दरबारी लाल के सपने

दरबारी लाल को सपने देखने का बड़ा शौक़ था ।ड्रीम, थॉट,एक्शन, रियलिटी में उन्हें सिर्फ़ ड्रीम याद था और सब कुछ भूल गए थे ।दरबारी लाल थे तो सफ़ाई कर्मचारी लेकिन उन्होंने ड्यूटी जाना कब का छोड़ दिया था ,उन्हें ख़ुद याद नहीं था।अब बेचारे ठहरे ऐसी जाति के जिसमें सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी को बड़ी हेय दृष्टि से देखा जाता था। मज़बूरी में उन्होंने यह नौकरी पकड़ी थी क्योंकि ख़ुद में इतनी कूबत नहीं थी कि वो बड़ी नौकरी पाते तो थोड़ा जोड़-जुगाड़ लगा कर एक अदद नौकरी ले ली उन्होंने , वह भी सफ़ाई कर्मचारी की ।
दरबारी लाल अपने इर्दगिर्द साफ़ सफ़ाई तो ख़ूब चाहते थे, लेकिन ख़ुद सफ़ाई नहीं करना चाहते थे । अब दरबारी लाल करें तो क्या करें ? सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी तो करनी है बस सफ़ाई नहीं करनी है । दरबारी लाल सपने देखने लगे कि कुछ ऐसा हो कि दोनों बची रहे,साख भी और नौकरी भी । उनके सपनीले दिमाग़ में ख़्याल आया कि क्यों न कोई दरबार खोजा जाये और फिर वाह वाह करके ज़िन्दगी का सुख भोगा जाये। चूंकि सपने देखने में उनका कोई सानी नहीं था तो सपने में ही वे कई दरबार घूम आये ।प्रधान, सरपंच,प्रमुख ,विधायक,सांसद और मन्त्री सभी के दरबार की रेकी कर आये कि किस दरबार में वे फिट रहेंगे ।फिटिंग वग़ैरह नापने के बाद दरबारी लाल को लगा कि प्रधान और प्रमुख टाइप के दरबार आख़िरी मुग़ल बादशाह के दरबार की तरह हैं जिसमे मज़ा नहीं आने वाला है ,वहीं मन्त्री और सांसद भी थोड़ा अकबर या शाहजहाँ टाइप के लगे जहाँ उनके रत्नों और नवरत्नों के सामने नहीं उनकी दाल नहीं गलने वाली । अब बचे विधायक जी,दरबारी को लगा कि वे लोकल भी है ,वोकल भी और प्रदेश की राजधानी तक ग्लोबल भी और कई बार तो देश की राजधानी तक भी ग्लोबल हो जाते हैं । थोड़ा प्रयास करने के बाद विधायक जी के दरबार मे दरबारी लाल भी एक दरबारी की तरह शामिल कर लिये गये। अब दरबारी लाल वहीं रहने लगे ,विधायक निवास पर ही ।विधायक जी का क़रीबी समझकर गाँव के लोग भी दबने लगे थे ।सफ़ाई कर्मी के काम के लिए उनसे कोई नहीं पूछता। कोई नहीं चाहता था कि दरबारी लाल जी से उनकी दुश्मनी हो। हर महीने की तीस तारीख़ को दरबारी लाल को वेतन मिल जाता था । उससे दरबारी लाल और उसके परिवार का ख़र्चा बढ़िया से चल जाता था इसलिए उनके घर वाले भी कुछ नहीं कहते ।
धीरे-धीरे दरबारी लाल विधायक के करीबियों में माने जाने लगे थे । दरबारी लाल के सपने भी बड़े होने लगे थे । दरबारी लाल अपने परिवार को शहर में ही ले आये । कई बार जब विधायक जी थक जाते तो दरबारी उनके हाथ पैर भी दबाने लगे ।दरबारी का सोचना था कि विधायक के वे पैर दबाते हैं ,यह सिर्फ़ वह और विधायक जी जानते हैं और वैसे भी विधायक जी उनकी ही जाति के हैं ,तो क्या हुआ,हाथ पैर दबा दिये तो ? विधायक जी भी बड़े ख़ुश थे ।एक दिन बोले कि तुम्हारा परिवार किराये पर क्यों रहता है? चाहो तो उसे हमारे पुराने घर पर छोड़ दो ।हमारा घर की देखभाल भी हो जायेगी और तुम्हारा किराया भी बचेगा ।शुरुआत में दरबारी हिचके फिर थोड़ी ना-नुकर के बाद मान गये ।
दरबारी को विधायक जी के दरबार में रहते हुए चार साल होने वाले थे।एक बार फिर से चुनावी माहौल गर्म होने वाला था । दरबारी लाल भी विधायक बनने के हसीन सपने देखने लगे ।लेकिन सफ़ाई कर्मी की सरकारी नौकरी का मोह भी नहीं छोड़ा जा रहा था। बैठे बिठाए 20 ,25 हज़ार मिल जाते थे ।घर का खर्चा चल जाता था ,हालाँकि पिछले कई महीनों से उनकी विधायक जी की वजह से ख़ासी इनकम हो रही थी ,लेकिन सरकारी नौकरी की बात ही अलग थी ।दरबारी लाल बड़े असमंजस में थे ,करें तो क्या करें ?
दरबारी बड़े परेशान रहने लगे ।दिन रात सपने देखते रहते ,योजनाएँ बनाते रहते ।कभी दारूलसफा के एक मकान में अपनी नेमप्लेट लटकी हुई देखते और कभी विधान सभा के अंदर पहुँच जाते और भाषण दे रहे होते और कभी टी वी वालों को इंटरव्यू दे रहे होते और अधिकारियों को तो अक्सर सपनों में डाँटने लगे थे । सपने में वह बड़ी गाड़ी से निकलते और उनकी आगे पीछे बहुत सारी गाडियाँ होतीं ।बन्दूक लिए हुए गनर उनके साथ साथ चलते ।शहर में उनका बड़ा सा घर बन गया । सपने में ही विधायकी जीने लगे ,रुतबा बढ़ने लगा लेकिन जब सपने से बाहर आते तो विधायक जी का दरबार ,उनके पैर दबाना और सफाईकर्मी का सरकारी टैग ।
विधायक जी को कभी ऐसा सपना न आया जिसमें वे जनता के लिए काम करते हुए दिखाई पड़े ।
चुनावों की घोषणा होने वाली थी ।पार्टियां उम्मीदवारों की सूची बनाने लगी थीं ।विधायक जी को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें टिकट मिलेगा ।आलाकमान से वे कई बार मिल भी चुके थे। दरबारी लाल को समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें ?दरबारी लाल को बड़ी तोंद निकल भी आयी थी ।वे जब कुर्ता पायजामा पहन कर चलते तो पूरे नेता लगते थे । कई बार जब नये लोग उन्हें ही विधायक समझ लेते तो उन्हें बड़ा अच्छा लगता ।
विधायक जी के सम्बोधन से उनका दिल बाग़-बाग़ हो जाता था। वह चाहते थे कि लोग बार -बार उन्हें विधायक जी कहें ।
वैसे भी दरबारी लाल दरबार में रहते -रहते विधायकी वाले लटके झटके सीख गये थे ।कई बार ख़ुद ही थाने या तहसील में फोन करके सिफ़ारिश भी करने लगे । दरबार में रहने का सुख ही यही था लेकिन ख़ुद विधायक न होने की कमी सालती रहती।
दरबारी लाल ने एक बार सोचा कि क्यों न निर्दलीय ही लड़ लिया जाये लेकिन हर बार की तरह नौकरी आड़े आ जाती और वे अपना माथा पकड़ लेते ।
ख़ैर उम्मीदवारों की लिस्ट पार्टी ने ज़ारी कर दी ।विधायक जी का अपना नाम लिस्ट में देखकर ख़ुश हो गये ।पर्चा दाख़िल करने का समय आ गया ।दरबारी लाल भी गाजे -बाजे के साथ विधायक जी के साथ गये । ख़ूब ज़श्न मनाया गया ।दरबारी लाल को पक़्क़ा यकीन था कि चुनाव तो उनके नेता जी भी जीतेंगे । नामांकन के चौथे दिन पता चला कि विधायक जी का पर्चा रद्द हो गया है। पार्टी भी इतनी जल्दी कुछ नहीं कर सकती थी कि किसी और को वहाँ भेज दे ।पार्टी ने विधायक जी से ही एक कैंडिडेट देने को बोला ।
विधायक बोले,” का रे दरबरिया ,इलेक्शन लड़ेगा ।”
दरबारी हकलाते हुए इतना ही बोल पाया,”जी मालिक,आपका हुकुम ,सर माथे पर ।”
तेज प्रताप नारायण