बस्तियां

 बस्तियां

सीमा अहिरवार, इंदौर

उजाड़ बस्तियां ,
फिर से बसा दो,
देखो ना ।
न जाने कौन से,
सितारे हैं,
उनकी आंखों में ।
ये कैसे धूल के,
बबंडर हैं देखो ना ।
छुपी हों बारिसे जैसे,
हवा के झोंको में ।
करीब अश्क हैं ,
आंखों की मेरी कोरों में ।
न जाने कौन से गम हैं ,
जो मुझे रूलाते हैं ।
उजाड़ बस्तियां ,
फिर से बसा दो,
देखो ना ।
न जाने कौन से,
सितारे हैं,
उनकी आंखों में।
नहीं फरेब कोई भी,
तुम्हारी बातों में ।
अजब चराग जलाते हैं,
मेरी रातों में ।
सफ़र है लम्बा ,चलते हैं,
हम बरातों में ।
ये रोशनी तो महज ,
एक धोखा है ,
रास्ते तो अंधेरों में,
मिलते हैं ।
अजीब शख्स है,
चुपचाप चला गया,
उठकर ।
न जाने कौन सी ,
तकलीफ ,
उसके अंदर थी ।
उजाड़ बस्तियां ,
फिर से बसा दो,
देखो ना ।
न जाने कौन से,
सितारे हैं,
उनकी आंखों में ।

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