तंदुरुस्ती के साथ मंदुरुस्ती

 तंदुरुस्ती के साथ मंदुरुस्ती

तेज प्रताप नारायण

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस है और ज़ाहिर है आज तमाम लेख,वचन और प्रवचन सोशल मीडिया और अखबारों में पढ़ने सुनने को मिलेंगे। पुरानी कहावत है तंदुरुस्ती हज़ार नियामत लेकिन तंदुरुस्ती से यह आभास होता है जैसे कि तन को दुरुस्त रखने की बात हो रही हो ।मतलब तंदुरुस्ती के साथ मनदुरुस्ती भी उतनी ज़रूरी है । एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है तन और मन दोनों दुरुस्त हों क्योंकि इंसान तन ही नहीं बल्कि तन और मन का योग होता है । तन और मन दोनों का स्वास्थ्य और क्रिया कलाप एक दूसरे को प्रभावित करता है । कहावत है कि एक स्वस्थ्य तन में ही एक स्वस्थ्य मन निवास करता है । एक स्वस्थ्य मन के बिना एक स्वस्थ्य तन नहीं हो सकता है और अगर तन स्वस्थ्य नहीं है तो मन भी तन की पीड़ा से ग्रसित रहेगा । तन को स्वस्थ्य रखने के कई तरीके हैं,डॉक्टर हैं,व्यायामशालाएं हैं । मन को स्वस्थ रखने के लिए भी तरीके हैं लेकिन मन स्वस्थ्य नहीं है,ये कई बार पता नहीं चल पाता और चल भी गया तो कोई यह स्वीकार नहीं कर पाता कि उसका मन दुरुस्त नहीं है ,उसका मानसिक स्वास्थ्य ख़राब है या मनोरोग है । मनोरोगी होना एक स्टिगमा है ,जब कि मन से अस्वस्थ्य होना भी उतना ही नेचुरल है जितना तन से अस्वस्थ्य होना । जब तक रोग को स्वीकार नहीं किया जायेगा तब तक पूर्ण रूप से स्वस्थ्य होना संभव नही होगा । एक बात यह भी जानना ज़रूरी है कि पूर्ण रूप से स्वस्थ्य होना क़रीब क़रीब संभव नहीं है ।यह इंसानी अक्षमता नहीं है बल्कि इस तरह का माहौल है जिसमें पर्यावरणीय प्रदूषण है,अस्तित्व का संघर्ष है ,गला काट प्रतियोगिता है और समय की कमी है । तो क्या मान के चलें कि कोई न कोई बीमारी रहेगी ? जिस तरह से कुछ भी पूर्ण नहीं होता उसी तरह स्वास्थ्य संबंधी कुछ न कुछ समस्याएं हो सकती हैं। इसके लिए सिर्फ़ इतना करना है कि स्वास्थ्य संबंधी किसी भी समस्या को लेकर बहुत परेशान नहीं होना है (हालांकि यह इतना आसान नहीं है ) बल्कि समस्या से सामना करने के लिए शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार होकर उसे दो दो हाथ करना है । चिकित्सीय परामर्श के द्वारा रोग को हरा देना है या उसका प्रबंधन करना है। स्वस्थ्य रहने के लिए ज़रूरी है कि मन और शरीर को संतुलित आहार मिलता रहे और साथ ही तन और मन का मेंटेनेस होता रहे जिससे न तन में जंग लगे और न मन में । साथ ही यह भी ज़रूरी है कि तन और मन का कूड़ा भी निकलता रहे ,नहीं तो बहुत ज़्यादा गंदगी एकत्रित होने की संभावना रहती है। तन से कूड़ा करकट तो प्राकृतिक रूप से भी निकलता रहता है लेकिन मन का क्या? मन का एकत्रित कूड़ा मन को विषैला करता जाता है और तन भी हाथ से निकल जाता है । तन का ड्राइवर मन और मन का ड्राइवर उसके अंदर इकट्ठा बड़ा सा कूड़े का ढेर । तन के लिए जिम है,दौड़ भाग ,खेल कूद ,अस्पताल और डॉक्टर हैं लेकिन मन का कहीं इलाज नहीं दिखाई पड़ता है । यह भी सच है जिम,व्यायाम आदि से मन पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है लेकिन मन को विचारों की खुराक जिम से तो नहीं मिल सकती है । जिम से कसरत करके निकले और फिर जाल बवाल में मन रम गया । मन को दुरुस्त रखने के लिए उसको रोज़ाना अच्छे सकारात्मक विचारों की डोज ज़रूरी है । मन के भीतर जमे कूड़े करकट को उठाकर बाहर फेंकने की जरूरत है ।अच्छे विचारों की धारा प्रवाहित करनी है । सिर्फ़ अच्छे विचार ही नहीं अच्छे कर्म भी करने हैं जिससे मन को संतुष्टि मिले ,जीवन को उद्देश मिले और ज़िंदगी को लय मिले ।ज़िंदगी को लय मिल गई तो जीवन का सुरमई होना तय हैं ।इसी लय में स्वास्थ्य संबंधी सारी समस्याएं भी तिरोहित होकर ज़िंदगी को सुंदर बना देंगी। तेज #विश्व स्वास्थ्य दिवस #WorldHealthDay

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