रोटी सी सोंधी थी माँ

छप्पन भोग लगी
अब मिलती है थाली
पर पिता की टेढ़ी.मेढ़ी
बिली रोटी सी स्वादिष्ट नहीं
देते थे रोटी संग चीनी सी लोरियाँ
गोदी में बैठा कर
कौर खुद तोड़ कर
बोर घी में, नमक संग, खिलाते थे सोंधी रोटियां
छोड़ गई थी माँ
घातक बीमारी की मार से
सिखा गयी थी
रोटी सेंकना
उसे पता था वो नही बचेगी
छोड़ कर भूखे बच्चों को
चैन से भी न मर सकेगी
इसलिए,,
जाने से पहले वो
पिता को रोटियां खाना
और सेंकना सिखा गयी थी
माँ के रहते पिता ने
पानी भी न पिया था लेकर
देती थी बेहिसाब प्यार
न थकती थी
न कभी खीझती थी
प्यार की पराकाष्ठा थी
पिता की रोटी सी सोंधी थी
मेरी माँ ।
—सीमा पटेल