वरिष्ठ उपन्यासकार और कथाकार विमलेश गंगवार ‘ दिपि’ से बातचीत

 वरिष्ठ उपन्यासकार और कथाकार विमलेश गंगवार ‘ दिपि’ से बातचीत

परिवर्तन :कुछ अपने बारे में बतायें ।

विमलेश गंगवार: मेरा जन्म जिला बरेली के पचपेड़ा गाँव ( उत्तर प्रदेश) मे हुआ था ।माता स्व .श्री मती सत्य भामा देवी जी थी एवं पिता स्व .श्री चेत राम गंगवार जी कृषक एवं राज नेता थे ।प्रारम्भिक शिक्षा पास के गाँव हिमकर पुर चमरौआ में और कक्षा 9 से कक्षा 12 तक राजकीय बालिका इन्टर कालेज बरेली में सम्पन्न हुई ।
B.A. साहू गोपीनाथ गर्ल्स डिग्री कालेज से किया ।M.A. ( बरेली कालेज बरेली ) से किया ।जो अब रोहिलखण्ड विश्व विद्यालय है ।B.Ed .महिला डिग्री कालेज लखनऊ से किया ।बचपन से ही साहित्य में रुचि रही ।पढ़ने में भी और लिखने में भी ।बागवानी और भ्रमण का शौक है ।G.G.I.C.इन्दिरा नगर लखनऊ एवं G.G.I.C नरही लखनऊ में सेवा रत रही ,संस्कृत प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त हूँ ।अब स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हूँ।

परिवर्तन :आपके अनुसार वर्तमान में साहित्य की स्थति क्या है? विशेषकर हिन्दी साहित्य की ?
विमलेश गंगवार: वर्तमान में हिन्दी साहित्यकी स्थिति जिस ऊंचाई पर होनी चाहिये , नहीं है ।आप पान की दुकान पर या मांल और सिनेमा में भीड़ देख सकते हैं पर पुस्तक की दुकान पर नहीं ।हाँ पुस्तक मेले में भीड़ देख सकते हैं पुस्तकें बिकती भी खूब हैं ।एक वर्ग ऐसा है जो साहित्य रचना में संलग्न है ।और पाठक वर्ग भी है जो कहानी उपन्यास और कविता आदि विधाओं में रूचि रखता है ।अभी भी साहित्य प्रेमी अपने घरों में अपने पसंदीदा पुस्तकों का संग्रह करते हैं ।

परिवर्तन: साहित्य में और किन किन बातों का समावेश होना चाहिये ?

विमलेश गंगवार: साहित्य का मतलब है सहित होना , साथ होना ।सबके साथ होना विना भेदभाव के ।
अधिकांश लोग दूसरे के दुःख परेशानी को नजरअंदाज करते हुये स्वार्थ परता की ओर भागे जा रहे हैं ।
कलमकार का कर्तव्य है अपने शब्दों को साहित्य की किसी भी विधा में रोचक ढंग से ऐसे प्रस्तुत करें जिसमें समाज की भलाई के भाव हों ।दुनिया की हर चीज मेरे लिये ही हो यह भाव न होकर दूसरों को भी वह सब कुछ मिलना चाहिए यह भी भाव होना चाहिये ।हर क्षेत्र में नैतिकता का भाव जन जन में भरना साहित्य कार का ही काम है ।

परिवर्तन :सोशल मीडिया के आनें से साहित्य में क्या आमूल-चूल परिवर्तन हो रहा है ?
सोशल मीडिया के आनें से साहित्य में काफी कुछ अवश्य बदल रहा है ।अद्भुत क्रान्ति हो रही है ।
हर किसी को लिखने पढ़ने की सहूलियत हो गई है ।अब रचनाकारों को पब्लिशर्स के आगे लाइन लगा कर महीनों इन्तजार नहीं करना पड़ता है ।सोशल मीडिया के कारण वह स्वयं वह स्वयं ही लेखक है प्रकाशक है और पाठक भी है ।सोशल मीडिया से समृद्ध साहित्य की उपलब्धता बढ़ गई है ।या यों कहें कि अभिव्यक्ति आसान हो गई है ।
पर ऐसा नहीं है कि पुस्तकों और प्रकाशकों का अस्तित्व नही रहेगा ।वह अवश्य रहेगा ।साहित्य प्रेमी मीडिया का प्रयोग करने के बाद भी अपनी बुक सेल्फ़ों को पुस्तकों से सजायेंगे अवश्य और पढ़ेंगे भी जरूर ।

परिवर्तन : मन पसंद लेखक कौन हैं ? क्यों ?
विमलेश गंगवार : वैसे तो एक से एक उत्कृष्ट रचना कारों से हिन्दी साहित्य परिपूर्ण है ।किसी एक का नाम लेना मुश्किल कार्य है पर फिर भी मैं आदरणीय प्रेमचंद जी का नाम लुंगी क्यों कि उन्होंने दुखी गरीब आदि शोषित वर्ग की व्यथा को अपनी लेखनी से लिखा है ।पूस की रात ,ईदगाह और बूढ़ी काकी आदि कहानियों को कौन भुला सकता है ।आदरणीय फणीश्वरनाथ रेणु की मारे गये गुलफाम कहानी के हिरामन गाड़ीवान को कैसे भुलाया जा सकता है ।इसी कहानी पर तीसरी कसम फिल्म बनी है ।
रेणु जी की ही पंचलाइट कितने सुन्दर ढंग से लिखी गयी है ।खरीद तो लाये पर गाँव में पंचलाइट को जलाना कोई भी नही जानता ।गुलरी काकी , मुनरी और गोधन को कोई कैसे भूल सकता है ।
अभी एक कहानी ‘ लंगड़ी बहू, Live सुनी जिसे तेज प्रताप जी नें लिखा है ।अगर किसी स्त्री के शरीर में कोई कमी है तो समाज उसे सम्मान नहीं देता ।इन्हीं विचारों से ओत-प्रोत है कहानी
इस कहानी में सच्चाई भी है और पीड़ित पात्र के अन्तर्मन की व्यथा भी हर पल परिलक्षित होती है ।

परिवर्तन :स्त्री विमर्श पर साहित्य केवल स्त्रियों को ही लिखना चाहिए ?

विमलेश गंगवार :कहा जाता हैकि महिलाओं की दुखद शोषण प्रताड़ना घोर उपेक्षा आदि परिस्थितियों पर केवल महिलाओं को ही लिखना चाहिए ,क्योंकि वह इन सब परिस्थितियों की भुक्त भोगी होती हैं ,Feminism या नारी वाद की तमाम हालातों से वह गुज़र चुकी होती हैं ।पर मेरे अनुसार ऐसा नही है ।जैसे पुत्री को ससुराल में अगर प्रताड़ित किया जाता है तो उस कष्ट को पिता भी पूरी तरह भुगतता है ।बेटी के साथ ऑसू पिता के भी गिरते हैं ।मेरे कहने का तात्पर्य यह है कि पिता भी उन प्रवृत्तियों का जानकार हो जाता है।वह लिख सकता है feminism पर ।एक और उदाहरण देना चाहूँगी ।माँ से ज्यादा बच्चे के विषय में कौन जान सकता है । बाल्यावस्था का वर्णन माँ से अच्छा कोई नहीं कर सकता है तो फिर महान पुरुष कवि ने सूरदास जी ने कृष्ण के बाल रूप का वर्णन कैसे कर दिया ?वह भी इतना सुन्दर वर्णन कि विश्व में उनके समान कोई भी नहीं कर सका ।स्त्री-पुरुष दोनों ही स्त्री विमर्श पर साहित्य सृजन कर सकते हैं ।

परिवर्तन :आज कल अलग-अलग क्षेत्रों जैसे इंजीनियरिंग,चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों के लोग भी साहित्य की भिन्न भिन्न विधाओं में लिख रहे हैं,इससे साहित्य पर क्या फर्क पड़ेगा ?
विमलेश गंगवार: इस बात से साहित्य और समृद्ध शाली होगा ।अलग अलग क्षेत्र की जानकारी उन की रचनाओं में होगी । और रचनाकार भी अपने क्षेत्र के मायनस और प्लस को साहित्यिक क्षमताओं के माध्यम से सबके साथ शेयर कर सकते हैं ।साहित्य में जितनी विभिन्नतायें होंगी ,उतनी अनुभूतियां और भावनायें होंगी साहित्य उतना ही उत्कृष्ट और सुन्दर होगा ।

परिवर्तन:आप लेखन के क्षेत्र में नये लोगों को क्या सन्देश देना चाहेंगी ?विशेषकर नये कथाकारों को कैसे शुरूआत करनी चाहिए?

विमलेश गंगवार: मैं उन्हें यही कहना चाहूँगी कि साहित्य का क्षेत्र बहुत व्यापक और पवित्र होता है ।रचनाकारों को अपनी कथा या उपन्यासों को जन मानस के कल्याण और उद्देश्य पूर्ण विचारों से परिपूर्ण लिखने चाहिए ।अन्धविश्वास,दहेज़, महिला शोषण,उत्पीड़न, अशिक्षा आदि समाज की कुप्रवृत्तियों के निवारण के लिए जो प्रेरणादायक बने ।ऐसे कथानक लिखने चाहिए । कभी कोई घटना, स्थल और व्यक्तित्व हृदयस्पर्शी हो जो विस्मृत न होता हो तो शुरुआत वहीं से कर देनी चाहिये ।उसको साहित्य की किसी भी विधा में रोचक ढंग से शब्दों में पिरोयेंगे तो वह रचना निश्चित रूप से सजीव सरस और मनोरंजक होगी ।जीवन के सुविचारों को कलम से अभिसिंचित करते हुये आगे बढ़ेंगे तो रचना प्रभावशाली बनेंगी ।वैसे मैं यह मानती हूँ कि हमारे नये साथी हम से कहीं अधिक Talented और होनहार हैं वह जैसा चाहेंगे वैसा अवश्य लिख लेंगे ।

परिवर्तन : उपन्यास या कहानी लिखने के लिये पहले पूरा प्लाट बनाना होगा या जैसे जैसे कहानी बढ़ती जाती है वैसे वैसे रास्ते दिखाई पड़ेंगे ?

विमलेश गंगवार: मुख्यतः हम लिखना क्या चाहते हैं यह तो सबसे पहले निर्धारित करना पड़ेगा । कहानी का अंत क्या चाहते हैं ? यह भी तय करना पड़ेगा ।बाकी बीच का रास्ता अपने पात्रों के आपसी संवाद,वेषभूषा,रहन सहन , भाषा आदि के माध्यम से तय करना पड़ेगा ।पात्र गाँव के हैं या शहर के,अशिक्षित हैं या शिक्षित,किस वर्ग के हैं, उनकी आर्थिक स्थिति किस स्तर की है आदि के अनुरूप भाषा का प्रयोग करना होगा ।उपन्यास तो बड़ा होता है लिखते समय तमाम घटनायें स्वतः जुड़ती चली जाती हैं ।मैंने कश्मीर की यात्रा काफी पहले की थी ।श्री नगर,पहलगांव ,अनन्त नाग , वहां के गार्डन, शंकराचार्य मन्दिर,झेलम नदी, बहुत सुन्दर स्वर्गिक पर्वतीय वातावरण देखा जिसे मैं भूल नहीं पाई ।घर वापस आ गई लेकिन मन से कश्मीर की धरती पर ही घूमती रही ।
रात दिन मन में यही प्रश्न कौंधते रहे कि उस धरती का सब कुछ इतना सुन्दर ………. फिर इतने गोले बारूद के ढेर क्यों? है तो धरती का स्वर्ग ,फिर वहां के लोगों एवं महिलाओं का जीवन नारकीय क्यों ?
और फिर ‘ सिसकती झेलम,उपन्यास लिखा गया जिस दिन सिसकती झेलम उपन्यास पूरा हुआ उस दिन मन का बोझ कम हुआ और अपार प्रसन्नता मिली । मेरे कहने का मतलब है कि जिसे भूल न सको उसपर अच्छा लिखा जा सकता है।

परिवर्तन :संस्मरण के विषय में क्या कहना चाहेंगी ?

विमलेश गंगवार: संस्मरण तो ऐसा लगता है जैसे लिखे ही नहीं जा रहे हैं या बहुत कम लिखे जा रहे हैं ।
आदरणीया महादेवी जी ने अनेक संसमरण लिखे हैं जो लोग उनके जीवन में रचे बसे थे उनके आन्तरिक व्यक्ति बोध को अपने शब्दों के माध्यम से इतने सजीवता से लिखा है कि पाठक को लगता है वे पात्र आज भी सदेह हैं और चल फिर रहे हैं ।संस्मरण कल्पना के सहारे नही लिखे जा सकते हैं ।पूर्ण रूप से सत्य पर आधारित होते हैं
संस्मरण तो स्मृतियों के झुरमुट होते हैं ।यादों की फुलवारी होते हैं ।संस्मरण में आत्म कथ्य नहीं होता है ।सब कुछ दूसरे का होता है जिसके बारे में आप लिख रहे हैं ।बीती हुई सुखद या दुखद परिस्थितियों का सजीव चित्रण ही संस्मरण हैं ।अपनी लेखन शैली से भूतकाल में घटित घटनाओं तथा हालातों को वर्तमान में ले आना ही संस्मरण है ।जो जैसा है उसे वैसा ही लिखना है ।न कोई दोषारोपण और न महिमा मंडन ।
मुझे संस्मरण लिखना बहुत अच्छा लगता है ।क्यों कि हम Past को अपनी आज की पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं ।संस्मरण भी लिखने चाहिए ।हिन्दी साहित्य और समृद्ध शाली होगा ।

परिवर्तन :परिवर्तन साहित्यिक मंच के विषय में आपके क्या विचार हैं?

विमलेश गंगवार:यह मंच साहित्य प्रेमियों के लिए आवश्यक था ।रचनाकार इस मंच से बहुत लाभान्वित हो रहे हैं ।श्री तेज प्रताप नारायण जी ने परिवर्तन साहित्यिक मंच के नाम से ऐसा सघन बट वृक्ष रोपा है जिसकी छाया रचनाकारों को लाभान्वित कर रही है ।अभी Lock down में सब कुछ बन्द था लोग घरों में बन्द बैठे थे तब मंच ने प्रति दिन किसी न किसी कवि या लेखक को उनकी रचना के साथ Live कर साहित्य का प्रसार किया वह सराहनीय है। यह साहित्य प्रेमियों और पाठकों दोनों के लिये कल्याण कारी है ।और इस प्रतिष्ठित मंच से जुड़े लोग अनेक विधाओं में सुन्दर सार्थक साहित्य का सृजन कर रहे हैं ।
परिवर्तन साहित्यिक मंच के लिये हार्दिक शुभकामनाएं ।