First Line of Defence

लेखक : तेज प्रताप नारायण

लेखक दर्जन से अधिक पुस्तकें लिख चुके हैं और कई सारे पुरुस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं ।
Email: tej.pratap.n2002@gmail.com

वर्तमान समय में कोई विरला ही होगा जो किसी न किसी प्रकार के मानसिक या शारीरिक अवसाद से न घिरा हो ।एक परफेक्ट व्यक्ति या परफेक्ट हेल्थ की बस कल्पना की जा सकती है ।ऐसे में एक व्यक्ति को अपनी प्राथमिकताओं के बारे में समझना और जानना ज़रूरी हो जाता है । कहीं हम किसी मृगमरीचिका के पीछे तो नहीं भाग रहे हैं या थोड़ा ज़्यादा लालची तो नहीं हो रहे है ? मृगमरीचिका के पीछे भागते भागते हम कहीं न कहीं एक मानसिक अवसाद का शिकार होने लगते हैं और असंतोष बढ़ने लगता है ।धीरे धीरे यही मानसिक अवसाद शारीरिक रूप से भी हमें सक्रिय नहीं रहने देता है और अकेलेपन का शिकार होना भी उसका परिणाम हो सकता है। ऐसे में कई बार लोग अपना ज़्यादा से ज़्यादा समय ऑनलाइन बिताने लगते हैं जिससे मानसिक अवसाद ही नहीं बढ़ता है बल्कि शारीरिक अक्षमता के शिकार होने के भी बहुत चांस होते हैं । एक चेन रिएक्शन सी शुरू हो जाती है ।मानसिक अवसाद ,शारीरिक असक्रियता बढ़ाता है और जैसे जैसे शारीरिक रूप से इंसान असक्रिय होता है वैसे वैसे ही मानसिक अवसाद बढ़ने लगता है ।बात और बिना बात के गुस्सा आने लगता है ।

ऐसा कम ही देखा गया है कि शारीरिक रूप से सक्रिय लोग मानसिक अवसाद की गंभीर परिस्थिति से गुजरते होंगे या मानसिक रूप से सक्रिय व्यक्ति शारीरिक रूप से सक्रिय नहीं होगा । मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्ति,न केवल ज़िंदगी में बहुत आगे जाते हैं बल्कि एक लंबी स्वस्थ ज़िंदगी जीने के ज़्यादा चांस भी उन्हीं के होते हैं । अमिताभ बच्चन की उम्र के अन्य एक्टर को देख लीजिए ।तस्वीर साफ़ हो जायेगी ।

हैप्पी हार्मोंस भी शारीरिक रूप से सक्रिय व्यक्तियों में रिलीज होते हैं । हममें से कई लोगों ने महसूस किया होगा कि शारीरिक रूप से परिश्रम करने के बाद मन प्रसन्न हो जाता है । परिश्रम न करके हम ख़ुद का ही नुकसान करते हैं ।
दरअसल मानसिक और शारीरिक प्रक्रियाएं एक दूसरे को प्रभावित करती हैं । मन को किसी बात की क्रेविंग हो रही है तो तन अपने आप रिएक्ट करने लगता है । बचपन में मिठाइयां देखकर हम में से सबकी लार टपक जाती रही होगी ? अगर थोड़ा बहुत बचपन बाकी है तो अब भी ऐसा होता होगा ।

फिर क्या करना चाहिए ?
नियमित रूप से सक्रिय जीवन जीने की आदत ही इस चेन को तोड़ सकता है और चैन ला सकता है ।सक्रिय कैसे होना है यह व्यक्तिगत चॉइस है ? ज़िंदगी में बहुत सारे फैक्टर हमारे नियंत्रण में नहीं होते हैं लेकिन जो अपने हाथ में हैं उन्हें तो हाथ से न जाने दें ।
मानसिक अवसाद न आए इसके लिए ज़रूरी है स्वस्थ्य रहें ,व्यस्त रहें और मस्त रहे । सच बात तो यह है कि यह तीनों चीज़ें एक दूसरे पर निर्भर हैं । यदि आप स्वस्थ्य हैं तभी मस्त रह पायेंगे और मस्त हैं तभी स्वस्थ्य रह पायेंगे लेकिन इसके लिए व्यस्त रहना बहुत ज़रूरी है । और व्यस्त रहने के लिए ज़रूरी है कि ज़िंदगी का कुछ न कुछ उद्देश्य हो । हर किसी के पास काम हो और जिसको जो काम मिले वह पूरी तन्मयता से करे । हैप्पीनेस वर्कप्लेस से अच्छे से काम करने पर ही आती है ।

लब्बोलुआब यह है एक्टिव लाइफ जीने से ,जिसमें फिजिकली और मेंटली दोनों तरफ की सक्रियता है ,से न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होगी बल्कि मानसिक बीमारियां भी नहीं होंगी और ये ज़िंदगी का फर्स्ट लाइन ऑफ डिफेंस साबित होगा । ।

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