गुस्से में गजराज
एलीफैंट रेस्क्यू- गुस्से में गजराज
‘नाली के बगल में चिंघाडते हुए गजराज का विशाल शरीर देख मेरी रूह कांप उठी। एक क्षण को मैं जैसे जड़ रह गया। लगा नसों में लहू की जगह बर्फ ने ले ली हो।‘
रक्षा बंधन की वो पूनम की रात मेरे लिए एक जिंदगी भर न भूलने वाला वह सबक सिखा गयी। जो आगे चलकर मेरे सभी वन्यजीव रेस्क्यू आपरेशन की बुनियाद साबित हुआ। जी हां, वह सबक था धैर्य और सुरक्षा उपाय। वाइल्डलाइफ रेस्क्यू ऑपरेशन किताबी ज्ञान से बिलकुल अलग होते हैं। यह एक वन्यजीव विशेषज्ञ के धैर्य व तकनीकी ज्ञान दोनों की परीक्षा लेते हैं।
मेरे वाइल्डलाइफ कैरियर के शुरुआती दिनों में ही एक मस्त हाथी के उत्पात की सूचना प्राप्त होते ही मुझे उक्त हाथी को नियंत्रित करने हेतु भेजा गया। वह मेरा प्रथम एलीफैंट रेस्क्यु ऑपरेशन था। स्वाभाविक रूप से मैं रास्ते भर अपने मन में एलीफैंट रेसक्यू के विभिन्न पहलुओं पर मंथन करता रहा। उस समय साधारण मोबाइल फोन लगभग प्रचलन में आ चुके थे। अतः विभिन्न वन्यजीव विशेषज्ञों की राय मैं लेता रहा। परन्तु पहला अनुभव होने से मैं अपने आपको आश्वस्त करता रहा कि मुझे क्या-क्या सावधानियां बरतनी होंगी। मेरे साथ, पूर्व में अन्य वन्यजीव विशेषज्ञों के साथ रेस्क्यू ऑपरेशन में भाग ले चुके, अनुभवी वेटेरिनरी सहायक भी थे।
एक मस्त हाथी अपने आप में एक चुनौती होता है, एक ऐसी चुनौती जिसके सामने उसका अपना महावत भी बेबस होता है। अमूमन नर हाथी वयस्क होने पर लगभग प्रतिवर्ष एक ऐसी प्रक्रिया से गुजरते हैं जब उनके शरीर में हॉर्मोन का स्तर बढ़ जाता है। और वे अधिकतर अपने महावत के नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं या उसकी कमांड नहीं मानते। कई बार ऐसे में वे आक्रामक रुख भी अपना लेते हैं। इसी को हाथी का मस्त होना कहते हैं। इस स्थिति में अत्यंत संयम व सुरक्षित दूरी बनाये रखने की आवश्यकता होती है। यदि इस दौरान सावधानी रखी जाए तो हाथी मित्रवत व्यवहार भी कर सकता है।
फिलहाल निर्धारित स्थान एक अत्यंत दुर्गम व यमुना के बीहड़ों में होने से काफी देर बाद हम वहाँ पहुंच सके। वह एक पूर्ण वयस्क नर हाथी था जिसने आसपास के गांव में नाक में दम कर रखा था। टूटे हुए खम्बे और वृक्ष उसकी मस्ती की कहानी बयां कर रहे थे। कुछ पैदल चलने पर हमें दूर तालाब के पास खड़े गजराज के दर्शन हुए। उसके महावत उससे दूर बेबस बैठे हुए थे। उनके मस्त हाथी के कारण ग्रामीणों का कोप भी उन्हें मिल रहा था। कुल मिलाकर उनकी स्थिति असहाय सी थी। हालांकि गजराज ने किसी भी ग्रामीण को या उनके सामान का नुकसान नहीं किया था। परंतु उनका कृषि कार्य अवश्य प्रभावित हो रहा था।
आसपास खेत थे, कुछ पेड़ थे तथा कई जगह भादों मास होने से पानी भरा था। एक चौड़ी नाली थी जो दो खेतों के बीच कुछ ऊंचाई पर बनी थी इसके दोनों तरफ व अंदर भी बड़ी बड़ी व घनी कंटीली झाड़ियां भी उग आई थीं। सामने ही एक मोटा नीम का पेड़ था। चांद और बादलों की आँख मिचौली से चांदनी भी कभी-कभी खो सी जा रही थी। फिर भी पर्याप्त प्रकाश था।
चूंकि हाथी को केवल नियंत्रित करके इस प्रकार रखना था कि हाथी को कोई तकलीफ न हो और महावत उसकी सेवा कर सकें। अतः हमें एक ऐसे स्थान की आवश्यकता थी जहां उसे बिना कष्ट दिये मज़बूती से नियंत्रित रखा जा सके और सामान्य होने पर महावत अपने साथ ले जा सकें। इस हेतु वह नीम का पेड़ उपयुक्त था। अब सर्वप्रथम उस हाथी को उस नीम पड़ तक लाने के लिए मोटी-मोटी रोटियां बना कर उसके सामने थोड़ी-थोड़ी दूरी पर डाली जाने लगीं । इस प्रकार हाथी नीम के पेड़ के पास आ गया।
चूंकि हाथी डार्ट (दूर से ट्रांक्विलाईजिंग गन से दिए जाने वाले इंजेक्शन) लगते ही कभी-कभी डार्ट की दिशा में आ जाते हैं। इसलिए प्लान हुआ कि मैं नाली के दूसरी ओर से डार्ट गन से डार्ट इंजेक्शन फायर करूँगा और मेरे सहायक मुझसे कुछ दूरी पर पीछे मशाल लेकर खड़े रहेंगे। जिससे कि हाथी के आक्रामक होने की स्थिति में वे मशाल जला कर और शोर मचाकर उसे अन्य दिशा में मोड़ देंगे। मैंने निर्धारित स्थान पर अपने आपको नाली के दूसरी ओर इस प्रकार पोजीशन किया कि मेरे सामने कंटीली झाड़ियां हों और मैं हाथी को न दिख सकूं। हालांकि मैं अपने पोजीशन लेने के स्थान व समय से संतुष्ट नहीं था। बस एक ही परिस्थिति मेरे अनुकूल थी, वह यह कि हवा मेरी पोजीशन से हाथी की विपरीत दिशा में बह रही थी। जिससे गजराज को मेरे शरीर की स्मेल नहीं मिल सकती थी। परंतु वहां उपस्थित भीड़ व कुछ स्थानीय लोगों के अधीर होने या यूं कहें कि परिस्थिति वश मैने उसी समय यह कार्य पूर्ण करने का प्रयास किया।
योजना के अनुसार मेरे सहायक ने मेरे पीछे कुछ और दूरी पर खड़े होकर एक केरोसिन की मशाल बना ली और माचिस भी रख ली। उनके साथ चार अन्य लोगों को भी आपात स्थिति में शोर मचाने हेतु खड़ा कर दिया गया। हाथी के दूसरी तरफ मुंह करते ही मेरे द्वारा अपनी गन का ट्रिगर दबा दिया गया, और बिजली की गति से दवा से भरी डार्ट हाथी की मजबूत मांसपेशियों में समा गई। हाथी अनायास ही गुस्से से चिंघाड़ उठा। ऐसा लगा कि जैसे आसमान से बिजली गिर पड़ी हो। और इसके बाद वह हुआ जो आज भी मेरे रोंगटे खड़े कर देता है। हाथी गुस्से से मेरी गन की आवाज़ की दिशा में मेरी ओर ही बढ़ गया। हाथी से दौड़ में जीतना, वो भी बारिश के खेत में नामुमकिन था। मेरे सामने बस एक ही चारा था कि मैं किसी तरह अपने आपको उसकी नज़रों से बचा लूं, क्योंकि हवा विपरीत दिशा में बह रही थी इसलिए हाथी अपने तीव्र सूंघने की क्षमता से मुझे ढूंढ पाने में सम्भवतः सफल न हो सकता था। और हाथी के देखने की क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है। इसलिए यदि मुझे रात को गजराज के प्रकोप से बचना था तो अपनी शरीर की महक को छुपाते हुए उसकी नज़रों से बचना था। मेरी ओर रात को लगातार बढ़ती और बड़ी हो रही उस दानवाकार आकृति से बचने हेतु मुझे अविलंब निर्णय लेना था। ऐसे में जरा सी चूक मेरे लिए भारी पढ़ सकती थी। इसलिए मैंने तत्काल लेटे-लेटे ही कंटीली झाड़ियों से भरी सिंचाई की उस नाली में अपने आपको गिरा दिया। उसी क्षण हाथी का चार टन का विशाल शरीर मेरे सामने से गुजर गया। लेकिन सम्भवतः उस पर दवा का असर होने लगा था, अतः उसमें वह तीव्रता नहीं बची थी और न ही वह ज्यादा आगे बढ़ सका।
गजराज को हमने महावतों की सहायता से नियंत्रित तो कर लिया था। परन्तु उस गजराज ने मुझे अनजाने में वाइल्डलाइफ रेस्क्यु ऑपरेशन का जो सबक पढ़ाया, वह आगे चलकर बेजुबानों के रेस्क्यू एवम वन्यजीवों के उपचार का मेरे लिए सबसे अचूक हथियार बना। धैर्य और सम्पूर्ण सुरक्षा उपायों के साथ वाइल्डलाइफ ऑपरेशन आज भी मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता रहते हैं। फिलहाल इस घटना के कई वर्षों पश्चात संयोगवश वही गजराज मस्त अवस्था में एक दूसरी जगह एक बार फिर मेरे सामने थे। परंतु इस बार मेरे साथ सहायक नहीं मेरा अनुभव था।
तराई आर्क के बियाबान जंगलों में एक अन्य टाइगर रेस्क्यु ऑपेरशन के दौरान लिखा गया मेरा यह प्रथम अनुभव पाठकों को कैसा लगा, इसकी मुझे बेसब्री से प्रतीक्षा रहेगी। फिलहाल कई दिन से ऊंची-ऊंची घास व विशाल दरख्तों के बीच इस टाइगर से चल रही आँख मिचौली व रोमांचक क्षणों को हम अगले अंक में साझा करेंगे।
-डॉ राकेश कुमार सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ एवं साहित्यकार