स्त्री

Dr.Avantika singh
स्त्री! तुम तब तक स्त्री हो,
जब तक कि तुम
न अपने अधिकारों की बात करो,
न अपना स्वाभिमान रखो,
न भविष्य की सोचो,
न खुल कर जियो।
तुम बस
स्वरबद्ध, करबद्ध और नजरबद्ध होकर
खड़ी रहो कतार में ।
जहां से सैकड़ों नज़रें
उठ रही हो तुम्हारे वजूद पर
अस्मिता के सवाल पर और,
तुम्हें भविष्य में ऊपर उठाने की लालसा पर।
पर कोई भी असलियत में
बिल्कुल भी नहीं चाहता
तुम्हारा विकास, सुरक्षा, खुलापन और
आडम्बर रहित जीवन जीना,
क्योंकि उन्हें भाता आ रहा है
तुम पर शासक बन राज करना,
तुम्हारा भोग करना।
फिर तन के वस्त्रों का बहाना क्यों?
उठ रहे हैं कई प्रश्न?
सभ्य दिखाने का परिचय देते
सफल कहलाने वाले समाज में।
पुरुष,
तुम क्यों नहीं स्वीकार कर पाते
स्त्री का अस्तित्व,
स्वाभिमान और आत्मसम्मान
जबकि,
जन्म से और जीवन के लंबे सफ़र में
अंत तक
मां,बहन,मित्र,पत्नी,
बेटी,और बहू बनकर
देती है साथ,
एक स्त्री
कल से आजतक।
– ..Dr.Avantika singh