फेथ(लघु कथा)
तेज प्रताप नारायण
ईसाई माता पिता की संतान सोनिया ने अचानक निर्णय किया कि वह वह बौद्ध धर्म अपनाना चाहती है ।उसे नहीं पता था कि घर वालों की क्या प्रतिक्रिया होगी ?
लेकिन कुछ भी करने से पहले वह घर वालों से बात चीत करना चाहती है ।किसी को अँधेरे में रखकर वह इतना बड़ा क़दम नहीं उठाना चाहती थी ।वैसे धर्म,, मज़हब आदि में उसका ज़्यादा विश्वास नहीं था लेकिन पता नहीं क्यों वह बुद्ध के विचारों के प्रति आकर्षित थी और एक बार अनुभव करना चाहती थी धम्म को ।
बड़ी उहापोह की स्थिति थी उसके लिए । क्या एक ही घर मे ऐसा संभव होगा कि अलग- अलग धर्मो के लोग परिवार की तरह रहें ।
उसने अपनी बहन मोना से बात की ।मोना तो उछल सी गई ,बोली
“क्या कह रही हो सोनिया !! आर यू मैड ?”
“ऐसा क्यों ?”, सोनिया ने पूछा
“यू विल बी आउट कास्ट !!” ,मोना नाराज़ होते हुए बोली
सोनिया शॉकड हो गयी ।अब वह क्या कहे ।जब उसकी जनरेशन की उसकी बहन ऐसी बातें बोल रही है ।उसने सोचा कि इस आईडिया को ड्राप किया जाए ।
वह बहुत दुखी हो गयी और सोचने लगी कि यह कैसा समाज है जो आपको अपना फेथ चुनने की फ्रीडम भी नहीं देता है ।आप पैदा होते ही फेथ की जंज़ीर से बाँध दिए जाते हैं भले ही आप कितनी कोशिश कर ले लेकिन निकल नहीं सकते हैं ।
वह अपनी पीड़ा किससे कहे ? उसे मोना से बहुत आशा थी । थोड़ी गुमसुम खोई- खोई देखने पर उसकी माँ ने एक दिन पूछ लिया ,”क्या बात है बेटा ? कोई पसंद तो नहीं आ गया ?”
माँ की बात सुनकर सोनिया मुस्कुराए बिना न रह सकी ,बोली ,” न ममा !! “
“फिर क्या बात है ? कुछ तबियत ख़राब है क्या ?” ,उसके कँधे पर हाथ रखते हुए माँ ने पूछा
“कुछ नहीं ममा ! बस ऐसे ही ।”,सोनिया अनमने ढंग से बोली
माँ बगल में बैठकर बोली ,” माँ हूँ ।मैं समझती हूँ ।जो भी हो मन मे बोल दो ।”
बहुत सकुचाते हुए सोनिया ने अपनी बात कह दी ।
माँ मुस्कुराते हुए बोली ,” इसमें दिक्कत क्या है । क्या अगर तू बुद्धिस्ट बन जाएगी तो मैं तेरी माँ नही रहूँगी या तुम मेरी बेटी नहीं रहोगी ।”
“लेकिन माँ ! समाज ,रिश्तेदार ।”
“तुम बिल्कुल चिंता न करो ।फेथ व्यक्तिगत होता है ।हम चाहते हैं कि हमारे सारे बच्चे अलग- अलग फेथ को माने और इसके बावज़ूद हम सब साथ रहे हैं । तुम्हे पूरी आज़ादी है बेटा !” ,माँ मुस्कुराते हुए बोली