यथार्थ की ज़मीन पर कल्पना के महल गढ़ने वाले कवि ‘कामता प्रसाद ‘कमल’

कवि कमल जी की पुण्यतिथि पर तेज प्रताप नारायण की श्रद्धांजलि ।

जैसे किसी बगिया से ख़ुशबूदार फूल का मुरझाना
रात के घनगोर अँधेरे में बिजली का गुल हो जाना
या किसी गाड़ी के टायर से हवा निकल जाना
वैसे ही होता है किसी कवि का
दुनिया से असमय चले जाना ।(तेज)

एक कवि थे कामता प्रसाद ‘कमल ‘ जो असमय ही काल कवलित हो गए थे । ‘ कमल जी ‘ एक ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी क्षमता से बाहर होने पर भी लोगों के सुख दुःख में काम आते थे । उनका जाना साहित्य जगत के लिए अपूरणीय क्षति है । अनगिनत कवितायेँ ,कहानियां और उपन्यास से यह समाज और साहित्य वंचित रह गया । हमारे साझा उपन्यास,” ज़िंदगी है हैंडल हो जाएगी ” में कमल जी एक सह लेखक के तौर पर थे यह हमारे लिए सौभाग्य की बात थी । मैं इतना निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि उन्होंने जितनी भी कविताएँ लिखी हैं उसी के बल पर वें वर्तमान के एक प्रतिष्ठित कवि के रूप में कहलाये जाने लायक हैं ।
श्री कामता प्रसाद ‘ कमल ‘ जी उत्तर प्रदेश के लखीमपुर के मूल निवासी थे और लखनऊ में इनका निवास स्थान था । पेशे से भारतीय रेल में लोको पायलट श्री कमल ह्रदय से एक संवेदनशील कवि थे ।

कवि कामता प्रसाद ‘ कमल ‘ विस्तृत और विविध संवेदनाओं के कवि थे। जिसमे समय , विषय और संवेदनाओं का विस्तार था । इतने संवेदनशील कि वें विभाजन के बाद के विस्थापन का दर्द भी महसूस कर सकते थे । वे चन्द्र गुप्त और अशोक के समय का भारत चाहते थे ।

जिन्ना और नेहरु अगर अपनी जिद को छोड़ कर काम करते तो शायद आज एक अखंड भारत होता और कश्मीर समस्या न होती ,कारगिल युद्ध न होता और हमारे सैनिक सियाचिन में मौसम की मार से शहीद न हो रहे होते :-

“गर जिन्ना और जवाहर मिलकर ( दर्द विभाजन का )
ऐ नए आज़ाद भारत को बनाते
एशिया में बुलंद होता झंडा अपना
चीन ,अमेरिका बस नाम से थर्राते “

कवि जीवन के सत्य को घड़ी की सहायता से बड़ी सूक्ष्मता से प्रकट करता है जब वह कहता है :-

“प्रकट होती मानव के सम्मुख (घड़ी )
जब अंतिम जीवन की घड़ी
ख़त्म हो जाती साँसों की बैटरी
घेर लेती है उसको भीड़ बड़ी “

कहते हैं कि ख्वाब टूटने से आदमी को टूटना नहीं चाहिए ।एक ख्वाब टूटा तो क्या हुआ दूसरा ख्वाब देखना चाहिए । ख्वाब होगा तभी नए सिद्धांत जन्म लेंगे ,और इंसान कल्पनाओं की उड़ान उड़ करके यथार्थ की ज़मीन पर सपनों का महल खड़ा करेगा ।

“नए सिद्धांत और अवधारणायें ( ख्वाब )
जन्म लेंगी नई परिकल्पनाएं
योजनाओं का होगा उपहास
कुछ उत्प्रेरक करेंगे क्रिया मंद
भरेंगे मन में अवसाद
तब कहीं पूरित होंगे अधूरे ख्वाब

संचरित होंगे आवेश जब
मस्तिष्क से कर्मेन्द्रियों में
उडेंगी नींदे नयनों से
तीव्र होगा रक्त परिसंचन
अधूरे ख्वाब लेकर निकलेगी
पल्मोनरी नलिकाएं और
ह्रदय की तेज़ धड़कन
सम्मिलन से रक्त में पसीने के
आकार ग्रहण करेंगे ख़्वाब “

झूठे अभिमान के बारे में लिखते हुए कवि कहते हैं :-

“शान ओ शौकत और पहचान (झूठा अभिमान )
टिकती नहीं उधारी की
लज्जित होना पड़ता एक दिन
हँसी होती बातों के व्यापारी की “

परम्परा के नाम पर अन्धविश्वास त्यागने की बात वह अपनी कविता परम्पराएँ में कहते हैं

“ बने अंधविश्वास का कारण जो ( परम्पराएँ )
निःसंकोच करना चाहिए विसर्जन
तर्क और वैज्ञानिकता से पूर्ण
सिद्धांतों का होना चाहिए स्थापन “

आज विस्थापन समय की सच्चाई बन चुका है । रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में गाँव का आदमी शहर की और पलायन कर रहा है और शहर है कि यहाँ सांस लेने को हवा नहीं है ,रहने को घर नहीं है और पीने को पानी नहीं है । इन्हीं तमाम समस्याओं पर चिता प्रकट करते हुए कवि कहते हैं :-

“पलायन कर रहे गाँव प्रतिदिन (विकसित शहर )
बढ़ रहा है आकार शहरों का
निगल रहे जो भूमि उर्वरा
कम हो रहा है कृषि का दायरा “

आज के समय में रोजाना कोई न कोई ख़बर अखबारों में मिल जाती है जिसमें महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार की बात होती है ।दिल्ली जैसे शहर को जहाँ से पूरे देश का शासन चलता है को रेप कैपिटल की संज्ञा दिया जाने लगा है । घर हो या बाहर कहीं भी नारी सुरक्षित नहीं है । अपनी पीड़ा को व्यक्त करते हुए कवि कामता प्रसाद ‘ कमल ‘ कहते है :-

“डरने लगा है अब मन यहाँ (बेटी और समाज )
किस -किस से बेटी को बचाएं
न जाने कौन रिश्ता बने घातक
दिखाकर अपना पण और सहानुभूति
आबरू को तार -तार कर जाए “

जीवन है तो हर्ष है , विषाद है , आशा है ,नैराश्य है , दुःख है,सुख है ,न सुख में इतराना और न ही दुःख से घबराना । कवि कामता प्रसाद ‘कमल ‘ की कविताओं का भी यही जीवन दर्शन है जो ग़लत परम्पराओं को काटने की बात करती हैं ,जो पीड़ित को आशा बंधाती है , शोषण के विरुद शब्दों के तीर चलाती हैं लेकिन होली के रंग में रंगती है ,नाचती हैं ,गाती हैं और प्रेममय हो जाती हैं :-

“ छाई मस्ती गुलाबी अधरों पर (होली का उल्लास )
योवन तन में उमड़ाय
शर्म हया से लाल हो गए चेहरे
कामदेव भी हो गए बौराय “

अभी हाल ही में दिल्ली में तीन बच्चियां भूख से मर गई । देश में करीब १६ करोड़ लोग सिर्फ एक समय का खाना पाते हैं और हम कहते हैं कि भारत विश्व की छठवीं बड़ी अर्थ व्यवस्था हैं । क्या भुख मरी और आर्थिक वृद्धि में जो रिश्ता है वह व्युत्क्रमानुपाती है कि अर्थ व्यवस्था बढ़ेगी तो गरीब और गरीब होता जाएगा और अमीर और गरीब बच्चा होता जाएगा बाल मजदूर ?
“ उम्र थी पढने लिखने की ( बाल मजदूर )
कुदाल फावड़ा हाथ में आया
कुछ पैसों में बंधक बनी जिंदगी
बचपन का समय गंवाया “

कवि कमल ह्रदय से कवि ,लेखक हैं लेकिन पेशे से लोकों पायलट । हर पेशे का एक जोखिम होता है जो सिर्फ़ वह इंसान ही समझ सकता है । जब लेवल क्रासिंग गेट पर दुर्घटना होती है तो अकसर रेलवे की और विशेषकर उस ट्रेन को चलाने वाले पायलट की बहुत अधिक लानत मनामत होती है । मीडिया रेलवे को एक असंवेदनशील और नाकारा संगठन घोषित करने लगता है ऐसे में एक कवि ह्रदय लोकों पायलट का दर्द छलक जाता है :-

“वेग से गतिमान एक रेलगाड़ी ( हमने उसे नहीं मारा )
बंद था फाटक ,सीटी बजना था जारी
अचानक ट्रैक पर आया बेचारा
जाने कहाँ किस धुन में था मगन
सुना नहीं होगा शोर सारा
टकराकर ट्रेन से गया बेमौत मारा
पर उसे हमने नहीं मारा …. “

देश में आज बुजुर्गों की हालत बेहद दयनीय है । अकेले पन से त्रस्त बुढ़ापा बिलकुल सूखी नदी की तरह होता है जो बाहें पसारे अपने किनारों को खोजता है । एक पुराने दरख्त के दृश्य बिम्ब से कवि ने बड़े सुन्दर ढंग से बुढ़ापे के सूनेपन को व्यक्त किया है :-
“बूढ़ा दरख्त खड़ा द्वार पर (वृद्धावस्था )
तरस रहा प्यार और अपने पन को
गुलशन भ्रमर के गुंजन से गुंजित
वह झेल रहा है सूनेपन को “

कवि कामता प्रसाद ‘ कमल ‘ ने जीवन को जिया है और जीवन अनुभवों को बड़े सलीके से शब्दों के धागे में पुष्प गुच्छों की तरह पिरो कर कविता रूपी माला तैयार की है जिसमें देश दुनिया के तकरीबन हर विषय पर अपनी बात परिमार्जित भाषा में कही है । कथ्य विस्तृत और विविध है तो शैली भी विशिष्ट है । लोक भाषा के शब्दों के साथ- साथ संस्कृत निष्ठ हिंदी ,उर्दू ,अंग्रेजी और फारसी के शब्दों का भी प्रयोग हुआ । उदाहरण के लिए : संस्कृत निष्ठ और उर्दू के शब्दों का एक साथ शब्द संयोजन देखिए :-

“ होगा नहीं तनिक भी (मज़हब )
मज़हब में समावेशन “
वैज्ञानिक शब्दावली का भी भरपूर प्रयोग हुआ है जो हिंदी साहित्य में कम ही कवियों में मिलता है । धार्मिक –पौराणिक शब्दावली का प्रयोग है किन्तु बहुत ही कम है जो हिंदी की परम्परा से इतर है ।

“संचरित होंगे आवेश जब (ख्वाब )
मस्तिष्क से कर्मेन्द्रियों में
उडेंगी नींदे नयनों से
तीव्र होगा रक्त परिसंचन
अधूरे ख्वाब लेकर निकलेगी
पल्मोनरी नलिकाएं और
ह्रदय की तेज़ धड़कन
सम्मिलन से रक्त में पसीने के
आकार ग्रहण करेंगे ख़्वाब “
लोकोक्तियों और मुहावरों का भी आवश्यकतानुसार प्रयोग है ।

“बिना परिश्रम के कुछ नहीं मिलता (मेहनत का फल )
भूख मिटाने में भी है बल लगता
कुआँ नहीं आता है पास चलकर
प्यासा जाकर जल हासिल करता “

मैं यशकायी श्री कामता प्रसाद ‘ कमल ‘ जी की पत्नी और उनकी दो संतानों के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ और यह आश्वस्त करना चाहता हूँ कि आप लोगों के जीवन संघर्ष में पूरा परिवर्तन साहित्यिक परिवार आपके साथ सदैव रहेगा ।