खोई हुई बहू

©तेज प्रताप नारायण
राम सुख इलाहाबाद के एक थाने में अपनी बहू की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखाने आए थे ।थाना-पुलिस ,कोर्ट-कचहरी और डॉ-अस्पताल से सदा दूर रहने वाले राम सुख की ज़िन्दगी में यह दिन आएंगे उन्होंने सोचा न था । पर मज़बूरी का नाम महात्मा गाँधी ,राम सुख करते तो क्या करते ।
राम सुख डरते – डरते थाने के अंदर पहुँचे और हकलाते हुए बोले ,”साहब ,हमका एक रिपोर्ट लिखावयक है ।हमार बहुरिया मेला मा कहूं ग़ायब होई गय है ।”
“ग़ायब हो गई है या तुम गंगा में धक्का दे दिए हो ।” ,दरोगा , राम सुख की आँखों मे देखते हुए बोला
“नाहीं साहेब!विश्वास माना जाए ।हमरे पीछे पीछे रही फिर पता नहीं कहाँ चली गय ।”, राम सुख हाथ जोड़ कर बोला
“देखने मे कैसी थी ?” ,दरोगा ने पूछा
“हमको नहीं पता,साहब!” राम सुख बोला
“पगला तो नहीं गए हो ?, तुम अपनी बहू को नहीं जानते हो वह देखने में कैसी थी ।फिर हम लोग कैसे करें छानबीन ?जाओ भाग जाओ यहाँ से । पता नहीं लोग कहाँ- कहाँ से चले आते हैं सब । ” ,दरोगा भुनभुनाने लगा
“साहेब जी! कबहुँ हम नहीं देखे हैं अपनी बहू को । बहू को देखना पाप जो होत है । और उ तो घूँघट मा रहत रही हमेशा तो हमै का पता उके रंग रूप के बारे में ।हम इतना बताय सकित है कि वु हाथन मा लाल रंग के चूड़ी पहने रही ।” , राम सुख अपनी मज़बूरी जताते हुए बोला
“ठीक है,यह बताओ कि क्या नाम है तुम्हारी बहू का ?”
” बहू का नाम थोड़ो न होता है ।बहू तो बहू होत है ।हम तो उका छेदी की दुल्हन कहित रहै ।”, तनिक आश्चर्य प्रकट करते हुए राम सुख बोले
‘इसको हवालात में डाल दो ।’ अपने हवाल दार को दरोगा ने आदेश दिया
“जी साहब ! ” ,कहते हुए हवालदार ने सेल्यूट मारा और राम सुख की ओर बढ़ा ।तभी पीछे से आवाज़ आई
“हमरे बप्पा को कहाँ लिहे जात हो ।”, घूँघट डाले हुए किसी महिला की आवाज़ थी ।
राम सुख पलटा और उस महिला की तरफ़ दौड़ा , ” हमार बहू मिल गय साहब ! हमार बहू मिल गय ।”