आओ ट्रोल करें

डेमोक्रेसी का न्य ट्रेंड शुरू हुआ है, ट्रोल करने का। पहले ट्रोल करने के लिए शारीरिक रूप से किसी का आगा – पीछा करना पड़ता था। लेकिन अब सोशल मीडिया पर सिर्फ़ बटन दबा के काम चल जाता है और घर बैठे- बैठे ही ट्रोल किया जा सकता है ।लोग घर में नहीं ट्विटर और फेसबुक में रहने लगे हैं ,कोई रेड कलर का नोटिफिकेशन आया नहीं कि दिमाग़ की घण्टी बजी नहीं।और उँगलियाँ ए से लेकर ज़ेड तक की यात्रा शुरू कर देती हैं।
इलेक्शन कमीशन चाहे तो चुनाव करवाने की ‘ट्रोलिंग पद्धति’ शुरू कर सकता है। जनता की बहुत दिनों से इ वी एम् हटाने की मांग भी पूरी हो जाएगी और सरकर की भी इज़्ज़त बची रहेगी। ट्विटर से इलेक्शन कराने में फ़ायदा ही फ़ायदा है। ट्विटर पर फॉलोवर्स की गिनती करके या कितने लोगों ने ट्रोल किया उसके आधार पर विजयी प्रत्याशी घोषित किया जा सकता है। सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि यह इलेक्शन बड़ा ही पारदर्शी होगा। पल -पल की ख़बर जनता को रहेगी कि किसके कितने फॉलोवर्स बढे और कितनी जनता ने किसको ट्रोल किया । ‘ ट्रोल मेथॅड ऑफ़ इलेक्शन’ से सबसे बड़ा फ़ायदा होगा कि समय और धन का फ़ालतू व्यय नहीं होगा।जो जितना ज़्यादा ट्रोल होगा। वह उतना ही बड़ा नेता या नेती बनेगा। जिसकी सबसे ज़्यादा ट्रॉल्लिंग और फैन फॉलोविंग वह प्रधानमन्त्री। इसी आधार पर बड़े कवि ,लेखक ,रॉक स्टार ,पॉप स्टार या अभिनेता बनेंगे। फिर ट्रोल करवाने की रेस शुरू होगी ,हर कोई ऐसा बोलेगा जिससे कंट्रोवर्सी शुरू हो और फिर वह ट्रोल हो। जब किसी की किताब आने वाली होगी ,या किसी का एल्बम या फिल्म ,बस ट्रोल करवाना शुरू होगा। क्या पता मिस ट्रोल,मिस्टर ट्रोल या मिसेज़ ट्रोल का ख़िताब भी दिया जाने लगेगा। फिर ट्रोलोलोजी पर किताबें छपेंगी और खूब बिकेंगी। हो सकता है ट्रोल की एक साहित्यिक विधा भी बाक़ायदा शुरू हो जाये ? बहुत सम्भावना है कि कोई भारतीय ट्रोल साहित्य नोबल पुरुस्कार भी ले जाये।
वैसे भारतीय मिडिल क्लास और सेलिब्रिटी दोनों ट्रोलिंग करने और करवाने में सिद्ध हस्त हैं। यह अलग बात है कि कुछ अन्य लोग भी बहती गंगा में हाथ धोने से पीछे नहीं हटते हैं।
अपनी बॉलीवुड क्वीन को ही ले लीजिये। वे सोशल मीडिया की अनडिसप्यूटेड महरानी है जिससे देखिये वह पन्गा लेती रहती हैं और लोकतान्त्रिक वे इतनी कि हर विषय पर उनका अपना मत है जिसे सोशल मीडिया पर डालने में कभी बाज़ नहीं आती हैं। ख़ुद को बड़ा प्रोग्रेसिव कहती हैं लेकिन अपनी जाति बताने से पीछे नहीं हटती हैं।’ जाति न पूछो साधू की ‘ लेकिन यह तो किसी ने नहीं कहा है कि जाति मत बताओ क्वीन जी और वैसे भी हम भारतीय हैं जिनकी जाति है कि जाती नहीं, यहाँ दिया तो हैं लेकिन बाती नहीं।
किसी पॉप गायिका ने जिसे ८ बार ग्रैमी अवार्ड मिला है कुछ ट्वीट कर दिया और अपनी क्वीन पिल पड़ी उस पर अपना निजी एजेंडा और झंडा लेकर ।अब क्वीन ही क्यों यहाँ कितने ही हैं जो देश का झंडा और खुद का एजेंडा थामे मैदान में आ जाते हैं और उन्हें मुद्दों से नहीं व्यक्तियों से ज़्यादा प्यार है और इसे ही वे मानववाद कहते हैं । अब इन पॉप गायिका की बात पर मुद्दे पर बात न करके क्वीन उन पर दनादन पत्थर फेंकने लगी। अब क्वीन हैं तो कुछ भी कहें और कुछ भी करें। उन्हें कौन मना करे ?उन्हें कुछ भी नाप-शनाप बकने पर छूट है । फिर इधर से भी ट्रोल और उधर से भी ट्रोल और दुनिया हो गई एक बार फिर से गोल। जिसने ट्रोल किया उसका भी फ़ायदा और जिसका हुआ उसका भी फ़ायदा। पॉप स्टार को हम जैसे देशी लोग भी जान गये और क्वीन फिर से लाइम लाइट में आ गयीं । पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार से ढिशुम -ढिशुम करके सीन से गायब थीं और एक बार फिर से छा गयीं । कहीं उनकी कोई फिलम -उलम तो नहीं आने वाली है ?
ट्रोल-ट्रोल में गांव की छोटी पंचायत एक महापंचायत बन गयी ट्विटर पर और लोकल से ग्लोबल हो गयी । हम वैसे भी वसुधैव कुटुंबकम कहते हैं। ग्लोबल बनी तो बयान भी ग्लोबल आने लगे और गांव के लोग यहाँ- वहाँ छाने लगे। वैसे अपने पंजाबी होते हैं बड़े मस्त इस मामले में। जो करते हैं वह फ़ैल के करते हैं चाहे वह काम हो या आंदोलन। तभी तो कहा जाता है कि आलू और पंजाबी हर जगह मिल जाते हैं और जैसे आलू हर सब्जी में अपना स्थान बना लेता है ,वैसे ही अपने पंजाबी भाई।
तो आओ हम ट्रोल करें। कुछ करें या न करें पर ट्विटर पर ही कुछ गोल करें।
घर में दुश्मनी रखें और सोशल मीडिया आ पर मेल जोल करें।
कोई युवा बेरोज़गार नहीं होगा ,सबका आई टी सेल में कारोबार होगा।
तेज