रक्षा बंधन

लेखक परिचय :विमलेश गंगवार ‘दिपि’ संस्कृत की पूर्व प्रवक्ता हैं ।इनके चार उपन्यास और दो कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। प्रस्तुत है इनकी एक लघु कथा।
जया राखी बांधने आई थी अपने इकलौते भाई विक्रम को । पता नही इस बार चार दिन पहले क्यों आ गई ।शायद नियति ले आई थी । वरना विक्रम के लिए रोती बिलखती अम्मा के सूखे मुंह में पानी कौन डालता ।
अफगानिस्तान की हर खबर अम्मा देख रहीं थीं । दूर दर्शन के सामने से हटने का नाम ही नही ले रहीं थी , शायद इस आस में कि तड़पती भागती भीड़ में कहीं उनका दिल का टुकड़ा दिख जाये पर ………
कहीं आ जाये विक्रम! राखी बंधवाने …!!
कल ही तो रक्षाबन्धन है । सोचती हुई जया कमरे में गई और ऑसू भरी ऑखों से उसने राखी को निहारा और फिर रख दिया पैकेट में । दिन में वह कई बार ऐसा करती और चुपचाप ऑसू पोंछ कर कमरे से बाहर आ जाती ।
अरी जया , ओ बिटिया सुन तो ज़रा अम्मा जोर जोर से चिल्लाने लगी ।
क्या अम्मा …..? वह देख भारतीयों को लेकर हवाई जहाज दिल्ली आ रहा है ।
अच्छी खबर है अम्मा ….बहुत अच्छी । वह सोचने लगी तो क्या मेरा भाई भी आ रहा होगा ? राखी भी तो ब॔धवानी है उसे ! इस बार उसके मनपसंद की राखी लेकर आई हूं , जैसी उसने फोन पर बताई थी । वरना हजार नखरे दिखाये थे पिछली राखी पर ।
पर …..न आ रहा हो तो !! ज़रूरी नही हर कोई वापस आ जाये ……बेहद दर्दनाक चीखती चिल्लाती भीड़ , भगदड़ और प्राणों की रक्षा के लिए गुहार लगाते तमाम लोग, बेहिसाब गोली बारूद में जलते तड़पते लोंगों के सही ऑकड़े कौन दे पायेगा कि कौन आया कौन नही कैसे हिसाब रख पायेगा कोई ??? ओह मेरा विक्रम भाई …..मेरा दुलारा प्यारा..भाई । जया के मन में शोक के मेघा छाने लगे , ऑखों से सावन बरसने लगे , पीड़ा की बिजलियां कौंधते लगी ।
घर का द्वार खटका ।
मां के साथ जया दौड़ती हुई भागी ।द्वार खोला तो सामने विक्रम खड़ा था ।गन्दे फटे कपड़े पहने ,बढ़ी हुई दाड़ी वाला , पागल बदहवास सा विक्रम…….
मेरा बेटा मेरे कलेजे का टुकड़ा मेरे दिल का चैन , कहती हुई अम्मा उससे लिपट गई और जया ………उस ने भी आगे बढ़कर विक्रम के मिट्टी से सने उलझे हुये बालों को अपने हाथ से सुलझाते हुये , रक्त रंजित माथे को चूम लिया । यह चोटें कैसे लगीं मेरे वीरन, मेरे भैय्या…………?
ऑगन में पड़े पलंग पर धम्म से वह गिर गया , बेजान सा ।
राखी लाई मेरी वह बोला ।
हां भैय्या ।जैसी तुम ने बताई थी फोन पर , वैसी ही लाई हूं भाई।
तो फिर बांध….उसने अपना हाथ फैला दिया । जया ने उसके माथे पर रोली का टीका लगा दिया और सूजी हुई कलाई पर चम चमाती हुई राखी बांध दी ।
साड़ी खरीदी थी तेरे लिए और अम्मा के लिए …….जाने कहां गिर गई पता ही नही चला कि बैग कहां गुम हो गया । वह धीरे धीरे बोल रहा था ।
इस बार मुझे साड़ी गहना रुपया नही चाहिए भाई ……….बस अब तुम पैसा कमाने कहीं नहीं जाना भाई
हां बहना कहीं नही जाऊंगा …….यहीं रहेंगे …..हम सब साथ साथ।
भैय्या मिल गई मुझे मेरी दक्षिणा …..
अम्मा , जया और विक्रम तीनों की ऑखों में ऑसओं की सुनामी तो थी किन्तु तीनों के दिल मानों मलयानल पर्वत से आती हुई शीतल मन्द सुगन्धित हवाओं से सुवासित थे ।…..