विमलेश गंगावार ‘दिपि’ की कहानी ‘ रिश्तों के उस पार ‘
[लेखिका ,संस्कृत की भूतपूर्व प्रवक्ता हैं । इनके तीन उपन्यास और एक कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपकी कहानियाँ ,कविताएँ और लेख प्रकाशित होते रहते हैं ।]
मेन मार्केट का चौराहा पार कर लगभग बीस मीटर दायें नवीन जी का घर है। दिल्ली का पाॅश इलाका, अगल-बगल भव्य गगनचुम्बी इमारतें। सभी लोग उच्च पदस्थ एवं अमीर। यहाँ बच्चों का खेलना-गुनगुनाना सुनाई नहीं देता। आफिस से लौटने के बाद अधिकांश लोग अपने टी0वी0, कम्प्यूटर और लैपटाप के सामने बैठे रहते हैं। दिन भर का सन्नाटा पसरा रहता है। हाँ गाड़ियों को स्टार्ट करने की आवाजें एंव उनके बेसुरे हार्न जब तब सुनाई देते रहते हैं।
घरों में काम करने वाली बाईयाँ (नौकरानी) आती जाती रहती हैं वह जब परिचित बाईयों से मिलती हैं तो आपस में बातचीत कर लेती है। उनकी बातचीत क्या पूरी न्यूज बुलेटिन, जिससे कई घरों की खबरों का खुलासा एक साथ होता है।
शिवरानी नवीन जी के घर तमाम छोटे बड़े काम करती है। दूसरे घर में काम करने वह निकली तो निर्मला दौड़ती हुई उनके पास आई और बोली-
अभी कितनी देर है मट्टी उठने मंे?
अभी कहाँ? अभी तक तो कोई नहीं आया है। लड़का कहूं विदेस माँ है और लड़की दूर है- आयेंगें जरुर, माता जी बता रही थी-शिवरानी की बात पूरी भी नहीं हो पाई थी कि निर्मला बोली-
नवीन साहब जी का शरीर पड़ा रहेगा, यह तो सड़ जायेगा तब तक।
अरे यह बड़े लोग, बड़ी बातें माता जी रो-रोकर पछाड़ें खा रही हैं, हम कब तक बैठे माता जी के पास-झा साहब के बर्तन पड़े हैं करना तो हमंे ही है, देर हो जायेगी तो झा मैडम की चार बातें सुननी पड़ेंगी शिवरानी बोली। हमारे आदमी खतम भये थे तो पूरा कुटुम परिवार और सारा गाँव आ गया था हमारे घर।
अरे यह हम गरीब लोगन की बात है शिवरानी। इन अमीर लोगन को मरे जिये कभी फुरसत नहीं। निर्मला बोली।
नवीन जी जब गाँव से आये थे तो उस समय इतने ऊँचे पद पर कम लोग ही काम करते थे। नवीन जी अपने पद के मद में व्यस्त और उनकी पत्नी कमला घर की साज-सज्जा एवं तमाम सुखों मं मस्त। गाँव के लोग आते तो ड्रांइग रुम की बजाय गैरेज में बिठाकर, घर के नौकर ही उन्हें विदा कर देते।
बेटा सूर्यांश पढ़कर इंजीनियर बन गया और बेटी सूर्या का उच्च शिक्षा के बाद डा0 आलोक से विवाह कर दिया। दामाद डा0 आलोक ने चेन्नई में अस्पताल बना लिया। सभी रोगों के विशेषज्ञ अस्पताल में बैठते है। डा0 आलोक हृदय रोग विशेषज्ञ। कुछ ऐसी लक्ष्मी की कृपा कि रात दिन बरसती रहती।
बेटा सूर्यांश पुल निर्माण में इतना सिद्ध हस्त है कि कई देशांे में आयोजित सेमीनारों में गया। हर जगह उसको सम्मान मिला। अन्त में सरकारी नौकरी छोड़ वह दुबई में परिवार के साथ बस गया।
आज नवीन जी ने महीनों की बीमारी के बाद दम तोड़ दिया है। गठिया से पीड़ित उनकी पत्नी कमला उनके साथ अन्त तक रही। कमला को अपना शरीर उठाना मुश्किल था परन्तु नौकरानी शिवरानी की मदद से उन्होंने पति की सेवा उनकी अन्तिम सांस तक की।
बेटा बहू और बेटी सूर्या के फोन बराबर आते रहते थे। पापा कैसे हैं। दवा समय से देती रहियेगा, हम अभी आ नहीं सकते, छुट्टी नहीं मिल पा रही है।
कमला ने अभी पन्द्रह दिन पहले दोनों को फोन करके बताया लगता है तुम्हारे पापा अन्तिम सांसे ले रहे हैं तुम दोनों को बहुत याद कर रहे हैं। तुम लोग आ जाओ तो अच्छा लगेगा। पर इतने व्यस्त कि सूर्या और सूर्यांश ने फोन पर पुनः अपनी विवशता बता दी।
सामने वाले घर से एक लड़का निकला और शिवरानी से बोला-तुम्हें मैडम सुनीता बुला रही है।
शिवरानी जल्दी से सुनीता झा मैडम के घर गई तो मैडम की आंखे अंगार उगल रही थी।
अब मिली फुरसत तुझे……..सुनीता मैडम बोली।
आपके बगल वाले नवीन साहब नहीं रहे मैडम…….
मालुम है……… मालुम है……… चल जल्दी से नाश्ता बना…………….।
शिवरानी को लगा सुनीता मैडम चाय नाश्ता बनवा कर माता जी के लिये भिजवायेगी, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।
मैडम ब्रेड मक्खन खा चाय पीकर, साड़ी बदल मैचिंग की चप्पल पहन कर नवीन जी के घर चली गयी।
शिवरानी सोचने लगी इन अमीर लोगों का दिल कैसे मान जाता है…….
बगल के घर में नवीन साहब की लाश पड़ी है, माता जी का रो-रो कर बुरा हाल है और मैडम के पेट में गटागट चाय ब्रेड कैसे चली गयी।
काश माता जी को एक कप चाय भिजवा देती सुनीता मैडम, तो उनके सूखे गले को राहत मिल जाती।
शिवरानी को अपने गाँव की याद आ गयी। दस साल पहले जब वह अपने गाँव में रहती थी तब जब तक गाँव में किसी की लाश पड़ी रहती तब तक गाँव का कोई भी आदमी अन्न को हलक के नीचे नहीं उतारता था।
लाश की गति मुक्ति होने के बाद नम्बरदार पूड़ी सब्जी ले उस घर में जाते और सबको ढाढस बधाँ खिलाते। गोद के बच्चों के लिये दूध भिजवाते, ताकि कोई बच्चा भूखा न सो पाये। बड़े तो नम्बरदार भी थे। जमींदारी खेत, बाग, बड़ा मकान सब तो था उनके पास।
सुनीता मैडम का काम खत्म करने के बाद शिवरानी जाकर नवीन जी के शव के पास बैठकर माता जी को धीरज बंधाने लगी। अब शिवरानी को यह जानकर खुशी हुई कि दिल्ली के ही एक रिश्तेदार आ चुके थे। उन्होंने खबर दी कि सूर्यांश नहीं आ पायेगा इतनी जल्दी। हां सूर्या चेन्नई से चल पड़ी है। आने ही वाली होगी उसका बेटा ईशान अन्तिम संस्कार करेगा।
मृत्यु हुय दस बारह दिन बीत चुके थे दसवां मंे सूर्यांश, बहू मिनी, पोती ईशा एवं दामाद आलोक सब आ गये थे। अनेक नातेदार दसवां वाले दिन आकर उसी दिन वापस हो गये थे।
कमला के मस्तिष्क में दुख की आंधियों के बाद एक ठंडी लहर शान्ति की भी बह रही थी। वह सोंच रही थी मिनी को एक महीने के लिये रोक लेगी और फिर जब वह मिनी चली जायेगी तो सूर्या बेटी को बुलवा लेगी।
सभी डायनिंग टेबल के इर्द-गिर्द बैठे खाना खा रहे थे, शिवरानी सब को गरम-गरम रोटी सेंक कर दे रही थी।
काश यह दृश्य तुम्हारे पापा को देखने को मिला होता तो वह इतना तड़प कर ना जाते। जाने के तीन दिन से पहले तुम सबको बहुत याद कर रहे थे। आंसुओं से उनकी तकिया तर हो गयी थी वह भी तुम सबके साथ बैठकर खाना, पीना एंव बात करना चाहते थे पर नहीं था उन्हें यह सब नसीब……………। कमला की आँखों से अश्रुधार बहने लगी। न कोई प्रश्न न उत्तर। सब मौन।
अरे मिनी जरा जल्दी खाओ। तैयारी भी तो करनी है तुम्हें………। कल सुबह की ही तो फ्लाईट है……….। बेटा सूर्यांश बोला।
कमला चौंक कर बोली……….. बेटा सूर्यांश बहू को कुछ दिन के लिए यहीं छोड़ दो…………… बाद में चली जायेगी। मम्मी कैसी बातें कर रही हैं कम्पनी की नौकरी है इसकी, लाखों पेमेन्ट मिलता है इसे, अब कम्पनी कोई छुट्टी नहीं देने वाली। ज्यादा छुट्टी लेगी तो इसे निकाल बाहर करेगी…….. सूर्यांश बोला। मम्मी मैं रुक जाती हूँ आपके पास! बेटी सूर्या बोली। अभी कैसे रुक पाओगी तुम, स्वास्थ्य मंत्री जी रेस्ट के लिये हमारे हास्पिटल में एडमिट हैं तुम्हारे बिना कौन करेगा उनकी देखरेख, स्टाफ पर मुझे भरोसा नहीं और मुझे तो आॅपरेशन करने से ही फुरसत नहीं मिलती है देखती तो हो तुम…………दामाद आलोक थोड़े रोष में बोल रहे थे।
आॅपरेशन की फीस बढ़ गयी है। सक्सेना सब बिल पुराने रेट से बना देगा जानती हो कितना नुकसान होगा और फिर यह काम तो बेटा बहू का होता है….. शेष बात डा0 आलोक ने पूरी कर दी।
कमला ने अपने आंसू पोंछ लिये और खाने की प्लेट एक ओर खिसका दी।
एक रोटी और लीजिये माता जी! अभी तो आपने कुछ खाया ही नहीं…… शिवरानी बोली। शिवरानी सब देख रही थी। सब सुन रही थी परन्तु बिल्कुल मौन समाधिस्थ सी चिमटे से रोटियां सेंकती जा रही थी।
बस शिवरानी बस…………। कमला का गला रुँध गया था आँसू थम गये अभी तक जिस हृदय से पिछला सोंच रही थी आगे की योजनायें बना रही थी, सब कुछ पत्थर सा जम गया था, आँखें गुफा सी अँधेरी हो गयी थी। मन मस्तिष्क में कुछ बबूल के काँटों सा चुभ रहा था। पति को गये अभी पन्द्रह दिन भी नहीं हुये थे उसकी समझ में अब बहुत कुछ आने लगा था।
मम्मी मैं पैसे भेजता रहूंगा। शिवरानी की पगार दुगुनी कर दो यह ध्यान रखेगी आपका-सूर्यांश बोला।
कमला बेटे को देखने लगी-शब्दों ने मानों उसका साथ ही छोड़ दिया था। क्या बोले?
पालन-पोषण, पढ़ाते-लिखाते, बचपन में गोद लेते समय बेटा-बेटी में कभी फर्क महसूस नहीं किया। दोनों के ही पालन-पोषण में अथाह पैसा खर्च किया।
कमला सोचने लगी…… जब तक पालन-पोषण, पढ़ाने-लिखाने का समय था। तब तक यह उसके बच्चे थे अब उनके पंख निकल आये हैं। उन्होंने अनन्त आकाश में उड़ना सीख लिया है। वे कम्प्यूटर, लैपटाॅप, मोबाईल और प्लेन से धरती को चटाई (मैट) की तरह प्रयोग कर रहे हैं फिर भी वह इतने व्यस्त हैं कि उन्हें जरुरी कार्याें के लिये फुरसत नहीं पर उन्हें कौन समझाये कि माँ बाप को उनका पैसा नहीं साथ चाहिये साथ…….।
हाँ बहू जाओ। तैयारी कर लो जाने की।
बेटी सूर्या तुम भी जाओ, अस्पताल की जिम्मेदारी तुम दोनों की है। सदा सुखी रहो, मेरा आशीर्वाद तुम सबके साथ है। शिवरानी मेरा ध्यान रखेगी।
फोन करते रहना………। कहकर कमला वाॅशबेसिन पर हाथ धोने के बहाने अश्रुधारा को जल धारा में प्रवाहित करने का निष्फल प्रयास करने लगी।