डॉ शुभा प्रशांत लोंढे की रचनाएँ

कवियत्री, मराठी, हिंदी, उर्दू ग़ज़लकारा
एलोपॅथी-आर्युर्वेद जनरल प्रक्टिशनर-२० साल से
ओमनी टेक इंजिनियर-प्रोपायटर
सुप्रा फार्म हाउस की ओनर
साम टिव्हि,मराठी झी टिव्र्हि कविसंमेलन में सम्मिलित
आकाशवाणी नागपुर,पुणे रचना प्रस्तुति
दैसका,लोकमत में लेखनकार्य, सामाजिक उपक्रम सहभागिता
राष्ट्रीय स्त्री गौरल पुरस्कार २०१८ऐल्गार सामाजिक साहित्य परिषद से सामाजिक साहित्य कार्य के लिए
उतुंग भरारी गौरव पुरस्कार २०१९ डॉ असोशिएशन पुणे की तरह से
अखिल भारतीय मराठी साहित्य संमेलन पुणे,पिंपरी,डोबिवली , सम्मिलित
राज्यस्तरीयमराठी हिंदी उर्दू सम्मेलन में सम्मिलित
【हौसलो की उड़ान 】
हर दायरा परंपरा की
दहलीज के भितर कैद था।
कभी तन्हाईमें चिखती थी।
दर्दभरी खामोशीयाॅ…..
कभी भिडे में घुटके रहा जाती
बेहिसाब सीसकियाॅ…..
गुणो पर नही किसी की नजर।
बस मेरा औरत होना ऐब था।
ना पंख थे न खुला ऑसमा।
ऑखे बंद थी और मौन जुबान।
पर अब बदलाव आया है…..
कुछ दिवारे युॅ टूट रही है….
कुछ बंधन अब छुट रहे है…
हिंमत और जज्बे ने हमारे..
अब खोज लीया नया जॅहान।
हर ख्याल ने भरी
हौसलो की उडान।
अब हिंमत का आसमान है
और…..हौसलो की उड्डान है।
【लगते है】
कभी भगवान लगते हैं कभी हैवान लगते हैं।
यहां इंसान अब लेकिन कहां इंसान लगते हैं।।
उन्ही का हल नहीं मिलता जमाने में कहीं यारो।
यहाँ पर देखने में जो सवाल आसान लगते हैं।।
बनाएँ साधुओं का भेस बाबा जो चमत्कारी।
अगर पर्दा हटाया तो वही शैतान लगते है।।
दिखाकर आंकड़े झूठे करें वादे चुनावी जो।
मुझे नेता यहाँ सारे ही बेईमान लगते हैं।।
वतन की सरहदों पर जो लगाते जान की बाजी।
वही ज़ीनत तिरंगे की, वतन की शान लगते हैं।।