मजदूर ही मजबूर हैं

 मजदूर ही मजबूर हैं

क्या करें!
हमारे यहाँ का नियम ही यही है
मजदूर ही मजबूर हैं…
क्या किसी अमीर वर्ग को इस लॉक डाउन की वजह से खाने/रहने की समस्या हुई है?
बेचारे!
नौकरी छूटी
रहने का ठिकाना गया
जब पेट की भूख का सवाल आया तो घर का रुख करना पड़ा
डर/दहशत में जो कोई साधन मिला
निकल पड़ें
नहीं मिला तो पैदल ही चल पड़ें…
सोशल मीडिया पे मजदूरों के बेबसी की कई तस्वीरें हृदय को द्रवित किये दे रही हैं
पर मुझे कुंठित कर रहा है
इनसे जुड़ा शब्द ‘पलायन’

पलायन का शब्दकोशीय अर्थ है
भागना/अन्यत्र चले जाना
ये बेचारे भाग रहे हैं या भगाये जा रहे हैं
केंद्र सरकार की अनदेखी,
जिन राज्यों ने इनसे श्रम लेकर विकसित होने का दर्जा पाया, उनका गैर जिम्मेदाराना रवैया,
जिन फैक्ट्रियों को अपनी जीवटता से लाभ के ऊँचे शिखर पर पहुंचाया,
उनके मालिक कुछेक महीने इनका पेट नहीं पाल सकें…

खैर! ये सही सलामत अपने गाँव/घर वापस आयें…
परिस्थितियों समान्य हों…
इन्हे घर पर ही दो रोटी का जुगाड़ मिलें…
आमीन!!