तेज प्रताप नारायण का काव्य संसार

ऋतु रानी

युवा कवि तेज प्रताप नारायण के लिए लिखना केवल लिखना भर नहीं है, बल्कि समाज से जुड़ने का एक माध्यम भी है । वह समाज के लिए प्रतिबद्ध हैं और लगातार अपनी रचनाओं में सामाजिक मुद्दों को उठाते रहे हैं । तेज प्रताप की खासियत यह है कि उन्होंने कथा साहित्य और काव्य विधा दोनों में बराबर लिखा हैं । उनके अब तक कई कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं जिनमें ‘सूरज की नई किरण’, ‘अपने-अपने एवरेस्ट’, ‘सीमाओं के पार’ और ‘किंतु-परंतु’ प्रमुख हैं । उन्होंने दो काव्य संग्रहों ‘पर्दे के पीछे की बेख़ौफ़ आवाजें’ और ‘शब्दों की अदालत में’ तथा वार्षिक काव्य संग्रह ‘मशाल’ का भी संपादन किया । कथा साहित्य की बात करें तो उनके दो कहानी संग्रह हैं- ‘कितने रंग जिंदगी के’ और ‘एयरपोर्ट पर एक रात’ । इसके अतिरिक्त उन्होंने ‘टेक्निकल लव’ और ‘जिंदगी है… हैंडल हो जाएगी’ नामक दो उपन्यास भी लिखे हैं । तेज प्रताप ने ‘टेक्निकल लव’ में मुख्य रूप से युवा पीढ़ी के टेक्निकल झुकाव को रेखांकित किया है । लेखक यहां भी बड़ी सूझ-बूझ के साथ सामाजिक समस्याओं, विडम्बनाओं को उजागर करने में सफल हुआ है । उनका ‘जिंदगी है…हैंडल हो जाएगी’ नामक उपन्यास हिंदी का पहला ऐसा उपन्यास है जिसके लेखन में पहली बार एक साथ आठ लेखकों ने भूमिका निभाई हो ।
देखा जाए तो तेज प्रताप का काव्य संसार विविधताओं से भरा हुआ है । इसमें व्यक्ति भी है, समाज भी है, गाँव भी है, शहर भी है, दर्द भी है, उत्साह भी है, स्त्री भी है और पुरुष भी है । उनकी कविताओं में मानव-जीवन के छोटे-छोटे प्रसंग हैं । कहीं-कहीं निजी अनुभूतियां भी हैं । अपनी कविताओं के माध्यम से वह अतिवाद का विरोध करते हैं । नारी पराधीनता, सांप्रदायिक विद्वेष, दलितों के उत्पीड़न, किसान शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं । अपने मार्मिक लेखन के लिए उनको अब तक कई सम्मान भी मिल चुके हैं जिनमें भारत सरकार का मैथिली शरण गुप्त सम्मान, भारत सरकार का प्रेमचंद सम्मान, डिफेंडर ऑफ फ्रीडम का साहित्य गौरव सम्मान तथा भारत निर्माण संस्था का लिटरेरी एक्सीलेंस अवार्ड शामिल हैं । तेज प्रताप ने अपने संघर्षों से सीखते हुए आज यह मुकाम प्राप्त किया है ।
तेज प्रताप नारायण की कविताओं का मुख्य विषय मनुष्य की विसंगति पूर्ण जिन्दगी है । वह समाज के सभी लोगों के लिए समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व की मांग करते हैं । गरीब, शोषित की आवाज को उठाते हैं । उनकी ‘आदमी और चूहा’, ‘मुक्ति’, ‘अनगिनत प्रश्न’ नामक कविताओं में गरीबी, भूख से लाचार इंसान का बड़े मार्मिक ढंग से वर्णन हुआ है । जैसे ‘आदमी और चूहा’ नामक कविता में वह लिखते हैं ‘चूहे दौड़ते रेल की पटरी पर/ अन्न की गठरी पर/ भूख मिटाने के लिए/ ख़ुद को जिलाने के लिए…सामने प्लेटफार्म पर एक आलसी बेचारा/ पड़ा बेसहारा/ एक कटोरा हाथ में लिए/ भीख की आस में जिये ।’1 तेज प्रताप की उपरोक्त पंक्तियां यह जरुर स्पष्ट करती हैं कि वह कल्पना से अधिक विचारों के प्रति सजग है । उनकी कविताएँ यथार्थ की ओर मुँह किए हुए हैं जहाँ खुरदराहट अधिक है ।
तेज प्रताप की कविताएँ उन विचारों, परिस्थितियों, संगठनों आदि का विरोध करती हैं जो आम आदमी को शोषण और उत्पीड़न का जीवन जीने के लिए मजबूर करे । कवि की नजर में शोषक वर्ग ऐसी व्यवस्था बनाता आ रहा है जहाँ अमीर और अमीर हो रहा है तथा गरीब और गरीब । वह मानते हैं कि हर इंसान को कम से कम अपनी मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के साधन प्राप्त होने चाहिए । कुछ ऐसी व्यवस्था बने जहाँ श्रमिकों को उनके श्रम के लिए पर्याप्त मेहनताना मिले और किसान आत्महत्या न करें । किसानों की समस्याओं को तेज प्रताप ने बहुत जिम्मेदारी के साथ अपनी कविताओं में उठाया है । किसान आत्महत्या की त्रासदी को कवि ने बड़े मार्मिक ढंग से अभिव्यक्त किया है ‘… लौटा निराश घर को वह/ कर मन-ही-मन निश्चय/… बच्चों से बोला/ चलो लंबी यात्रा पर चलते हैं/ ऊपर वाले से मिलकर/ सारे सवाल करते हैं/ ये कहकर/ लंबी यात्रा पर निकल गया/ निर्जीव शरीर के माध्यम से/ देश के सामने/ अनगिनत प्रश्न कर गया ?’2 सच में आज किसानों की हालत पर रोने वाला कोई नहीं है । वह बस चुवानी एजेंडा बन कर रह गया है ।
भारतीय समाज प्राचीनकाल से जातिवाद की जकड़ में फंसा हुआ है । इसने इंसान से इंसान होने का हक तक छीन रखा है । आज जाति के आधार पर सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में भेदभाव, शोषण आम बात है । विडम्बना तो यहां तक है कि वर्षों से सत्ता और पैसे के लोभी जातिवाद की आग में अपनी रोटियाँ सेकते आ रहे हैं । आज जब ऐसे संवेदनशील विषय पर लिखने को कोई आगे नहीं आ रहा हो तब तेज प्रताप नारायण निडर होकर जातिवाद को अपनी कविता का विषय बनाते हैं । वह लिखते हैं कि ‘जाति/ भारतीय समाज की सेंटर ऑफ ग्रेविटी है/ जाति के मथानी से ही/ चुनावी दही को मथा जाता है/ और निकलता है सत्ता का स्वादिष्ट मक्खन/ जिसका मजा लेते हैं/ नुकीले दांतों वाले बिल्ले/ अपनी गुलाबी जुबान से/ बिना रुके/ सोचे-समझे/ पांच साल तक ।’3 कवि की ‘गोबर गणेश’, ‘वह उसका छुआ हुआ खा नहीं सकता’, ‘जातीय श्रेष्ठता’ आदि कविताएं भी इसी पृष्ठभूमि पर लिखी हुई हैं ।
आज एक तरफ हमारा समाज नारी को देवी का दर्जा देता है तो दूसरी तरह उस पर अत्याचार भी करता है । नारी शोषण की घटनाएँ आम हो गई है । कही दहेज के लिए उसे जलाया जा रह है तो कही वह हवस का शिकार हो रही है । नारी की पराधीनता, उनके शोषण के खिलाफ तेज प्रताप ने लेखनी चलाई है । उन्होंने अपनी ‘नारी ही क्यों हो?’ कविता के माध्यम से पुरुष प्रधान समाज के सामने कई सवाल खड़े किए हैं । वह लिखते हैं ‘पवित्र नारी ही क्यों हो/ पुरुष की पवित्रता का क्या मोल नहीं?/ पतिव्रता नारी ही क्यों/ पुरुष के पत्नी व्रत का कोई तोल नहीं?/ सारी सीमाएं/ सारी गरिमाएं/ मर्यादाएं/ क्या नारी तक ही सीमित है ?’4 यही नहीं आए दिन होती बलात्कार जैसी अमानवीय घटना पर भी कवि का आक्रोश उमड़ पड़ा है और लिखते हैं ‘औरतें उनके लिए इंसान नहीं है शायद/ तभी तो उनको पाने की खातिर/ हैवान बन जाते हैं ये लोग/…वासना की चीटियाँ रेंगती हैं इनके दिमाग में/ प्रेम का तेल नहीं होता इनके चिराग में/ दिन रात यह जलते रहते हैं/ जब कोई कभी दिखी/ बाज़ जैसे झपट्टा मार कर घायल करना इनकी आदत है/… पता नहीं यह व्यवस्था कब बदलेगी?/ स्त्री होने का अभिशाप/ स्त्री कब तक झेलेगी ।’5 तेज प्रताप नारायण ‘तुम बेटी हो’, ‘पुरुष की सोच’, ‘लड़कियां’ आदि कविताओं में भी नारी के सम्मान, शोषण से मुक्ति के लिए खड़े हुए हैं ।
वास्तव में तेज प्रताप ने अपनी कविताओं में समाज का सच लिखा है । शोषण, अत्याचार से उनका मन बहुत व्यथित होता है । दूसरों की पीड़ा उन्हें अपनी पीड़ा लगती है । इसलिए उन्होंने जहाँ भी विसंगतियां देखी उस पर लिख दिया । तेज प्रताप ने पर्यावरण की तरफ भी हमारा ध्यान खींचा हैं । जैसे ‘वे पेड़ और पौधे’, ‘यादें’ ‘मैं और तुम’, ‘पानी’ नामक आदि कविताएँ इसी तरह की है । ‘पानी’ नामक कविता में कवि की चिंता बहुत ही जायज है । वह लिखते हैं कि ‘क्या हम जल पर होने वाले/ युद्ध का इंतजार कर रहे हैं/ क्यों हम जिंदगियों का विनाश कर रहे हैं/ शायद हम छोड़ेगे/ अगली पीढ़ी के लिए/ विलुप्त होती प्रजातियाँ/ सूखे पेड़- पौधे/ प्रदूषित हवा/ सुखी नदियाँ, तलाब, झीलें/ और एक मुरझाया हुआ/ कुम्हलाया हुआ/ पानी के लिए तड़पता हुआ जीवन ।’6
इस प्रकार समकालीन परिप्रेक्ष्य में यह कहा जा सकता है कि तेज प्रताप नारायण समाज के प्रति प्रतिबद्ध हैं । उनकी लेखनी ने विभिन्न मुद्दों को उठाया हैं । उनकी कविता की भाषा ‘संघर्ष की रगड़ से फूटी हुई काव्य भाषा है’ और आभिजात्य से पूरी तरह मुक्त है । विज्ञान जगत से बिंबों, प्रतीकों, शब्दों और उपमानों को चुनकर कथ्यों को अत्यधिक संवेदनापूर्ण और सजीव बनाया है । तेज प्रताप की कविताओं के केंद्र में मनुष्य की विसंगति पूर्ण जिन्दगी है । उनकी कविताओं का एक पक्ष हमारे अन्दर आनंद का संचार करता है तो दूसरा पक्ष हमें वर्तमान परिस्थितियों, अन्याय, शोषण से अवगत करता है । वह लगातार नारी पराधीनता, दलितों के उत्पीडन, किसान शोषण, पर्यावरण, साम्प्रदायिक विद्वेष के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं । उनकी ‘पेशावर स्कूल हत्याकांड’, ‘जातिवाद’, ‘मरता तो आदमी ही है’, ‘लोकतंत्र’, ‘इंसानों का भीड़ बन जाना’, ‘बदलाव’, ‘रोटी-दाल’ आदि शीर्षक कविताओं को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जैसे कविता उनके लिए सामाजिक न्याय का हथियार बन गई हो । मूल बात यह है कि तेज प्रताप नारायण अपने लेखन में कहीं भी मुद्दों से हटते नहीं हैं ।

ऋतु रानी ( शोधार्थी )
हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़
ईमेल- ritu.rakhi92@gmail.com ,

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