मुझे बुद्ध होने दो

 मुझे बुद्ध होने दो

आलोक सिंह “गुमशुदा “

मुझे बुद्ध होने दो
छोड़ कर नफरतों के घर
तोड़ कर जाति धर्म के धड़
मुझे बुद्ध होने दो
तार्किक हो हर एक विषय
असत्य की हो हार, सत्य की हो विजय
ग्यान की गंगा निरंतर प्रवाहित होने दो
मुझे बुद्ध होने दो
हटा कांटें राहों से , सबको बढ़ने दो
फूल कैसा भी हो, सबको खिलने दो
कलम की धार भी हो कुन्द,तो गम कैसा
सबकी आवाज बुलंद रहने दो
मुझे बुद्ध होने दो
सरल हो तरल हो अहम न कोई गरल हो
भरम हो धर्म हो न कोई चरम हो
भला हो बुरा हो पर न कोई सितम हो
सभी का मार्ग इंसा हो बस यही धर्म हो
मुझे भी एक इंसा होने दो
मुझे भी बुद्ध होने दो !