यूँ कहे कहानी

 यूँ कहे कहानी

आकांक्षा दत्ता

कहानी कैसे पढ़ी जाए?कहानी सुनाने का सही समय व सही तकनीक क्या हो सकती है जिस से बच्चा किताबों से जुड़ा रहे। जब आप अपने बच्चे में कहानी पढ़ने और सुनने की रूचि उत्पन्न करना चाहते हैं ।तभी ऐसे कई सवाल मन में आते होंगे। यकिन मानिए यह कोई कठिन राकेट विज्ञान नहीं है।बस कुछ महत्वपूर्ण सलाह और बिंदु आप को कहानी सुनाने (कथन)में पारंगत बना देंगे।आप अपने बच्चों को बड़ी आसानी से इस ओर मोड़ लेंगे ।
यहाँ मैं आप को कुछ सरल बिंदुओं द्वारा समझाने का प्रयास कर रही हूँ। यह मेरे स्वयं द्वारा निर्मित व परीक्षित हैं।
1. कहे कहानी या सुने कहानी यह मात्र क्रिया (एक्टिविटी)नहीं है पर यह समय आप का अपने बच्चे से जुड़ाव का समय है।जिसे आप आनंद और रूचि से करें।
2. “कहानी कहना “धैर्य माँगता है।यह कोई नौकरी नही है जिसे समयबद्ध ,नियमबद्ध किया ओर मुक्त हो गये।
3 कहानी सुनाने में पारंगत होने के साथ आप को अच्छा श्रोता भी बनना होगा क्यों कि आप के बच्चे के पास कहानी संबंधी कई प्रश्न होंगे। उसके प्रश्न यह सिद्ध करते हैं कि वो रूचि लेकर सुन
रहा था।
4. इसमें तीन “डी”महत्वपूर्ण हैं
डिस्क्राइब (वर्णन) …कहानी का सरल भाषा में वर्णन कीजिए।
डिस्कस( चर्चा)…., कहानी पर चर्चा कीजिए ।
डिराइव(प्राप्त करना)….कहानी से कुछ प्राप्त कीजिए।जरूरी नहीं है वो नैतिक शिक्षा हो। कोई महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य।
5.अपने बच्चे की रूचि अनुसार कहानी पढ़िए। कहानी की गति भी उन्हें निश्चित करने दीजिए।बच्चों को जबरदस्ती कहानी पढ़ने के लिए बिठाना हानिकारक सिद्ध हो सकता है।यदि वो एक पन्ना पढ़ कर आज खुश है तो आप भी खुश हों ।धीरे -धीरे वह गति भी पकड़ेगा। मत भूलिए वो बच्चे हैं ।
6 कहानी को रूचिकर और जीवंतता से सुनाईये। हमारा उद्देश्य बच्चों में रूचि उत्पन्न करना है जोकि बोरिंग तरीके से नहीं हो सकता है ।
7.बच्चों को अपनी रूचि से पुस्तक लेने दें।
8 सबसे महत्वपूर्ण कहानी के समय स्वयं भी डिजिटल यंत्र मोबाइल, लेपटोप, कम्प्यूटर से दूर रहें। बच्चें का ध्यान तभी केंद्रित होगा जब आप का होगा।
9 कभी भी ड़रावनी, दुखद और उदासीन कहानी की किताब ना चुने।हमारा उदेश्य पढ़ने की आदत विकसित करना है ना कि पुस्तकों से दूर भगाना।
10. यदि कोई बच्चा एक ही पुस्तक को बार बार पढ़े तो चिंता ना करे।उसे दूसरी पुस्तक के लिए बाध्य ना करे।सभी की अपनी पसंद होती है।
11 रात को बिस्तर में कहानी कहना या पढ़ना बेहतर है ।पर यदि आप के पास दिन में समय हो तो कहानी की पुस्तक
से नयी क्रियाए भी कर सकते हैं।
12. कहानी को पुनः याद करने के लिए मजेदार प्रश्नोतरी बना सकते हैं।
13. यदि आप का बच्चा इस उम्र का है कि वो स्वयं पुस्तक पढ़ सकता है तो उसे स्वयं पढ़ने दे। धैर्यपूर्वक सुने ,बीच -बीच में गल्तियों पर ना टोके ।आप बाद में प्यार से समझा सकते हैं ।
14.( पार्टनर रीड़ींग) मिल कर पढ़ना मजेदार है।अपने बच्चे के साथ मिलकर पढ़े।
15. कहानी पढ़ते समय बच्चे को ड़ाटे फटकारे नहीं क्योंकि वह आनंद के लिए पढ़ रहा है। देखे आप के व्यवहार से वो हतोत्साहित ना हो।
16 यदि आप की कहानी पढ़ने के दौरान बच्चा कम रूचि दिखा रहा है तो घबराईये नहीं क्योंकि बच्चे चंचल होते हैं।उनका ध्यान कम समय के लिए स्थिर रहता है पर वो चीजों को जल्दी ग्रहण करता है। विश्वास कीजिए हम जितना समझते हैं वो उससे अधिक चतुर हैं।
17.एक ही बार में लंबी कहानी पूरी ना पढ़े।
18. यदि आप का बच्चा पाँच साल से कम उम्र का है तो कठिन शब्दों के अर्थ. बताने में मत उलझिए। सरलता से आगे बढे़।
19. बच्चों की उम्र के अनुरूप पुस्तक का चयन करे ।पड़ोस का बच्चा यदि अपनी उम्र से अधिक की पुस्तकें पढ़ रहा है तो अपने बच्चे को निम्न ना समझे। हर बच्चा अपने आप में विशेष होता है।
20.रोजाना कहानी सुनाने का एक.निश्चित समय रखे इससे बच्चा कहानी के लिए आतुर रहता है।
आयुवर्ग के अनुसार पुस्तकों का वर्गीकरण…..
1 आयु एक से तीन साल…..ऐसी पुस्तकें जिन के चित्रों को वह छू कर महसूस कर सके औरसंगीत की ध्वनि वाली पुस्तकें।
2. आयु तीन से पाँच… बड़ी तस्वीरों वाली पुस्तकें ,जिसमें चित्र बडे़ और वाक्य छोटे हों।
3. आयु पाँच से सात…..बड़े पैराग्राफ व उदाहरणों वाली पुस्तकें
4 .आयु सात से नौ……छोटे पाठ वाली पुस्तक जो उदाहरण सहित या रहित हो।
5.आयु नौ से ऊपर…. आप छोटे उपन्यास से परिचय करवा सकते हैं।
यह सरल व उपयोगी तरीके यकिनन आप के बच्चों में
कहानी पढने व सुनने की आदत को जाग्रत करेगें। प्रत्येक बच्चा अपनी विशेषता लिए होता है उनकी काबलियत को खोजना हमारा काम है। यदि पढ़ना नहीं तो चित्रकला, पेंटिंग, नृत्य, लेखन, गायन, खेल आदि ।
बच्चों को अपने आप को खोजने दीजिए, सीखने दें, बढ़ने दो, चमकने दो अपने ही तरीकों से ।