सुनहरी परी और बिट्टू

 सुनहरी परी और बिट्टू

वरिष्ठ कथाकार विमलेश गंगवार ,संस्कृत की भूतपूर्व प्रवक्ता हैं ।इनके दो कहानी संग्रह,एक उपन्यास और एक बाल उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं ।विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में आपकी कहानियां और कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं। 

नौ वर्षीय शिशिर को नींद नहीं आ रही थी। अभी पन्द्रह दिन पहले कार दुर्घना में उसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी। उसके पिता उसका बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन फिर भी मां की सलौनी सूरत उसकी आंखों से ओझल न होती। उसे लगता मा टिफिन लिए खड़ी है और कह रही है, ‘स्कूल में खा लेना बेटे। मैंने रसगुल्ले रखे हैं आज, तुझे बहुत पसंन्द हैं न।’
जाने कब उसकी आंख लग गयी। वह स्वप्न में विचरने लगा। एक सुनहरी परी आकर बोली, ‘कब तक जागेगा बिट्टू, सो जा अब। वह मीठी नींद में सो गया और सबेरे जब उठा तो वही सूना घर और सूनी रसोई।
वह स्कूल जाने लगा। जबसे उसने सुनहरी परी को देखा था, तब से उसे रात को नींद आने लगी थी। पर कल उसका गणित का पेपर था तैयारी ब्किुल नहीं हो पायी थी। किसी तरह वह सो गया, लेकिन था बहुत परेशान।
‘तू क्यों परेशान है बिट्टू’, सपने में आकर वह परी बोली।
‘बिना तैयारी के पेपर कैसे अच्छा होगा? यही चिन्ता सता रही है मुझे’ शिशिर बोला।
‘सब ठीक हो जाएगा बेटे’, यह कहकर परी अदृश्य हो गयी।
परीक्षाफल निकला तो इतने अच्छे अंक देखकर शिशिर आश्चर्य चकित रह गया। उसके स्कूल के बच्चे फुटबाल प्रतियोगिता के लिए दिल्ली जा रहे थे, परन्तु टीम में उसे नहीं लिया गया था। शिशिर बहुत अच्छा फुटबाल खेलता था। टीम में शामिल होने के लिए वह बेचैन था। आज उसे परी याद आ रही थी। कब रात हो और वह अपनी समस्या परी को सुनायें।
रात में जैसे ही बिस्तार पर गया उसे नींद आ गयी। सुनहरी परी आकर उसके सिर को बड़े प्यार से सहलाने लगी, ‘आरे आप ….. कब आयीं आप?’
‘तू परेशान है बिट्टू ………. तू परेशान होता है तो मैं सदैव तेरे साथ होती हूँ बेटे ……….. तेरी उलझन मैं जानती हूँ। जो तू चाहता है वही होगा बिट्टू’, ……… कहकर परी अन्तर्धान हो गयी।
अगले दिन जब वह स्कूल गया तो उसके अध्यापक ने उसे बुलाकर बताया कि किरन गणपति के स्थान पर टीम में उसे शामिल किया गया है। किरन स्वयं दिल्ली नहीं जाना चाहता है।
सुनहरी परी की शक्ति देखकर वह हैरान हो गया। उसकी टीम प्रथम आयी। प्रशंसा, तालियां, पुरस्कार सब कुछ मिला ………………… अभ्यास के कारण के कारण .. वार्षिक परीक्षा की तैयारी भी न कर पाया लगा, परी अवश्य मदद करेगी।
आधी रात बीती ………….मूसलाधार पानी बरस रहा था बिट्टू सो गया। सपने में परी आकर खड़ी हो गयी। परी को देखकर उसके जान में जान आ गयी।
पर यह क्या ? वह क्रोध से हांफ रही थी। शिशिर की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। ‘परी चिल्लाती हुई बोली, अब क्या बात है?’
शिशिर ने वार्षिक परीक्षा में तैयारी न होने की बात बतायी।
वहां अब परी नहीं थी। परी के स्थान पर मां खड़ी थी। वह कह रहीं थी –
बहादुर बच्चे हिम्मत नहीं हारते बिट्टू। तेरी परीक्षा में कुछ दिन बाकी हैं अभी। परिश्रम कर और लगन से पढ़। वह परी नहीं थी मं ही सुनहरी परी के भेष में आती थी तेरे पास ………….।
इतना कहकर मां शिशिर के बिल्कुल पास आ गयी और बोली – ‘संघर्षों से, बाधाओं से क्या हारना मेरे बिट्टू। यह जीवन वही जीते हैं, जो जीने का हौसला रखते हैं। अपनी योग्यता एवं परिश्रम से अपना मार्ग स्वयं चुन मेरे बेटे …..।
यह कहते हुए उसकी मां ने उसे बाहों में भर लिया। मां का प्यार पाकर वह सिहर उठा। उसकी नींद खुल गयी। उसने घड़ी पर दृष्टि डाली, सुबह के चार बज रहे थे।
अब वह अपने अन्दर एक विचित्र शक्ति का अहसास कर रहा था, जो परीक्षा तो क्या बड़ी बाधा से भी टकराने को प्रेरित कर रही थी। उसके अन्तर्मन की दुर्बलता समाप्त हो चुकी थी और नये साहस का उदय हो गया था।

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