पूनम हिम्मत अद्वितीय की कविताएं
[अदहन ]

उबलते हुए अदहन में ,
डाल देती है वो चावल ,
और देखती है खदखाते हुए ,
मन में उबालते विचारों की तरह ,
तभी बटलोई से उबल कर चावल गिर जाते हैं
चूल्हे की आग में ,
और बुझ जाती है आग ,
फैल जाता है धुआँ ही धुआँ ,
मन में उठते आक्रोश के वेग की तरह ,
उतार कर रख देती है बटलोई कन्डियों की भौर में ,
पकता है धीरे धीरे चावल बटलोई की कोख में ,
बिल्कुल वैसे ही जैसे उसके अंतस में पकती है संवेदनाएं ।
[2]
क्या
जो मेरे प्रति जैसा सोचता है वैसा सोचना ,
जो मेरे प्रति जैसा करता है वैसा करना ,
तो सही क्या है ?
क्यों हम समाज के पुराने ,
कठोर नियमों की चक्की में लगातार पिस रहे हैं ?
क्यों हम समाज की पाखंडी धारणा को बरकरा रखे हैं ?
लेकिन हाँ ,
यदि इसे मन की आँखों से
देखा जाए तो लगेगा
कि इस इस पिसने टूटने से अच्छा है ,
जो मेरे प्रति जैसा सोचता है सोचे ,
जो मेरे प्रति जैसा करता है करें ।