरों की चुभन ये सभी प्रयोग कवि अनुभूतियों के संसार की नयी परिभाषा गढ़ते हैं । नारवा कविता के बहाने कवि ने गाँव को सजीव किया है । यहाँ सुशील का आदर्शवादी प्रेमी का रूप सामने आता है जो अपनी प्रेमिका के लिए तालाब से मिट्टी खोदना चाहता है, चूल्हा बनाना चाहता है । कवि की लोक चेतना बहुत गहरी है । लोक के साथ सुशील का सम्बन्ध बहुत ही घनिष्ठ और आत्मीय है । गाँव के कटुतम और दुखभरी अनुभवों से उनकी कविताएँ लिखी गयी हैं । कविताएँ छोटी-छोटी हैं किन्तु सारगर्भित हैं । अपने अर्थ को पूरी जीवन्तता के साथ प्रमाणित करती हैं । ओस कविता ऐसी ही कविता है……ओस पर सूरज के नहीं/सबसे पहले किसानों के पैर पड़ते हैं ।
किसी शहर स्थान का काव्यात्मक रूप में अंकन बताता है कि कवि उस स्थान से कितने गहरे तक जुड़ा है। उस स्थान का इतिहास, वर्तमान, संस्कृति, समाज स्वाभाविक रूप से कविता का अंग बनने लगता है । ऐसी ही कविता है शैलजा और जुलेना ।
आओ, शैलजा/ शैलपृष्ठों पर, लताओं, तरु पर/ आओ कि तुम्हारा सारंग तुम्हें पुकार रहा है…..
हर सांझ जुलेना छोड़ता है नया रंग/नई संस्कृति/ नया इतिहास/ नया स्वप्न/जो गहराती रात में विलुप्त होते जाते……
आभासी पीढ़ी के कविमन को वर्चुअल दुनिया से बाहर ही जीवन की सार्थकता नज़र आती है । वर्षों प्रतीक्षाओं के बाद / तुम्हारा साथ होना वर्चुअल से परे / जीव जगत की दुनिया में लौट आना है ।
सुशील की कविताएँ मृत्युबोध से उपजे दुःख और बेबसी की कविताएँ हैं । जिस समय की यह कविताएँ हैं वह कोरोना महामारी का था । उस समय सामान्य मनुष्य पर भी मृत्यु और उससे निसृत भय ही व्याप्त था। कवि तो वैसे ही संवेदनशील होता है उसमें यह अनुभूतियाँ गहरे तक पैठ जाती हैं और धीरे-धीरे रचना की शक्ल ले लेती हैं । मसान एक और मसान दो ऐसे ही मृत्युबोध से उपजी कविताएँ हैं, लेकिन कवि यहाँ भी अपने बीज शब्द को नहीं भूला है । मसान में प्रेम को याद रखता है । वीभत्स दृश्यों में भी श्रृंगार के दर्शन सुशील का विरोधभासी कविमन यह बताता है कि उनमें कविता को जीने की अपार संभावनाएं हैं ।
गाँव के दिनों को बहुत ही सूक्ष्म रूप में महसूस किया है यही कारण है कि गाँव के दिन बड़े बोझिल लगते हैं । अंतिम बूंद कविता मृत्यु से उपजे मौन चीत्कार की अभिव्यंजना है । प्रिय के लौट आने की आस कवि की अंतिम प्रतीक्षा बन गयी है….. तुम्हारे पायतान में बैठा / तुम्हें बचा लेने और खो देने के बीच / बोतल में बची अंतिम रक्त बूंद की तरह/ अटक गया हूँ । कवि की यह अटकन ऐसे दृश्यों का निर्माण करती है जो बेहद मार्मिक है । पायतान में बैठा और अपलक शून्य में निहारना कविता को दर्शन में बदल देता है । अधीरा सुशील के निरंतर अधीर होते जाने और प्रश्न पूछते जाने की कविता है । निःसंदेह इस युवा कवि में निरंतर कवि होते जाने की अपार संभावनाएं हैं…..
- ज़ैबी फरहा
शोधार्थी, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, दिल्ली