झूठम वदेत प्रियं वदेत ,शठे शाठ्यम समाचरेत

तेज प्रताप नारायण
यह बिल्कुल नया दर्शन है जो आज सुबह सुबह ही प्रकट हुआ और बोला ,
“वत्स !! सफलता का यह नया सिद्धान्त है । सब कुछ परिवर्तनशील है तो बुद्ध और महावीर के सिद्धान्त भी बदलने चाहिए ।इसलिए सबके प्रिय बने रहो और गर्व से तने रहो ,अपने पी आर की सफलता पर ।”
और अगर आप पी आर बनाने में सफल रहे तो आपका कोई बाल बांका नहीं कर सकता है। पी आर तभी बन सकता है जब कड़ुआ न बोलें, ज़ुबाँ पर रसगुल्ला रखे रहें और कड़ुआ नहीं बोलने का मतलब है सच न बोलें क्यों कि सच कड़ुआ होता है और कड़ुआ बोले तो प्रिय नहीं बने रह सकते हैं ,तुरंत अप्रिय लोगों की श्रेणी में आप पहुँच जाएंगे । यह सफलता का महामन्त्र है जिसके अधीन समस्त तन्त्र है ।सरकारी,ग़ैर सरकारी ,सामाजिक और परिवारी और अन्य सभी तन्त्र ।
किसी देश का राष्ट्रपति ,किसी दूसरे देश के शासनाध्यक्ष को मेरे दोस्त,मेरे हमदम कहके किसी डील को करते हुए कुछ दम दिखा जाये तो क्या कहिए ,डील को चुपचाप कर डालिये या थोड़ा हल्ला-गुल्ला मचा कर शांत होकर बैठ जाइए । क्योंकि जब मिया बीवी राज़ी ,तो क्या करेगा क़ाज़ी ? लेकिन अब क़ाज़ी नहीं , यह काम सरकार करने लगी है कि यदि फलाना धर्म के लड़के ने धमाकी मज़हब की लड़की से शादी कर ली तो समझ लीजिए हो गया कल्याण ,और बजा लड़के का बाज़ा ।
साहित्यकार लोग भी झूठ वदेत प्रियं वदेत से सरोकार रखते हैं ।मसलन यह व्यंग्य मैं लिख रहा हूँ और यदि कोई इस पर कुछ अनेपक्षित टीका टिप्पणी कर दे तो समझ लीजिए सत्यम वदेत, अप्रियम वदेत वाली कहानी हो जाएगी और चारों ओर दुख की बदली छा जाएगी ।
सरकारों के बारे में भी यही बात बहुत हद तक सही है ।सरकार की सच्ची आलोचना की तो इतनी टैगिंग हो जाएगी कि पूरी सोशल मीडिया पर आप छा जाएंगे ।
लेकिन झूठी प्रशंसा करने पर आप सरकार के कृपा पात्र हो जाएंगे और क्या पता कुछ पुरुस्कार, पद्मश्री टाइप पा जाएं या राज्य सभा के लिए नामंकित हो जाएं । तो बस झूठी प्रशंसा करते रहिए और मीठा प्रसाद चखते रहिए ।
अगर आपको घर में अच्छा माहौल रखना है तो पत्नी जी को कभी सच का आईना मत दिखाइयेगा, बल्कि उनकी सुबह ओ शाम ,दिन ओ रात प्रशंसा करनी है कि
हे देवि
तुम हो तो हम हैं
तुम हो तो ज़िन्दगी
तुम्हीं सबसे सुन्दर हो
मेरी किस्मत की सिकन्दर हो
मैं तालाब और तुम समन्दर हो ।
और देवी कहेंगी , ” तथास्तु ।”
इसी तरह अगर आपकी कोई प्रेमिका हो तो उनकी ज़ुल्फ़ों को बादल से भी घना बोलियेगा, उनके नयनों में प्रशान्त महासागर से ज़्यादा गहराई देखिएगा ,उनके होठों को गुलाब के ताज़ा फूल मानियेगा और उनकी हर बात को सत्य की लक़ीर मानियेगा बस आपकी बल्ले- बल्ले हो जाएगी ।
कॉन्सेट क्लियर होना बहुत ज़रूरी है ।वैसे भी सच और झूठ कोई निरपेक्ष वस्तु तो है नहीं । तो इस तर्क को इष्ट देव की तरह मानकर बस आप झूठ बोलते रहिए और अपने रेफरेंस पॉइंट में सच बनाकर उसे उचित ठहराते रहिए ।
जैसे मिर्ची को मिर्ची नहीं काट सकती है ,उसी प्रकार सच को सच नहीं काट सकता है बल्कि झूठ ही सच का खेवनहार हो सकता है ।कोई झूठ का एक पत्थर उठाकर मारे तो उसके सामने सच का शील्ड मत लगाइए ।उसके ऊपर झूठ के दस पत्थर ताबड़तोड़ मारिये ,उसके झूठ का पत्थर आपके झूठ के पत्थरों के नीचे दब जाएगा और आपका झूठ न्यूज़ चैनलों की ब्रेकिंग न्यूज़ में और अख़बारों की हेडलाइन्स में छा जायेगा ।जैसे शठ ,शठ की भाषा समझता है बिलकुल वैसे ही झूठ झूठ की भाषा समझता है । झूठ और सच एक दूसरे के लिए अनजान हैं बिल्कुल नार्थ और साउथ पोल की तरह।
वह गाना आपने सुना होगा
एक आँख मारूँ वाला …..
दूजी आँख मारू…..
दोनों आँखें मारूँ तो
छोरा पट जाए ।
तो वैसी झूठ की महिमा है ;
एक झूठ बोलूँ तो एक काम हो जाए
दूजा झूठ बोलूँ तो बाधा हट जाए
रोज़ झूठ बोलूँ तो —-
सारे काम बन जाएं
काम बन जाए
तो समझ गये न आप सब
झूठम वदेत प्रियं वदेत
शठे शाठ्यम समाचरेत ।
मुझे लगता है कि झूठ की इतनी झूठी महिमा गा दी है कि वह अत्यंत प्रसन्न होगा और सच कहीं कोने में छिपा होगा ,झूठ के डर से ।तो झूठ बोलते रहिये और सबको ख़ुश करते रहिये ।
तेज