कही अनकही

तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो ।
छूना चाहता है कोई तुम्हें, गोद में औरत की तरह ।
तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो ।
मॉ अक्सर कहतीं हैं तुम पराय घर का ईंधन हो ।
तुम कम उम्र में ही जला दी जाती हो ।
तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो ।
सास बताती है कि सही से चलना ,
तो दरवाजा खुला है ।
तुम कितनी जल्दी निकाल दी जाती हो ।
तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो।
पति कहता है, सुहागिन मरो तो सौभाग्य है
तुम कितनी जल्दी उखाड़ दी जाती हो ।
तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो ।
बच्चे कहते हैं मुझे क्यों, उसे क्यों नहीं बुलाती हो ।
तुम कितनी जल्दी टुकड़ों में फाड़ दी जाती हो ।
तुम कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हो ।
सीमा अहिरवार ‘ज्योति ‘