पावस की रात

लिख देती थी
अक्सर
तुम पर ….
बारिश की बूंदो सी तरंग
कभी बहते हुए झरने की उमंग
और कभी सावन की
सतरंगी झलक
अक्सर लिख देती थी
तुम पर….
तो कभी तपते सूरज सा
विदग्ध वियोग
पावस की रात का
नीरव संयोग
और कभी छिटकती चांदनी सी तुम्हारी,शर्मीली मुस्कान
लेकिन अब नहीं लिखी जाती
तुम पर ….
जागते चाँद में, रात की माधुर्यता
फागुनी धूप की रेशमी सी छुअन
बसंती बयार की मधुमाती गंध
अब नहीं उतरते
वो भाव वो संवेदनाएं
मौन हो गयी है वो सभी
प्रेमालापी अनुभूतियां
तुम्हारे विछोभ में ,….
–सीमा पटेल