डॉ रजनीश गंगवार की कविताएँ

डॉ.रजनीश गंगवार
गांव -पुरैना
पत्रालय-मुडिया हुलास
जनपद- पीलीभीत
उत्तर प्रदेश
पिन-२६२२०३
अध्यापन कार्य:एम जी एम इंटर कॉलेज बहेड़ी बरेली।
【कोरोना समय】
“हम लिखते हैं
हम लड़ते हैं
जिंदगी के लिए
और जिंदा रहने के लिए
यह लिखना,
यह लड़ना बहुत जरूरी है
यह सबूत है जिंदा रहने का
कि आदमी अभी मरा नहीं है
वह सपने देखता है
और लिखता है अपने हाथों से
कहीं भी
कभी हवा में
कभी तूफान में
कभी पानी में
कभी धरती पर
तो कभी पेड़-पौधों, जंगलों,घास के मैदानों पर
कभी पहाड़ों
तो कभी समुद्र पर
यह जो लिखना है
यही जिंदा रहने का सबूत है
इसलिए ख्याल रखना
जो तुम्हारी परवाह करता हो
जो तुमको प्यार करता हो
उसके प्रति वफादार रहना
ईमानदार रहना
हो सके यदि जरूरत पड़े तो
अपनी जान भी दे देना
लेकिन कभी भी
उससे झूठ न बोलना
छल न करना
चालाकी न करना
स्वार्थी न होना
झूठ,कपट, स्वार्थ, चालाकी
तुम्हें पशुता की श्रेणी में ले जाती है
और तुम भले ही जिंदा रहो
किंतु तुम्हारी आत्मा मर जाती है
और तुम जिंदा होते भी मृतप्राय ही रहते- रहते एक रोज
मर जाते हो
बस यही जिंदगी है
और यही जिंदगी की कहानी
झूठ बोलना मर जाना है
जिंदा रहते हुए भी एक रोज
और जिंदा रहना
सत्य के पथ पर चलना
सत्य के लिए जीना है
यही मरकर भी जीना है
और यही मरना शाश्वत है
सत्य है।।
【2】
“क्या कभी सोचा है तुमने
कि उम्र के साथ अनुभव
और अनुभव के साथ दुनिया
सब धीरे-धीरे बदल जाती है
यहां तक कि
हम बचपन,जवानी और बुढ़ापे तक
एक एक चीज खोते हैं
तो एक चीज पाते चले जाते हैं
क्रमिक विकास के साथ
हमारे खुशियों के पैमाने भी
बदल जाते हैं
एक रोज जो अनिवार्य था
एक रोज निरर्थक हो जाता है
आज का सच कल का झूठ हो जाता है
एक पहेली सा उलझा-सुलझा जीवन
“एक दिन की पहली”बन जाता है।
【3】
“हां!मैंने हर रोज़ लिखा है
एक अंधेरा दिन
एक उजली रात
जरा सी आशा की किरण
हर रोज़ बांटती है
छोटा मोटा सुख
जिसके सहारे हम सजाते हैं
खुशियों का एक बाग
तुम और तुम्हारी नींद
कोई मीठे स्वप्न की तरह
बार-बार बांटती है
नयी दुनिया की एक सुखद तस्वीर
हम बार-बार बनाते हैं
या नहीं भी बनाते हैं
कभी धुंधली या कभी उजली
तस्वीर
उलझी हुई उलझनें
जिंदगी में सिखाती हैं
कि हम हिम्मत से,साहस से,धैर्य से,काम लें
उलझनें आएंगी जिंदगी के साथ
और खत्म भी हो जाएंगी
वक्त के साथ
लेकिन हम सत्य बनें रहें
आखिर कुछ ऐसा भी है
कि जो उम्र भर हमारे साथ रहता है
जन्म से मृत्यु तक
यह जो साथ रहा है यही तुम थे
और यही जीवन उपलब्धि……..!
【4】
“हां जी! यह जो मोहब्बत है
अपने आप हो जाती है
कहीं भी, किसी से भी
बिना पूछे बेरोकटोक
यह अद्भुत पल होते हैं जीवन के
और प्रकृति का अनमोल उपहार
जीवन की सुखानुभूति का आनंद।
मोहब्बत की नहीं जाती
स्वत: हो जाती है
बरसात में बारिश की तरह
मौसम में सावन की तरह
तुम चाहोंगे तो मोहब्बत न हो सकेगी
मोहब्बत में हम खुद मिट जाते हैं
समर्पण करते हैं
और
“मोहब्बत और समर्पण पूरक हैं।”
!
【मैं कौन हूँ】
सृष्टि का एक प्राणी हूँ
और
मैं रचनात्मकता और सृजनात्मकता से
अपने जीवन जीने की प्रबल इच्छा शक्ति से संपन्न हूँ,
नश्वर हूँ
क्षणिक हूँ
अभी तो हूँ और
अगले पल का नहीं पता
मैं रहूँगा या नहीं
लेकिन अज्ञात शक्ति का अंश हूँ
इसलिए पूरे जज्बे से
अपनी मर्जी से
निर्भय और निडर होकर
जिंदगी जीता हुआ
एक -” लघु इंसान “हूँ।