मेरी हिंदी

तेज प्रताप नारायण
मेरी हिंदी
जो हर भाषा के शब्दों को ग्रहण करती
हर भाषा से हाथ मिलाती है
हर भाषा से संवाद करती है
छुआछूत से मुक्त है
लोक से संपृक्त है
ये अंग्रेजी को दुश्मन नहीं मानती है
भोजपुरी और अवधी को छोटा नहीं मानती है
उर्दू इसकी बहन है
ज्ञान इसमें गहन है
मेरी हिंदी
परलोक की नहीं लोक की बात करती है
हवाई शब्दों से मुक्त है
लोक कल्याण की बात करती है
हाशिए के व्यक्ति को अपना मानती है
मेरी हिंदी
व्यक्त करना चाहती हैं अंतिम आदमी की बात
देना चाहती है उसका अंत तक साथ
लोकतांत्रिक है
तार्किक है
शब्दों का दुरुपयोग नहीं करती है
अपनी बात किसी पर नहीं थोपती है
मेरी हिंदी
सिर्फ़ अकेडमिक संस्थानों तक सीमित नहीं है
सरकारी फंडिंग पर जीवित नहीं है
यह मठाधीशी नहीं करती
यह चापलूसी नहीं करती हैं
मेरी हिंदी खरी खरी कहती है
मेरी हिंदी दिल में रहती है
मेरी हिंदी
स्वार्थ एवं राजनीति का साधन नहीं है
यह अन्य भाषाओं की तरह संवाद का माध्यम है ।