ओरिजीनल डार्विनियन फेमिनिस्ट सारा ब्लैफर हर्डी
रजनीश संतोष
कैलिफ़ोर्निया विश्वविद्यालय से सम्मानपूर्वक रिटायर हुईं प्राइमेटोलॉजिस्ट और मानवविज्ञानी प्रोफेसर सारा ब्लैफ़र हर्डी को महिलाओं के बारे में उनके क्रांतिकारी विचारों की वजह से ‘ओरिजिनल डर्विनियन फ़ेमिनिस्ट’ कहा जाता है। ‘Mother Nature’ और “Mothers and Others’ के साथ साथ अन्य लगभग आठ दस महत्वपूर्ण पुस्तकों को लिखने वाली हर्डी ने मानव और गैर-मानव दोनों तरह के प्राइमेट्स में ‘फ़ीमेल बिहैवियर’ के विकासवादी आधार की हमारी समझ को पूरी तरह से बदल दिया। प्रतिष्ठित ‘डिस्कवर’ पत्रिका ने 2002 में उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में दुनिया की 50 सबसे महत्वपूर्ण महिलाओं में से एक माना।
आज प्राइमेटोलॉजी में महिलाओं की बहुलता है लेकिन जब हर्डी ने सत्तर के दशक में अपना कैरियर शुरू किया तब यह आम स्वीकार्यता थी कि मानव-विकास का जो स्वरुप है वह मुख्यतः पुरुष-व्यवहार द्वारा प्रभावित है। यह माना जाता था कि नर ज्यादा से ज्यादा अपनी संतानें पैदा करने, और अपना प्रभुत्व जमाने के लिए ज्यादा से ज्यादा मादाओं को आकर्षित करने के दबाव में हमेशा रहा है, और जब वो शिकार करने जाता था तो उसे ज्यादा रचनात्मक और बुद्धिमान होने की आवश्यकता थी। जब पुरुष शोधकर्ता हमारे सबसे नजदीकी रिश्तेदारों प्राइमेट्स पर अपने शोधों के लिए जाते थे तो वे मुख्यतः नर प्राइमेट्स के आक्रामक रवैये,उनके प्रभुत्व और उनके शिकार करने पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखते थे, मादाओं को हमेशा नज़रअंदाज़ किया जाता रहा।
हर्डी का सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी शोध भारत के माउंट आबू में लंगूरों द्वारा अपने बच्चों को ही मार दिए जाने की घटना पर किया गया उनका अध्ययन है। 1968 की बात है, हारवर्ड विश्विद्यालय में ‘प्राइमेट बिहैवियर’ की स्नातक की कक्षा में जाने माने मानव विज्ञानी ‘इरविन डिवोर’ ने लंगूरों की बस्ती में जनसँख्या बढ़ने और नवजात बच्चों की हत्या के बीच संबंधों पर व्याख्यान दिया। तब हर्डी उसी कक्षा की स्टूडेंट थीं। आगे चलकर हर्डी ने इन्हीं प्रोफ़ेसर डिवोर और प्रोफ़ेसर ट्राइवर्स की देखरेख में अपनी पीएचडी पूरी की। हर्डी ने जब अपना शोध पूरा किया तो उन्होंने लंगूरों की बस्ती में नर लंगूरों द्वारा अपने ही नवजातों की हत्या के बारे में तब तक मानी जाने वाली सभी धारणाओं को ही बदल कर रख दिया।
हार्डी जब माउंट आबू पहुंचीं तो उन्होंने लंगूरों द्वारा अपने ही नवजातों की हत्या करने के पीछे के कारणों को करीब से परखना शुरू किया। अभी तक यह माना जा रहा था कि जनसँख्या नियंत्रित करने के लिए अपनी प्रजाति की भलाई के रूप में ऐसा किया जाता है। लेकिन हर्डी ने पाया कि यह बेतरतीब तरीके से या पागलपन में किया गया कार्य नहीं है, उन्होंने यह भी पाया कि सामान्यतः नर लंगूर अपने बच्चों के प्रति बहुत ही उदार और स्नेहपूर्ण व्यवहार करते हैं। लम्बे समय तक अध्ययन करने के बाद उन्होंने यह पैटर्न पाया कि जब कोई नया नर लंगूर बस्ती का मुखिया बनता है तो वह पिछले मुखिया से पैदा हुए सभी नवजातों को मार देता है। अब हर्डी को इसका कारण समझने में बहुत ज्यादा वक़्त नहीं लगा, उन्होंने पाया की वह ऐसा इसलिए करता है ताकि बच्चे न रहने की स्थिति में मादाएं उसके द्वारा बच्चे पैदा करें और उसका वंश आगे बढे। चूंकि सामान्यतः किसी नर लंगूर का शासन ढाई से तीन साल तक ही रहता है इसलिए वह इस बात का इंतज़ार नहीं कर सकता कि मादाएं पहले अपने नवजातों की परवरिश करें फिर बच्चे पैदा करने के लिए तैयार हों।
इस नयी खोज से वैज्ञानिक आश्चर्यचकित थे। उन्हें इस विचार पर भरोसा करना मुश्किल था कि कोई नर अपनी ही प्रजाति के स्वस्थ नवजातों की हत्या इसलिए कर सकता है ताकि उसका वंश आगे बढ़ सके। लेकिन 1977 में हर्डी ने जब अपनी पुस्तक The Langurs of Abu : Female and Male Strategies of Reproduction में इस व्यवहार के बारे में विस्तार से लिखा तब तक तकरीबन पचास और प्राइमेट्स की प्रजातियों में यह व्यवहार पाया जा चुका था।
असली आश्चर्यचकित करने वाला व्यवहार मादाओं का था। मादा लंगूरों ने इन हत्याओं की प्रतिक्रिया में जो रणनीति इख्तियार की वह अकल्पनीय थी, और जिसने इस स्थापित अवधारणा को तोड़ दिया कि मादाएं निष्क्रिय होती हैं। मादाएं इतनी आसानी से उत्तेजित नर द्वारा अपने बच्चों की हत्या होने नहीं देती थीं। वे मादाओं का समूह बना लेतीं और नर का मुकाबला करती थीं, इसने उस पुराणी अवधारणा को तोडा कि मादाओं में आक्रामकता और सामूहिकता की कमी होती है।
लेकिन आश्चर्य का पिटारा अभी ख़त्म नहीं हुआ था, तब तक यह माना जाता था कि मादाएं सेक्स को लेकर संकोची होती हैं लेकिन हर्डी ने यह पाया कि मादाएं अपने कुनबे के बाहर के हर उस नर लंगूर के साथ सम्भोग करती थीं जो संभावित मुखिया हो सकता था। और ऐसा वे इसलिए करती थीं ताकि उनमे से जो भी आगे चलकर मुखिया बने उसे यह संदेह रहे कि हो सकता है यह नवजात उसी का हो। और इस संभावना मात्र से नवजात का जीवन सुरक्षित हो जाता था। जिससे नवजात हत्याओं पर नियंत्रण बना रहता था।
1999 में प्रकाशित ‘Mother Nature : Maternal Instincts and How They Shape the Human Species’ में हार्डी ने मानव-मांओं और उनके नवजातों को व्यापक रूप से तुलनात्मक और विकासवादी ढांचे के पैमानों पर परखा है। उन्होंने इस पुस्तक में इसकी विस्तृत व्याख्या की है कि कैसे माएँ लगातार गुणवत्ता और परिमाण के बीच झूलते हुए अपने और अपने बच्चों की बेहतरी के लिए सर्वोत्तम उपलब्ध रास्ता चुनती हैं। उनका नजरिया यह है कि मातृ-सहजवृत्ति (maternal instinct) जैसा कुछ नहीं होता। यह बहुत सारे कारकों पर निर्भर करता है इसलिए जैसा कि अभी तक माना जाता रहा है कि यह कुदरती और जन्मजात होता है, सही नहीं है। इस पुस्तक में उन्होंने यह भी स्थापित किया है कि मानव अधिकतर दूसरे प्राइमेट्स (एकाध अपवाद प्रजातियों को छोड़कर) की तरह एकांत में प्रजनन करने और अकेले माँ द्वारा बच्चे पालने के विपरीत सामूहिकता और सहयोग से बच्चे पैदा करने एवं पालने की प्रवृत्ति और आवश्यकता के साथ विकसित हुआ है। इसीलिए इंसान को ‘कोआपरेटिव ब्रीडर’ कहा जाता है। ‘कोआपरेटिव ब्रीडिंग हाइपोथीसिस’ हर्डी का एक और महत्वपूर्ण काम है।
2014 में उन्हें उनकी पुस्तक ‘Mothers and Others : The evolutionary origins of mutual understanding’ के लिए (पिछले कामों को भी ध्यान में रखते हुए) वैज्ञानिक समीक्षा के लिए अकादमी पुरस्कार दिया गया।
सत्तर के दशक में जब हर्डी माउन्ट आबू के अपने शोध से वापस लौटीं, वह बुरी तरह से थकी हुई और बीमार थीं, दुनिया बदल रही थी, नारीवाद ज़ोर पकड़ रहा था लेकिन फिर भी विज्ञान का क्षेत्र अभी भी मर्दों का ही इलाका था। हर्डी को अपने पुरुष सहकर्मियों से इस बात के लिए बहुत जूझना पड़ रहा था कि मानव-विकासक्रम को महिलाओं के नज़रिये से भी देखा जाना चाहिए। एक सम्मलेन में जब उनसे पूछा गया कि उनके लिए नारीवाद के मायने क्या हैं? हर्डी का जवाब था, “एक नारीवादी वह है जो स्त्री और पुरुष दोनों के लिए सामान अवसर की वकालत करे, दूसरे शब्दों में कहें तो नारीवादी होना लोकतान्त्रिक होना है। हम सब नारीवादी हैं, और अगर नहीं हैं तो यह हमारे लिए शर्म की बात है।”