कोरोना का काल, इंसान बेहाल

 कोरोना का काल, इंसान बेहाल

राजीव चौधरी :लेखक दिल्ली टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर हैं ।

न जाने कितनी दशाओं, दिशाओं और अवस्थाओं में स्थित, भांति-भांति के जीव-जंतु इस जगत में अपने जीवन का सुख भोग रहे हैं। पृथ्वी पर किसका कब जन्म, अवतरण या आगमन हुआ किसी को नहीं पता, बस आते गए और ठिकाना बनाते गए, किसी महानगर की तरह। इन तमाम जीव-जन्तुओं में विभिन्नताएं तो हैं ही जो कि सबकी अपनी पहचान है, इनमें एक और भी फ़र्क है जो है उनके आम या ख़ास होने का। आम और ख़ास के वर्गीकरण के अनुसार इसमें कुछ ख़ास हैं, नामी-गिरामी हैं, जिनके होने न होने का अन्य सभी के जीवन पर फ़र्क़ पड़ता है तो कुछ बड़े आम से भी हैं, जिनकी कोई विशेष पहचान या प्रसिद्धि नहीं है। पर आजकल, जहां आम की चर्चा तो कोई नहीं करता है, वहीं ख़ास की चर्चा करना बड़ी आम बात है। और ख़ास भी, ख़ास इसलिए हैं कि वो आम को खाते हैं। ये प्रचलन यूं तो नया नहीं है, बल्कि अब तो ये एक स्थापित सत्य हो गया है कि आम को खाकर ही कोई ख़ास बनता है। हां आम लोगों को खाने के लिए जो भरपूर मिलता है, वो है ख़ौफ़, जिसकी ख़ास लोग अपने चारों ओर उपलब्धता बराबर बनाए रखते हैं, जिससे इसकी कोई कमी न पड़ने पाए और आम लोगों का पेट इससे सदा भरा रहे, जिससे वो और कुछ पाने और खाने के बारे में सोचें भी नहीं।
देखा जाए तो संख्या में ख़ास की तुलना में, आम बहुत होते हैं, परंतु चलन ये है कि चर्चा अधिक ख़ास की ही होती है।
इन चंद ख़ास लोगों में आने वाले हुए, जैसे शेर या उनके ख़ानदानी जो किसी भी आम जानवर को खा जाते हैं और इसके बदले में हर आम जानवर जो खाता है वो है इनको खानेवालों का ख़ानदानी ख़ौफ़। ऐसा ही एक और प्राणी है मानव, जो कि शेर जैसे ख़ूंख़ार जानवर से भी दो हाथ आगे है जिससे कोई भी प्राणी थर-थर कांपता है। क्योंकि वह न केवल शेर को पालतू बना सकता है और व्हेल, हाथी व ऊंट की सवारी कर सकता है, बल्कि, गाय, भैंस, भेड़-बकरी जिससे दूध, ऊन, खाल-मांस जो भी मिलता है, उससे ज़बरदस्ती हथिया लेता है। इसका मतलब है कि मानव पृथ्वी का चैम्पियन जीव है जो जब जैसा चाहें जहां चाहें बिंदास मनमाने ढंग से बड़े ही धमाकेदार ढंग से अपना जीवन बिताता है।
और इस नए साल का तमाम उठा-पटक के साथ जो आगमन हुआ तो जैसे ट्वेन्टी-ट्वेन्टी का कोई मैच शुरू हो गया कि हर पल कुछ न कुछ धमाकेदार हो रहा हो। इसी बीच पृथ्वी पर एक नए व अनजान जीव के रुप में एक नए खिलाड़ी का आगमन हुआ। उसकी न देह-दशा, न डील-डौल और उस पर वो अत्यंत सूक्ष्म और लगभग अदृश्य भी, तो उसकी क्या औकात, उसको कौन गंभीरता से लेता। सुनते हैं कि मानव के बीच यह नन्हा जीव कोरोना वाया चमगादड़ की चमड़ी किसी मानवजन की ज़ुबान की भेंट चढ़कर आया। जहां से ये अपने अंतिम ठिकाने मानव के फेफड़े में पहुंचा, जहां पहुंचकर इसने तो चैन की सांस ली, पर मानव की नींद उड़ा दीं, उसकी सांसें उखाड़कर। पता चला जिस चीज़ से वो आबाद होता था, उसी में इंसान की बरबादी थी। फिर क्या था, इंसान के हाथ-पैर फूल गए क्योंकि यह अदृश्य दुश्मन न गोली, न बंदूक, न परमाणु बम से ही काबू में आने वाला था।
अब माइक्रो और नैनो के ज़माने के इस जानलेवा नन्हे से अदृश्य जीव का इंसान की देह को पनाहगाह बनाना, उसके साथ-साथ चौकड़ी भरना और फैलना, इंसान की तो नींद ही हराम हो गई। हर जगह उसे उसी के होने का ख़ौफ़ इस क़दर बढ़ा कि सारे काम-काज बंद करके वह घर में तो छुपकर जा बैठा, पर उस पर सवा सेर वायरस जो उसने इंसानी देह में ही पनाह ले ली। हालत ये है कि दुनिया को काबू करने वाले इंसान की लड़ाई जारी है उस दुश्मन के ख़िलाफ़, जो उसी की पनाह में तो है पर निगाह में नहीं। और इंसान का हाल तो उस मोगैंबो जैसा हो गया है जिसके पीछे कोई मि इंडिया लगा हो। इसके साथ ही पहली बार सभी जानवर मिलकर राहत की सांस ले रहे हैं क्योंकि सबको क़ैद करके रखने वाला ख़ुद घर में क़ैद है और सभी जीव-जंतु आजाद घूम रहे हैं।