औरत
तेज प्रताप नारायण
ज़रा सोचिए
यदि आपको सिर से पैर तक
कपड़े से ढक कर
बुर्क़ा पहन कर
घूँघट निकाल कर
गर्मी के महीने में
रात दिन पसीने में
जिंदगी बसर करनी पड़े
तो कैसा एहसास होगा
यदि आपको तीन तलाक़ के साए में
जिंदगी गुज़ारनी पड़े
बिना अधिकार के कोई ज़िम्मेदारी संभालनी पड़े
यदि आपको रूप कंवर बनना पड़े
जलती चिता में जलना पड़े
तो क्या हाल होगा
यदि आपको घर से निकलते डर लगता हो
भीड़ में भी अकेले होने का भ्रम लगता हो
गलती दूसरा करे सजा आपको दी जाने लगे
अपराध करने वाला मुस्कराने लगे
तो ज़िंदगी पर कितना विश्वास होगा
यदि स्वयं आपकी माँ ही
आपके साथ भेदभाव करे
आपको सूखी रोटी और भाई को दूध भात मिले
भाई को कलम और आपको झाड़ू पकड़ाया जाए
फिर ज़िंदगी का साथ कैसे निभाया जाए
ये सब बातें एक औरत की ज़िंदगी में रोज होती हैं
अपने अस्तित्व के लिए छटपटाती हैं कुछ
पर अभी अधिकतर सोई हुई हैं
परंपराओं और खोखली मान्यताओं में खोई हुई हैं
करवा चौथ पर पति के लिए उपवास रखना
तो भाई दूज पर भाई के लिए अरदास करना
हर छठ के बहाने पुत्र के लिए व्रत रहना
और पुत्री को भूल जाना
पढी लिखी औरतें भी जागरूक नहीं है
जज़्बा है पर इरादे अभी मज़बूत नहीं हैं ।
तेज