औरत हो, अदाकारा नहीं
धीमी आवाज़,
अक्सर अनसुनी कर दी जाती है,
नाज़ुक कलाईयाँ,
अक्सर मरोड़ दी जाती हैं।
नज़रों को झुकाकर रखना,
अब तुम्हारा गहना नहीं है,
अपनों से लगने वालों में
हर कोई अपना नहीं है।
ज़िद है बदलते वक्त की,
कि अब तुम्हें बदलना होगा,
किसी के सहारे से नहीं,
अपनी ताबीज़, खुद तुम्हें बनना होगा।
दुहाई रूढ़ियों की देने वालों को,
भले ही ये गँवारा नहीं,
पर याद रखना,
कि तुम औरत हो, अदाकारा नहीं।
प्रियंका सिंह,मिर्जापुर
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Super ma’am
औरत हो अदाकारा नहीं
वाह