कॉलरवाली बाघिन :समय की रेत पर पंजों के निशान
-डॉ. आरके सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ, कवि एवम स्तम्भकार
पेंच टाइगर रिजर्व के परिक्षेत्र कर्माझिरी की कुंभादेव बीट के कक्ष 589 के विशाल दरख्तों से घिरे खुले मैदान में आकाश चूमती लपटें साक्षी बन रहीं थीं उस इतिहास की जो भारत के किसी भी बाघ अभ्यारण्य में कभी नहीं लिखा गया था। दिनांक 16 जनवरी 2022 को कॉलरवाली बाघिन की चिता से उठते धुँए के बीच पेंच के वे सब कर्मचारी, अधिकारी व स्थानीय आदिवासी डबडबाई आंखों से बाघों की उस विरासत को सलाम कर रहे थे जिसके वह स्वयं गवाह थे। हमेशा की तरह कॉलरवाली बाघिन ने अपनी मृत्यु के एक दिन पूर्व ही उन्हें अपने अस्वस्थ होने की सूचना खुले मैदान में आकर दे दी थी। वह जब भी अस्वस्थ या घायल होती थी तो खुले मैदान में आकर पेंच के उस वेटेरिनरी स्टाफ की प्रतीक्षा में बैठ जाती थी जो हमेशा इस स्थिति में उसकी सेवा करता था। कुछ ऐसा ही उसने अपनी मृत्यु के पूर्व भी अपनी मूक भाषा में प्रदर्शित किया था।
वर्ष 2005 में ‘बड़ी मादा’ बाघिन, जो बीबीसी की प्रसिद्ध डॉक्यूमेंट्री ‘स्पाई इन द जंगल’ का मुख्य चरित्र थी, ने चार शावकों को जन्म दिया। जिसमें से एक शावक टी-15 आगे चलकर कॉलरवाली के नाम से प्रसिद्ध हुई। उसने अपनी माँ की विरासत को आगे बढ़ाया और आश्चर्यजनक रूप से अंतिम सांसों तक रुडयार्ड किपलिंग (जिन्होंने ‘द जंगल बुक’ के प्रसिद्ध चरित्र मोगली की कल्पना इन्हीं जंगलों में की थी) के जंगल की रिकॉर्ड अविवादित सम्राज्ञी बनी रही।
कॉलरवाली ने लगभग ढाई वर्ष की उम्र में प्रथम बार शावकों को जन्म दिया। परन्तु अनुभहीनतावश वह तीनों शावकों को नहीं बचा सकी। कहते हैं नियति सब कुछ सिखा देती है। मात्र पांच महीने बाद ही उसने पुनः चार शावकों को जन्म दिया और पिछले अनुभव के विपरीत सभी शावको को भली भांति पाला। कॉलरवाली ने अपने जीवन में आठ बार में 29 शावकों को जन्म दिया जिसमें से 25 शावक अभी भी पेंच व पन्ना में कॉलरवाली के वंश को आगे बढ़ा रहे हैं। एक अनुमान के अनुसार कॉलरवाली की सन्तानों के बाद की पीढ़ियों के लगभग सौ बाघ उसके जीवित रहते इन जंगलों में घूम रहे थे।
कॉलरवाली को वर्ष 2008 में प्रथम बार रेडियो कॉलर पहनाया था, तभी से वह दर्शकों और कर्मचारियों के बीच कॉलरवाली के नाम से प्रसिद्ध हुई।
कॉलरवाली का अपने शावकों के प्रति समर्पण इस कदर झलकता था कि कभी-कभी तो उसे अपने शावकों के लिए दिन में दो-दो बार तक शिकार करना पड़ता था। अन्य बाघिनों के विपरीत कॉलरवाली अपने बच्चों को शिकार का हुनर सिखाने में अधिक चपल थी। यही कारण था कि वह अन्य बाघिनों की अपेक्षा अपने शावकों को अपेक्षाकृत कम उम्र में यानी कि औसतन अट्ठारह माह की आयु में ही शिकार से भरे क्षेत्र में स्वतंत्र छोड़ देती थी। तथा शीघ्र ही प्रजनन चक्र में आकर नए शावकों को जन्म देती थी। जबकि अन्य बाघिनों में प्रायः देखा जाता है कि वे दो से ढाई वर्ष के पश्चात ही अपने शावकों को स्वतंत्र करती हैं। कॉलरवाली इस हद तक अपने शावकों के प्रति समर्पित थी कि एक बार शावकों के डेढ़ वर्ष पूर्ण होने से पूर्व ही जब वह पुनः माँ बनी तो उसपर अतिरिक्त जिम्मेदारी आ गई। लेकिन उसने इन दो बार प्रजनन के शावकों को न केवल अलग-अलग सफलतापूर्वक पाला बल्कि नए शावकों को पुराने शावकों से भी बचाकर रखा। एक बार वह वर्ष 2015 में अपने शावकों की रक्षा करने में बुरी तरह घायल भी हुई और स्वतः खुले मैदान में आकर अपने इलाज के लिए वेटनरी स्टाफ व चिकित्सक का इंतज़ार भी करने लगी थी।
कॉलरवाली ने कभी भी पेंच घूमने आए सैलानियों को निराश नहीं किया, वह सैलानियों की जिप्सी के पास तक आ जाती थी। उसका आकार इतना बड़ा था कि वन्यजीव विशेषज्ञ भी प्रथम दृष्ट्या उसे एक नर बाघ समझ बैठते थे। आज यह ‘सुपर मॉम’ पेंच टाइगर रिजर्व से भले ही विदा हो चुकी है। लेकिन रुडयार्ड किपलिंग की जंगल बुक में वह एक नया अध्याय अवश्य जोड़ गयी है। कॉलरवाली ने इन जंगलों के हर कोनों को अपने पंजों से छुआ और इन जंगलों को बहुत नज़दीकी से जिया है। धीरे-धीरे भले ही मोगली के साम्राज्य से उसके पंजों के निशान क्षीण हो जाएं पर समय की रेत पर जो निशान कॉलरवाली ने छोड़े हैं वह कभी भी मिट नहीं पाएंगे।
-डॉ. आरके सिंह, वन्यजीव विशेषज्ञ, कवि एवम स्तम्भकार
आभार- लेखक कॉलरवाली के सम्बंध में अमूल्य जानकारी उपलब्ध कराने हेतु डॉ अखिलेश मिश्रा, वन्यजीव चिकित्साधिकारी, पेंच टाइगर रिजर्व का सहृदय आभारी है ।
11 Comments
Amazing nice s
Many thanks brother
Nice story sir.
Nice story sir. Plz elaborate this story.
Many thanks brother.
Thanks for suggestions
Regards
Many thanks brother.
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Many thanks brother
In much easy way you explain technical things ,very nice ,rakesh singh ji .
Many thanks
Regards
सर आपकी कहानी बहुत खूबसूरत है। हर आर्टिकल जंगल को जीवांत करता है।
बहुत धन्यवाद
आप अभी का प्रेम मेरी शक्ति है
सादर