गाँव के किस्से-जब हुआ कोबरा से सामना

तेज प्रताप नारायण
आम के मौसम में बच्चों को अलल सुबह ही जगा दिया जाता था । नींद न खुलती तो ऊपर पानी के छींटे डाल कर जगाया जाता ।हम लोग किसी तरह से आँख मींजते हुए उठते थे ।आँगन में सुबह की सुहानी नींद का मज़ा ही अलग होता था । आधी खुली और बंद आँखों से उठते ,एक हाथ में झोला लेते और बाग़ की ओर चल देते ।कई बार तो घर का कुत्ता भी दुम हिलाते हुए चल देता था ।रास्ते में जाते वक़्त किसान खेतों की जुताई करते हुए खरीफ़ की तैयारी करते हुए मिल जाते ।अब सूरज की गर्मी से कौन टक्कर लेता ,इसलिए इससे पहले कि सूरज बच्चा से जवान हो लोग वापस घर आ जाते ।

हम लोगों की दोपहरी तो बाग़ में ही बीतती थी । कभी जामुन के नीचे और कभी आम के नीचे । पेंड़ के नीचे ही खटिया पड़ी होती तो कई बार वहीँ सो भी जाते ।घर वालों को पता था कि हम लोग कहाँ होंगे ।किसी को कोई चिंता न होती ।आज कल कोई पेरेंट्स ऐसा सोच भी नहीं सकते है।

इस दौरान बहुत बार सांपो से मुलाक़ात भी हो जाती ।सड़क पार करते हुए ,कई बार पेंड़ से उतरते और चढ़ते हुए ।हम लोग अगल बगल हो जाते ।कई बार तो साथ वाले बच्चा लोग साँप की धुनाई कर देते और साँप वही धूप में तड़प जाता । हम लोग मन्त्र की शक्ति से लैस थे सो अलग ,कॉन्फिडेन्स बढ़ा हुआ था ।

एक दिन सुबह मैं आम बीनने अपनी बाग में गया हुआ था । बाग़ के किनारे छोटी छोटी झाड़ियाँ थी जिस पर आम की ढ़ेरों सूखी पत्तियां पड़ी हुई थीं । पैर से आम की पत्तियों को हटाते हुए मैं आम बीन रहा था । इच्छा थी कि जल्दी जल्दी आम उठाओ और घर पहुँचो ,पर मुझे क्या पता था कि कुछ और ही होने वाला है ।

अचानक मैं क्या देखता हूँ !! नाग देवता मेरे से एक फ़ीट की दूरी पर खड़े फ़नफ़ना रहे हैं । उनको देखते ही मेरे होश फ़ाक़ता हो गए ,वहीँ मैं जड़ सा हो गया । साँपों से पहले सामना हुआ था लेकिन इतनी करीबी मुलाक़ात और वह भी अकेले ।
मंत्र दिमाग से गायब हो गया।मैंने भी नाग जी को घूरा लेकिन वह तो बिलकुल अलग रूप दिखाए जा रहे थे ,फ़ुफ़कारे जा रहे थे । नाग जी अपने दांतों को बार बार निकाल कर चैलेंज कर रहे थे कि मंत्र बोलो और मैं भागूं ।
मुझे लगा कि मंत्र -वन्त्र यहाँ कुछ न चलने वाला ,बस फूट लो ।
मैं उलटे पाँव भागा और तब तक भागता रहा ,जब तक कि घर नहीं पहुँच गया । साँप जी फिर विश्राम करने चले गए ।

अगर उस दिन साँप जी ने कुछ बद तमीज़ी की होती तो ?? ?? पर बहुत शरीफ़ निकले थे साँप जी । गांव में वैसे भी कोई डॉक्टर नहीं होता है और जो होते हैं उनके पास एंटी वेनम इंजेक्शन तो पक्का नहीं होता है ।
सच पूछिए तो डॉक्टर के पास कोई ले भी नहीं जाता है। गांव में ही झाड़ फूँक करा कर इलाज़ का प्रयास होता है । सर्प दंश वाले व्यक्ति को जगाने का प्रयास किया जाता है ,जहर की तीव्रता मापने के लिए नीम की पत्ती खिलाई जाती है यदि पत्ती कड़ुवी लगी तो बहुत ज़हरीला साँप नहीं माना जाता है ।
और अगर साँप जहरीला हुआ तो खेल खत्म हुआ समझिए ।