अंतिम व्यक्ति की चिंता करती हुई कविताएं

तेज प्रताप नारायण

वर्जित इच्छाओं की सड़क
कवयित्री: डॉ अनुराधा ‘ ओस ‘
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन

अंतिम व्यक्ति की चिंता करती हुई कविताएँ

डॉ अनुराधा ‘ ओस ‘ आज के समय की चर्चित कवयित्री हैं ।इनका कविता संग्रह ” वर्जित इच्छाओं की सड़क ” अपने नाम से ही उत्सुकता पैदा करता है । एक पाठक के मन में आता है कि आख़िर ऐसी कौन सी वर्जित इच्छाओं की बात कवयित्री करना चाहती हैं ? और क्या वर्जित इच्छाएं सिर्फ़ स्त्री की होंगी या पुरुष की इच्छाओं को भी शामिल किया जाएगा ?

कहने को एक स्त्री के लिए समाज मे बहुत कुछ वर्जित है ।समाज ने एक स्त्री को परिभाषित कर दिया है ।परंपराओं और मान्यताओं की सैकड़ों बेड़ियों में स्त्री को बांध दिया गया है। सच तो यह है कि बहुत संख्या में स्त्रियाँ इन बेड़ियों को आभूषण समझकर आनंदित भी हो रहीं हैं ।
स्त्री समाज की धुरी है और किसी भी बदलाव के लिए समाज की धुरी को बदलाव के लिए अग्रगामी होना पड़ता है ,लेकिन परिवर्तन रोकना है तो धुरी की धार को कुंद कर दो ।

संविधान निर्माता डॉ अम्बेडकर इस बात को क़ायदे से समझते थे ।उन्हें पता था कि स्त्रियों को चुनने का अधिकार दिए बिना समाज मे ज़रुरी परिवर्तन नही आ सकता है । स्त्री अधिकारों के लिये उनके द्वारा प्रस्तुत हिन्दू कोड बिल को भी तमाम तरह का विरोध झेलना पड़ा और इसके लिए डॉ अम्बेडकर को इस्तीफ़ा भी देना पड़ा । यह इतर बात है कि अंततः लोगों को समझ में आया और हिंदू कोड बिल पारित हुआ ।देर आए लेकिन दुरुस्त आए ।

वर्जित इच्छाओं की सड़क पढ़ने के दौरान संवेदना के विभिन्न स्तरों से गुज़रना पड़ा।प्याज के छिलकों को भाँति मानव संवेदनाये परत दर परत कविताओं में लिपटी हुई मिलीं ।

कविता संग्रह की कविताएँ विषय के स्तर पर अपने नाम का अतिक्रमण भी करती हैं । मात्र स्त्री विषयक कविताएं न होकर ये कविताएं समाज के अंतिम व्यक्ति की चिंता करती हैं और साथ मे यह जंगल,पहाड़ एवं पूरी धरती की भी चिंता करती है । इन कविताओं में सम्पूर्ण मानवता को बचाने का प्रयास दिखाई पड़ता है ।

अंतिम आदमी
सिर्फ़ भूख से ही नहीं लड़ता
वो जंगल और पहाड़ के
अस्तित्व् के लिए भी लड़ता है
ताकि धरती पर कुछ
हरियाली बची रहे

धरती पर हरियाली को बचाने की चिंता कवयित्री की केंद्रीय चिंता लगती है और यही चिंता कवयित्री को एक यात्रा पर ले जाती है जो विभिन्न रास्तों से गुज़रते हुए मानवता की अंतिम मंज़िल पर पहुंचती हैं जहाँ प्रकृति,जीव ,जन्तु और मानव एक दूसरे के सह अस्तित्व को स्वीकार करते हैं । इसे डॉ अनुराधा ओस का एक आदर्श संसार कह सकते हैं बिल्कुल,कबीर के अमर देसवा या रैदास के बेगम पुरा या तुकाराम के पंढरपुर की तरह
अमर देसवा तक जाने के लिए रास्ता क्या होगा ? कवयित्री संकेत देती हैं कि यह रास्ता बुद्ध का रास्ता होगा ।

कुछ रास्ते हमें
धकेल देते हैं युद्ध की ओर
और कुछ बुद्ध की ओर ।

बुद्ध के रास्ते पर चलने से जापान विनाश से विकास की ओर बढ़ा है और आज विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा है । विकास का रास्ता बुद्ध का रास्ता ही है मध्य मार्ग का रास्ता ही है ।

मध्य मार्ग मशीनी ज़िंदगी से परे है ।मध्य मार्ग ,हृदय और बुद्धि के सामंजस्य से निकलेगा जिसमें सिर्फ़ मशीनों का शोर ही नहीं होगा बल्कि चिड़ियों की आवाज़ भी होगी ।

हवाई जहाज़ की कम
चिड़ियों की ज्यादा ज़रूरत है ।

यह सब लिखते हुए कवयित्री ने कभी भी एक छोर नहीं छोड़ा और वह छोर है अपनी जाति की बात है । प्रकृति और पुरुष के संयोग से ही पूरी सृष्टि का निर्माण हुआ है और इंसानों की सिर्फ़ दो जातियां हैं जो नेचुरल हैं और पूरक है।अन्य तरह की जातियां कृत्रिम और स्वार्थपूर्ण हैं । वह स्त्री जिसे सरस्वती ,लक्ष्मी और दुर्गा जैसी तमाम तरह की उपाधियों से विभूषित किया गया है लेकिन न उसके पास धन रहने दिया गया ,न विद्या का अधिकारी माना गया और न ही किसी प्रकार की शक्ति दी गई ।

स्त्री
जो दूर कुएँ से
भर लाती थी जल
और सोख लेती थी प्यास ।

ओस की कविताओं का अपना आकर्षण है । उनकी कई सारी कविताएं स्त्री मन की अपेक्षाओं ,इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं का जीवंत दस्तावेज भी है। कविताएं कई सारे प्रश्न उठाती हैं ।उनके उत्तर खोजती हैं। लेकिन इन सारी प्रक्रियाओं के दौरान वो प्रेम को अपना हम सफ़र बना कर रखती हैं

वो जो हंसते समय
तुम्हारे गालों पर
भंवर पड़ता है न
वही भंवर पड़ गया है
धरती के सीने पर ।

डॉ ओस की कविताओं को पढ़ते वक्त आपके मन में कई तरह के भाव पैदा होंगे ।गालों पर भंवर भी पड़ेंगे । बढ़िया आर्टिस्टक तरीके से लिखी गईं कविताएं संवेदनाओं के आकाश में आपको ज़रूर ले जाएंगी । तो सुकून से और पूरे यकीन से वर्जित इच्छाओं की सड़क को पढ़िए ।

कवयित्री को ढेर सारी बधाई और अगली किताब के लिए शुभकामनाएं ।बोधि प्रकाशन ने किताब को बड़े सुंदर तरीके से आकार दिया है ।
प्रकाशक को भी बधाई पहुंचे ।

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