रक्त पत्रा
महेश चंद्र वर्मा
लेखक एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज के रुप मे कार्य कर रहे हैं ।उनकी कविताएँ और लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते है ।
शनिवार का दिन था। शाम का समय था। हफ्ते भर पहने गये कपड़ों को धुल चुका था। एक रूपये रोज किराए पर इंडिया टूडे का हिंदी संस्करण राजू भाई की बुक-स्टाल से ला कर पढ रहा था। पढते-पढते उस घटना-लेख पर पहुंँचा जहाँ दो पटेल उद्योगपति परिवारों की इकलौती संतानें और गर्भ में पल रहा बच्चा एचआईवी/ एड्स से संक्रमित हो गए थे। उनकी शादी जन्म-पत्री और कुंडली मिलान के बाद सब गुण मिलने पर सम्पूर्ण हिन्दू विधि विधान से सम्पन्न हुई थी। बहू के गर्भ धारण करने पर आवश्यक चिकित्सिय-जाँचें हुई। जिससे पता चला कि बहू एचआईवी/एड्स संक्रमित है। बेटे के खून की जाँच हुई। वह भी एचआईवी पॉजिटिव पाया गया। अंततः इस नव युगल की गर्भस्थ संतान भी इस लाइलाज़ बीमारी के संक्रमण से न बच सका। दोनों संपन्न परिवारों के सामने एकाएक घोरअंधेरा छाने लगा।
संपादक ने लेख के अंत जो मत वयक्त किया वह इस प्रकार के अंधकार को रोकने वाला सूर्य था। कि यदि जन्म-पत्रा के स्थान पर शादी के पहले वर-बधू के खून की जाँच करा ली गई होती तो तीन जिंदगियां इस लाइलाज़ बीमारी और काल के गाल में जाने से बच जातीं।
मैंने उसी दिन निश्चय किया कि मैं अपनी शादी जन्म-पत्रा नहीं, रक्त-पत्रा के आधार पर तय करुँगा।
मैं अपने सभी भाइयों-बहनों में सबसे छोटा हूँ। जब मैं प्राइमरी स्कूल में पढ़ रहा था, मेरे अलावा सबकी शादी तभी हो चुकी थी। मैं पढ़ने में ठीक था और बोलने में तेज-तर्रार। इसलिए कक्षा-पाँच से ही मेरी शादी करने के लिए बाबू(पिता जी) के ऊपर सामाजिक दबाव बढ़ने लगा। मैं कभी बाग गोली, कभी गुल्ली खेलते रहता तो कभी घर पर और कभी स्कूल में पढा़ई करता रहता और शादी देखने के लिए चार-छः लोग पहुंँच जाते। कोई गिनती, कोई पहाड़ा, कोई शब्दार्थ, कोई जोड़-घटाना और कोई गुणा-भाग पूँछने लगता। और मैं अधिकतर उत्तर सही-सही बता देता। फिर बाबू के ऊपर मेरी शादी तय करने का सिफारिश और दबाव बढ़ने लगता। मैं और बड़के भइया (सबसे बडे़ भाई श्री श्याम बिहारी वर्मा) हमेशा शादी करने से मना करते थे।फिर भी कोई न कोई नात-रिश्तेदारों को लेकर बाबू के ऊपर शादी तय करने के लिए मनाने आ जाता। जबकि वह पहले ही बता देते थे कि मेरा लड़का बिल्कुल शादी के लिए तैयार नहीं है।लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं होते। और ये सिलसिला वर्षों चलता रहा।
मैं कक्षा आठ में पढ़ रहा था। उतरती ठंढ का महीना था। एक दिन सुबह मेरे मामा के एक रिश्तेदार मेरे ममेरे भाई और समाज व अगल-बगल के सम्मानित लोगों के साथ आ गए। हाल-चाल व चाय-पानी के बाद शादी की बात शुरू हुई। बाबू अभी शादी करने से मना करते रहे। दोपहर का खाना हुआ और फिर बात शुरू हुई। अंततः बाबू के ऊपर प्रसंशा, सिफारिश और सामाजिक दबाव का प्रयोग कर मेरे मना करने के बाद भी अपने पुत्री की शादी मुझसे करने की उनसे हामी भरवा लिए।
मैं उस समय दलान के पीछे वाले आँगन में था। माई (माँ), काकी(चाची) और दीदी (बहन) लोगों से बात कर रहा था।
छोटके भइया (श्री राम तीरथ वर्मा) दलान से आये और बोले- “बाबू महेश कै बियाह तय कै दिहिन। वरिक्षा लै लिहिन। अब गर्मी मै यनकै बियाह होये।”
“हम मना किहे रहेन, तो कइसै तय कै लिहे। कहाँ गये बाबू?” मैंने गुस्से से पूँछा।
“बाबू वनके सबका गाँव के बाहर विदा करै गये। मशीनी के आगे पहुँच गै होइहै।” उन्होंने बताया।
मैं रोने लगा। और कहा- “ठीक है! तो कर लियै शादी। हम शादी के पहिले घर से भागि जाब। औ नाबालिग कै शादी करावैक लिए थानेम एफआईआर दर्ज कराई देब। “
यह सुनकर माई छोटेके भइया से बोली- ” भइया तुरंत साइकिल से जाव अउर बताय दियो कि महेश एफआईआर दर्ज करावैक औ घर से भागि जाय कहत हैं, शादी होय नाही पाये। आपन बरिक्षा वापस लै लियै।”
भइया तुरंत साइकिल लेकर भगे।
वे लोग गाँव के पश्चिम सरहद पार कर अभिवादन कर बाबू से अलग होने ही वाले थे कि भइया पहुँच गये, उन्होंने जो-जो मैंने कहा था, सब बताये।
फिर सब लोगों ने मेरी जिद के सामने मेरी शादी करने के फैसले को छोड़ देना ही उचित समझा।
इस घटना का परिणाम यह हुआ कि इस के बाद बाबू व मेरे ऊपर मेरे शादी का दबाव हमेशा के लिए लगभग समाप्त हो गया।
वर्ष 2004 के आस- पास जब मैं सिविल सेवा के लिए प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था, तो शाम को साप्ताहिक इंडिया टूडे पत्रिका पढ़ रहा था। जिसे हम एक रूपया प्रति दिन के किराए पर पढ़ने के लिए राजू पुस्तक भंडार, कच्ची सड़क, दारागंज, इलाहाबाद से लाते थे।
जब मैं सहायक अभियोजन अधिकारी के उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल हो गया तो फिर शादी के लिए लोग आना शुरू कर दिये तथा बायो-डाटा का आदान – प्रदान प्रारम्भ हो गया। और, मेरे उत्तर प्रदेश सिविल जज (जूनियर डिवीजन) के पद पर चयन होने तथा दिनांक-21.06.2006 को जिला न्यायालय, गोरखपुर में अपर सिविल जज( जूनियर डिवीजन) कक्ष संख्या-23, गोरखपुर का पदभार किये जाने के बाद, यह सिलसिला बहुत तेजी से बढ़ा। हर हफ्ते दो-चार फोटो और बायो-डाटा आ जाता और अवकाश के दिन कोई न कोई शादी के सिलसिले में मुझसे मिलने मेरे सरकारी आवास जे-5, जजेज़ कालोनी, निकट इलाहाबाद बैंक, गोरखपुर आ जाता। जिनके आदर -सत्कार में मेरे प्रथम और सर्वप्रिय अर्दली श्रीचंद यादव जी पूरे तन-मन से लगे रहते।
मैं बिना किसी लाग-लपेट के चार बातें अवश्य बता देता था।
पहली, हमारा संयुक्त परिवार है , इसलिए सबसे पहले मेरे माता-पिता व भाइयों से मुलाकात कर लीजिए और मेरे गाँव जाकर रहन -सहन देख लीजिए।
दूसरी, मैं शाकाहारी हूँ, लेकिन छुआछूत में यकीन नहीं करता हूँ, इसलिए मांशाहारी व्यक्ति मेरे साथ खा सकता है व रह सकता ह।, हाँ, आदत किसी चीज की नहीं है, पर कभी-कभी शराब भी पी लेता हूँ।
तीसरी, भगवान व पूजा में विश्वास नहीं करता हूँ और न अपनी पत्नी से ऐसा अपेक्षा करता हूँ।
चौथी और सबसे महत्वपूर्ण, शादी पौथी-पत्रा और ग्रह-नक्षत्र से तय नहीं होगा, बल्कि रक्त-पत्रा अर्थात खून की जांच के आधार पर ही तय होगा। मतलब, मैं अपने खून के सामान्य जांच व विशेष रूप से एचआईवी, हिपेटाइटिस-बी, आर एचआर फैक्टर, थायरॉइड की जांच रिपोर्ट पहले मैं दूंगा, फिर लड़की ( मेरी प्रत्याशित अथवा इच्छुक पत्नी) के खून जांच रिपोर्ट मुझे मिलना चाहिए। जिससे यदि कोई गंभीर व लाइलाज़ बीमारी हममें से किसी में हो तो कोई भी शादी से इंकार कर सके और दोनों में पोगापंथ की जगह वैज्ञानिक सोंच की समानता के साथ नया जीवन प्रारंभ हो सके।
मेरी इन बातों के बाद, लगभग निन्यानबे प्रतिशत लोग रक्त परिक्षण रिपोर्ट की लेन-देन तो बहुत दूर की बात , दूबारा बात ही नहीं करते। शायद वे मुझे सनकी य पागल मान लेते, क्योंकि ऐसी बात उन्होंने संभवतः कभी सुनी ही नहीं होगी। और मुझे भी अवैज्ञानिक, पोगापंथी और गोबर गणेश वाले कर्मकांडियों से बचने तथा ऐसी विचारधारा के व्यक्ति का जीवन साथी बनने से मुक्ति का शुकून मिलता।
एक दिन, हमारे वरिष्ठ व बड़े भाई के तुल्य तत्कालीन अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, गोरखपुर आदरणीय और प्रिय रमेश यादव ने कहा -“महेश जी, मेरे एक मित्र के परिचित हैं ; फतेहपुर के रहने वाले हैं। वह अपनी बहन की आप से शादी के लिए आपको देखने सनडे को आना चाहते हैं।”
“ठीक है, सर। बुला लीजिये।”- मैंने जबाब दिया।
रविवार को दोपहर में चार लोग लखनऊ से टाटा सफारी से आये। उसमें से तीन लोग इंजीनियर थे। उनके साथ रमेश कुमार यादव सर भी थे। अतिथि सत्कार के बाद, शादी की बात शुरू हुई। मैंने अन्य लोगों की भांति, उनके समक्ष भी, अन्य बातों के अलावा, अवैज्ञानिक हिन्दू कर्मकाण्ड तथा वैज्ञानिक रक्त-पत्रा से शादी तय करने व करने की अपनी बात रखी। वे तुरंत खून की जांच कराकर रिपोर्ट आदान-प्रदान करने के लिए सहमत हो गए। वे पहले लोग थे, जिन्होंने शादी जैसी जीवन भर के महत्वपूर्ण संबंध के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अति आवश्यक रक्त -पत्रा के लिए सहमति व्यक्त किया।
कुछ दिनों में, मैंने अपने खून की विस्तृत जांच कराकर, जिसमें हिपेटाइटस, एचआईवी, थायरॉइड, आर एच -फैक्टर, इयोसनोफिल भी था, उन्हें भेज दिया।
कुछ दिन बाद, उनके द्वारा भी लड़की की रक्त परीक्षण रिपोर्ट मुझे प्रदान किया गया। दोनों के रक्त परीक्षण रिपोर्ट सामान्य थे। कुछ दिन बाद , लड़की वालों के आग्रह पर मेरे परिवार लोग लखनऊ जा कर लड़की देख लिये । सिर्फ मैं और मेरी माई (मां) नहीं गये, क्योंकि माई दोपहर 3 जुलाई,2006 को हुए ब्रेन हैमरेज से लगभग ठीक होने के बाद 16 अगस्त,2006 को दुबारा हुए ब्रेन हैमरेज से अभी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पायी थीं। इसलिए मैं माई के साथ घर पर रूका। उसी दिन दोनों पक्ष शादी के लिए सहमत हो गए।
कुछ समय बाद, घर पर ( गांव-भैरोपुर,जिला-बस्ती), 30 नवम्बर,2006 को माई की तबियत पुनः खराब हो गई। उल्टी-दस्त ठीक नहीं हो रहा था। शेष राम भैया ने फोन कर बताया। मैंने डॉक्टर आर के मल्ल को माई की स्थिति बताया। उन्होंने तुरंत माई को गोरखपुर ला कर नर्सिंग होम में भर्ती करने की सलाह दी। 1 दिसम्बर, 2006 की शाम को शेष भैया, भौजी और नन्हे भतीजे आशुतोष के साथ बोलेरो गाड़ी में माई को लेकर गोरखपुर एम.एन.नर्सिंग होम पहुंचे। जहाँ वह पहले भी दो बार भर्ती हुईं थी। न्यूरो स्पेशलिस्ट के डॉक्टर आर के मल्ल और हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर जयपुरिया ने उनकी जांच कर माई को आईसीयू में भर्ती कर दिया। डॉक्टर जयपुरिया ने माइल्ड हार्ट अटैक बताया और सुबह तक आब्जर्वेशन करने के लिए कहा।
दूसरे दिन दवाओं से माई को आराम था। वह सुबह चाय -बिस्कुट ली और मुझसे अच्छी से बातें कीं। उन्होंने शादी के समय के बारे में भी पूंछा और जल्दी शादी करने को कहा।
थोड़ी देर बाद, लगभग 10 बजे डॉक्टर जयपुरिया ने बताया कि माई को एसपीजीआई, लखनऊ रेफर कर रहे हैं,उनकी हालत ठीक नहीं है। पहले तो डॉक्टर मल्ल तुरंत सावित्री हास्पिटल में भर्ती करने के पक्ष में थे, लेकिन थोड़ी देर बाद वह डॉक्टर जयपुरिया से सहमत हो गए। शाम को लगभग 4 बजे जब माई को एम.एम. नर्सिंग होम से डिस्चार्ज कर एमबुलेंस में लेटाये, तो उन्होंने कहा-“भइया हम्यै कहूं न लइ चलौ, हम्यै घरे लइ चलो, अब हम बचब नाहीं।”
“माई, हम पीजीआई, लखनऊ लै चलित हइ। वह एकदम ठीक होइ जाबू।”
लेकिन, एसपीजीआई, लखनऊ पहुंचने के पहले ही, तेलीबाग में उन्होंने शेष भैया के हाथ से एक घूंट पानी पीकर हमारा साथ छोड़ दी, और चंद घंटे पहले कही अपनी बात को सही साबित कर दिया।
हम पीजीआई, लखनऊ के इमरजेंसी वार्ड के बाहर तेजी से पहुंचे, जहाँ डॉक्टर मल्ल के परिचित डॉक्टर साहब पहले से मेरा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने तुरंत माई का ईसीजी किया, जो सीधा-फ्लैट आ गया। डॉक्टर साहब ने माई की मृत्यु की पुष्टि कर दी। और, हम अथाह कष्ट और वेदना से उस 3 दिसम्बर 2006 की 12:45 बजे की घोर अंधेरी रात में कराह उठे। अव्यक्तेय दुःख के साथ आंसू रूकने का नाम नहीं ले रहे थे। वहीं से मोबाइल से घर ओर मऊगंज, रीवा में बड़े भैया को यह दुःखद सूचना दिये।
हम लखनऊ से चल कर सुबह गाँव उसी एमबुलेंस से पहुंचे। अथाह कठिनाइयों का आजीवन अडिग धैर्य से सामना करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व मेरे पूज्य बाबू जी कवड़े के किनारे बैठे थे। लोगों ने बताया कि आधी रात को मोबाइल से माई के जाने(मृत्यु) की सूचना मिलने के बाद से ही बिस्तर उठ कर यहीं बैठे हैं।अपनी दूसरी और अंतिम पत्नी के मर कर साथ छोड़ने की दर्द और व्यथा, उनके रोकने के सारे आंतरिक प्रयासों के बाद भी, व्यक्त हो रहे थे। अकेले में वे आँसुओं को रोक नहीं, भले ही हमारे सामने अपने धैर्य को प्रकट करने का सफलता से पूरा प्रयास किया। बहुत पहले ही अपनी पहली पत्नी के असमय मृत्यु के बाद बाबूजी ने दूसरी शादी माई से किया था, जिनके हम संतान हैं।
कुछ दिनों के बाद, हम माई के जुदाई का गम से धीरे-धीरे बाहर आने लगे।
स्थितियां सामान्य होने लगी।
एक दिन बड़े भइया ने मऊगंज से फोन कर बताया -” लड़की के भाई का फोन आया था कि अब शादी माई के मृत्यु के तिथि से एक साल बाद ही हो पायेगा, क्योंकि उनके पिता जी ने कहा है कि मृत्यु के बाद एक साल तक शुभ कार्य नहीं हो सकता है।”
मैंने भइया से तुरंत कहा- “फिर हम उनके यहाँ शादी नहीं कर सकते। हम जिस अंधविश्वास से निकलना चाहते हैं, वे उसी के साथ जीना चाहते हैं।मैं ऐसे घर में शादी नहीं कर सकता। नहीं तो शादी के बाद रोज वैचारिक मतभेद के कारण घर में कलह होगा। उन्हें शादी के लिए मना कर दीजिए।” भइया भी मेरे विचार से पूरी तरह सहमत थे। उन्होंने तुरंत मेरे निर्णय से उन्हें अवगत करा दिया। वे अपने अंधविश्वासों से और हम अपने वैज्ञानिक विचारों से समझौता नहीं कर सकते थे। फलतः वैज्ञानिक विचारों से प्रारम्भ होने वाला यह रिश्ता बनने के पहले ही समाप्त हो गया। और, यह हमारे लिए अच्छा रहा।
कुछ दिन बाद, फिर हमने राष्ट्रीय हिंदी और अंग्रेजी समाचार पत्रों व ऑनलाइन शादी. कॉम साइट पर शादी के प्रस्ताव के आमंत्रण का विज्ञापन देना शुरू किया। जिसमें भी , पहले की तरह “जाति, धर्म और जन्म स्थान का बंधन न होने तथा रक्त-परीक्षण रिपोर्ट का आदान-प्रदान अनिवार्य ” होना प्रकाशित कराया। पुनः फोटो -बायोडाटा का आदान- प्रदान होने लगा। लेकिन, रक्त-परिक्षण रिपोर्ट को देने के बात पर लड़की पक्ष पीछे हट जाता।
अंततः एक दिन मेरे मोबाइल पर एक शालीन महिला का फोन आया। उन्होंने अपना नाम पुष्पा वर्मा बताते हुए कहा कि वह “टाइम ऑफ इंडिया ” समाचार पत्र में शादी का विज्ञापन देख कर मुझे अपनी छोटी ननद की शादी के लिए फोन कर रही हैं। उन्होंने अपनी ननद अमृता प्रीतम के बारे में पूरी जानकारी देने के साथ- साथ अपने पति मि. राजेश कुमार वर्मा के आईआईटी से फिजिक्स से एमटेक होने व स्वयं के एमबीए होने और अपने संयुक्त परिवार के सदस्यों के बारे में की जानकारी देने के साथ- साथ मेरे पूरे परिवार के बारे में मुझसे फोन पर ही जानकारी प्राप्त की। उन्होंने लड़की का फोटो-बायोडाटा के अलावा रक्त -परिक्षण रिपोर्ट के आदान-प्रदान की सहमति तुरंत ही व्यक्त किया। जिससे प्रथम दृष्टया वैज्ञानिक विचारधारा की समानता परिलक्षित हुआ। कुछ ही दिनों में, फोटो-बायोडाटा और शादी के दोनों प्रत्याशी-मेरा ( महेश चन्द्र वर्मा) और अमृता प्रीतम के रक्त परीक्षण रिपोर्ट का आदान- प्रदान हो गया। दोनों का रक्त-परीक्षण रिपोर्ट -सामान्य था। मेरा रक्त समूह- “ए+” और अमृता प्रीतम का “ओ+” है। फिर, दोनों पक्ष ने एक दूसरे के घर-परिवार देखे। और शीघ्र ही शादी तय हो गई। 25 नवम्बर, 2007 को हम दोनों अपने घर -परिवार, हित-मित्रों और नात-रिश्तेदारों के समक्ष, उनके अमूल्य योगदान, शुभकामना व आशीर्वाद के प्रकाश में, इस रक्त-पत्रा आधार पर तय हुई शादी के नवीन युगल बन गए। और आज हम दो सुंदर और स्वस्थ प्यारे बच्चों-अनिश और आरव के साथ चार बन गए हैं।
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धन्यवाद