Independent M.L.A. रहना जान का जंजाल है ।(संस्मरण 8)

 Independent M.L.A. रहना जान का जंजाल है ।(संस्मरण 8)


ये संस्मरण ,यू पी के पूर्व मंत्री चेतराम गंगवार जी के बारे में है जो उनकी बेटी विमलेश गंगवार ‘ दिपि ‘ द्वारा लिखा गया है जो एक सुप्रसिद्धि लेखिका हैं ।

विधान सभा सत्र प्रारंभ हो गया तो लखनऊ तो आना ही था । 1 ,कालिदास मार्ग अभी भी पिता जी के नाम आवंटित था ।पर वह क्यों रहें उसमें ? वह तो अब विधायक हैं ।
केयर टेकर ने लाख समझाया , ” सर कुछ दिन रह लीजिये ।हम आवास की व्यवस्था बहुत जल्दी कर देंगें ।
पर नहीं माने तो नहीं ।”
त्वरित कार्यवाही करके मीरावाई अतिथि गृह में शायद 18 नम्बर में कुछ समय के लिये रहने की व्यवस्था कर दी गई ।कुछ दिन बाद फिर विधायक आवास दारूलशफा में आ गये ।यहां एक नई मुसीबत नया तनाव ।रोज लगभग 9 बजे के बाद रात में बहुत बड़े बड़े लोग आने लगे ।कहाँ बैठायें ? क्या खिलाये इतनी रात में !
एक सबसे बड़ा कमरा था उसमें जनता जनार्दन विराजमान ।उसे तो डिस्टर्ब ही नही करना था किसी भी हाल में । जमीन पर बड़ी बड़ी दो दरियां बिछाये सो रहे थे ।कुछ न कुछ काम लेकर आये थे नबावगंज से ।
अन्दर के बैडरूम में तीन चार कुर्सियाँ डाल तंग हालत में जैसे तैसे विठाये जाते वह शीर्ष लोग ।
पिता जी नही समझ पाते यह इतने बड़े-बड़े दिग्गज आखिर मुझ अदना से आदमी के पास क्यों आये हैं ।
बातचीत बड़े अदब से शुरू होती ।वे कहते ,” आप अब हमारे साथ राजनैतिक सफर शुरू कीजिए ।हमारे दल में आ जाइये बाकी सफर साथ साथ तय करेंगे ।”
यह रोज का किस्सा हो गया ।अरे संकोच छोड़ कर आइये ।हम आप को यह देंगे वह देंगें जो कांग्रेस ने कभी नही दिया ।
अम्मा बेचारी कहती , ” आज तो किसी तरह खिला पिला दिया पर आगे के लिये खूब ज्यादा खाने का अच्छा अच्छा सामान म॓गा कर रख लो ।अब तो यह चक्कर रोज चलेगा । “
पिता जी अपने टेंशन में यह और नई मुसीबत लग गई। हंसी खेल नहीं है दूसरी पार्टी में जाना ।
वह कहते , ” आप तो जानते हैं कि कभी-कभी एक निर्दलीय विधायक सरकार को हिलाकर रख देता है आप अपनी ताकत नहीं पहचान पा रहे हैं गंगवार साहब ।देखिये करोड़ों की बात होती है लाखों की नहीं ।”
पिता जी तो करोड़ों की गिनती जानते ही नहीं थे ।
चुपचाप ऊंची उड़ानों की बातें सुनते रहते ।पिताजी सोचते कि यह राजनीति के चक्रव्यूह है जिसमें न वह प्रवेश कर सकते हैं न बाहर आ सकते हैं ।फंस गये हैं भंवर में ।
सैशन समाप्त हो गया विधान सभा कुछ दिनों के लिये स्थगित हो गई ।
बड़ी खुशी खुशी वह अपने बरेली आवास पर आकर चैन से रहने लगे अपने बच्चों के साथ मौज मस्ती करने लगे ।
अम्मा पूछती ” किस पार्टी में जानेका विचार है ? पिताजी कहते, ” मैं क्यों जाऊंगा किसी पार्टी में !
मेरा दिमाग खराब है क्या !”
सब कुछ अच्छा बीत रहा था ।एक दिन माननीय तिवारी जी आ गये बरेली मकान पर ।
पिताजी तो एकदम अवाक ,आश्चर्य चकित !
” आइये आइये सर कैसे !!!”
” मिठाई खाने आया हूँ ।जीते हो न ! निर्दलीय ।पूरा प्रदेश वाह वाह कर रहा है आपके नाम पर !”
“सर!! क्यों ऐसा कह रहे हैं ?”
“सही कह रहा हूँ, भाई ! मैं समझ गया , बहुत ताकत वाले हैं आप !”
” सर ! यह तो नबावगंज की ताकत है ,जनता की ताकत है ।
जनता जनार्दन है जिसको चाहें ताज़ पहना दे ,और जिसको चाहे ज़मींदोज़ कर दे ।”
“आप की शेर शायरी विधान सभा में बहुत सुन चुका हूँ ,गंगवार साहब !”
“अब यह बताओ घर वापसी कब हो रही है ?”
“जी कल सुबह जाऊँगा पचपेड़ा ।”,पिता जी बोले ।

Late Chet Ram Gangwar ji with the then CM Late Narayn Dutt Tiwari

“अरे आप काग्रेस में कब लौट रहे हैं सरकार ? ” कुछ जोर से वह बोले ।
” अब कैसे लौट सकता हूँ सर ।दूध से मक्खी निकाल कर फेंक दी जाती है तो उसे पुनः दूध में नहीं डाला जाता है सर !”
अम्मा खाने पीने के इन्तजाम में जुट गईं ।पूरे राजनैतिक चातुर्य एवं प्यार मुहब्बत से बातचीत करके माननीय तिवारी जी नैनीताल चले गये ।
जाते जाते अम्मा से कह गये , “आप समझाइये इन्हें ।क्या घर परिवार में कभी अनबन नही होती ।”