घर वापसी

 घर वापसी

विमलेश गंगवार  

[लेखिका ,संस्कृत की भूतपूर्व प्रवक्ता हैं ।इनके तीन उपन्यास और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ ,कविताएँ और लेख प्रकाशित होते रहते हैं ।]

रात दिन चलने के बाद जब वह अपने गांव वापस आये तो हारे थके तो ही , अपना घर खोजते रहे।यह नीम का पेड़ है यही तो द्वार पर था न ।न द्वार न दीवारें न झोपड़ी पर छाया हुआ फूस ।दो दिन दो रात चलते चलते जैसे तैसे घर आगये बड़ा सकून हुआ उन्हें सोच कर ।अपने घर आकर ।
फूल बती बोरा खोल कर चदरा बिछा जरा ।बिटौनी को लिटा दें कंधा दुःख रहा है बहुत ।मिट्टी के कुछ समतल ढेर पर उसकी पत्नी फूल बती ने फटा चादर बिछा दिया।
फूल बती ने गोद के बच्चे को और गंगा राम ने कंधे पर सोये बच्चे को चादर पर सुला दिया ।राधा और सोनू भी उसी चादर पर बैठ गये।
दस साल पहले अपने गाँव से गये थे कमाने खाने ।जिस दुकान पर काम करते थे वह बन्द हो गई ।सब कुछ बन्द ।सन्नाटा पसरा था सारे शहर में ।जी जान से कोशिश की पर काम नहीं मिला कोई बर्तन झाड़ू पोंछा कराने तक को तैयार नहीं नही हुआ ।
जो पैसा था खाने पीने में खर्च हो चुका था ।एक फूटी कौड़ी भी नही बची थी ।और फिर भागे गाँव की ओर ।
गंगा राम की दृष्टि अपने घर पर घूमने लगी ।बड़ी बड़ी कटीली घास उग आई थी।घर क्या ऊंची नीची मिट्टी का मलबा हो गया था
गाँव वाले आ गये हाल चाल पूछने लगे ।भैय्या कैसे आये पैदल हमें तो अचरज हो रहा है ।वह भी रात और दिन फूल बती और चार बच्चों के साथ ।
का बताएं चाचा बस चल पड़े …चलते रहे ।
बात चीत सुनकर बच्चे जाग गये और रो रो कर खाना मागने लगे ।
वयो वृद्ध देख कर बोले रोओ नहीं , रोओ नहीं ।बच्चों के चेहरे भूख से मुरझा गये हैं ।रोते रोते ऑखे लाल हो गई हैं
फूल बती और गंगा राम के सूखे चेहरे रोते बच्चों को देखकर और सूख गये हैं ।उन्हें पता है उनके बच्चों ने कुछ नहीं खाया है कल से ।राधा तो बुखार से तप रही है ।
बुजुर्ग उठकर अपने घर चले गए और कुछ देर बाद गरम दाल चावल लेकर लौटे ।
दाल चावल देख बच्चों के धैर्य का सेतु टूट गया और सब एक साथ खाने लगे ।
गरम दाल चावल की सौधी ख़ुशबू फूल बती और गंगा राम को विचलित कर रही थी उन्हें लग रहा था एक साथ पूरा थाल पेट में रख लें और सम्पूर्ण भूख मिटा लें ।
पर गाँव वालों का लिहाज था उन्होंने खाना शुरू ही नहीं किया था
पर भूखे पेट की अगन तो चेहरे से ही पता लग जाती है
सिकुड़ी ऑखे,झुलसे कपोल सूखे अधर दोनो के उदास
चेहरे गांव वालों से छुपे ना थे ।
गाँव वालों के बीच घूँघट किये महिला खड़ी थी बोली
गंगा राम भैया तुम हो खाओ और दुल्हन को खिलाओ
न जाने कब से भूखे हो
अब देर न करो
वह दोनों इसी प्रतीक्षा में थे कब कोई कहे तब वह खायें
बच्चों के साथ वह भी खाने लगे जल्दी जल्दी …..
एक सज्जन बोले अभै तौ चच्चा लय आये हैं शाम का हम लयबै ।
फूल बती ने बड़ी कातर दृष्टि से उन्हें देखा ।
गंगा राम बोले अच्छा भैय्या ……
कुछ देर बाद बातचीत करके सभी अपने घर चले गये ।
उंगलियां चाटते हुये गंगा राम बोले …..छक कर खाबा है ।
हाँ चच्चा बहुत सारा दे गये हैं । फूल बती बोली ।
खाना खाकर बच्चों के साथ वह दोनों भी चादर के किनारों पर सो गये ।
इतनी गहरी नींद सोये थे अभी उन्हें यह सोचने की भी फुरसत नहीं थी अब आगे कैसे जियेगे कैसे खायेंगे पियेंगे
क्यों कि यह तो तय था अगर गाँव में रोजगार होता तो वह दस साल पहले ही शहर क्यों जाते ……..
टूटी फूटी मिट्टी की दीवारों केमध्य घास फूस उगे अपने
ऑगन में वह सो रहे थे अपने परिवार के साथ ……..
बड़े सुकून से बड़े विश्वास से । अब यहाँ से कोई हटायेगा तो नहीं ।