“बचपन”

 “बचपन”

डॉ आर के सिंह ,वन्य प्राणी उद्यान ,कानपुर

जब सावन में बादल गरजते हैं,
गलियों में पानी भरता है।
एक बार फिर कागज़ की कश्ती तैराने का,
मन तो सबका करता है।

जब दिवाली का मौसम आता है,
चाँद कहीं छुप जाता है।
एक बार फिर माटी के दिये जलाने का,
मन तो सबका करता है।

जब फाल्गुन रंग दिखाता है,
और बचपन फिर जग जाता है।
एक बार फिर रंगों से हुड़दंग मचाने का,
मन तो सबका करता है।।

जब ढोल नगाड़ा बजता है,
और रावण आग पकड़ता है
एक बार फिर संगीत पर लहराने का,
मन तो सबका करता है।।

जब किसी स्कूल की घण्टी बजती है,
और कंचे की गोली चटकती हैं।
एक बार फिर बचपन जीने का,
मन तो सबका करता है।