विधा – गीत (सुगत सवैया )

रीना गोयल ( हरियाणा)

रिमझिम  सी पड़ी फुहारों का  ,श्रृंगार  धरा कर इतराई ।

आया मौसम बरसातों का ,   घिर आयी आँगन बदराई ।।

 खिला-खिला सा नील गगन है  ,छायी धरती पर हरियाली 

तपती आकुल  भू को सिंचित , करती  बूँदनियां  मतवाली  

मन का वृंदावन झूम रहा , देह बाँसुरी धुन  लहराई ।।1।।

आया मौसम बरसातों का , घिर आयी आँगन बदराई ।।

सौंधी माटी  की मधुर  गंध ,  हिय के सब  ताप हरे मेरे ।

हर शाख-शाख पर बैठे खग ,कलरव करते चित के चेरे ।

टप-टप ,छप-छप की लिए थाप ,बूंदों की बजती शहनाई ।

आया मौसम बरसातों का ,    घिर आयी आँगन बदराई ।।

घनघोर घटा की थिरकन पर ,सुर साध जिया नग़मे गाये ।

सैलाब उमड़ता भावों का ,     कोमलता सपनों पर छाये

शब्दों की लड़ियाँ गूंथ रही , ले ले कर कविता  अँगड़ाई ।।

आया मौसम बरसातों का ,    घिर आयी आँगन बदराई ।।