दो गुलफामों की तीसरी कसम
लेखक:अनंत
तीसरी कसम के चौथे हीरामन अनंत द्वारा लिखी गई किताब ” दो गुलफामों की तीसरी कसम ” पर लेखक तेज प्रताप नारायण की विस्तृत टिप्पणी
दो गुलफामो की तीसरी कसम चर्चित लेखक , पत्रकार और रेणु के जीवन और साहित्य पर गहन शोध करने वाले अनंत की शोधात्मक किताब है जो अत्यंत कलात्मक ढंग से लिखी गई प्रतीत होती है ।
फणीश्वर नाथ रेणु की प्रसिद्ध कहानी मारे गए गुलफाम का फिल्मी संस्करण तीसरी कसम के नाम से रुपहले पर्दे पर दिखाया गया था । जिसने भी फिल्म देखी होगी या यह कहानी पढ़ी होगी उसे अगर याद हो तो यह कहानी और इस पर बनी फिल्म ग्रामीण भावबोध की कहानी है ।ग्रामीण भाव बोध की कहानियां तो बहुत सारी हैं और ग्राम्य जीवन पर आधारित कई फिल्मों का निर्माण हुआ है तो फिर इसमें क्या ख़ास है ? इसका पता तो किताब पढ़ने के बाद ही होगा ।
अनंत लेखकीय में लिखते हैं कि इस किताब के सूत्रधार प्रसिद्ध कथाकार असगर वजाहत जी हैं जिन्होंने तीसरी कसम फिल्म बनने के पीछे की कहानी को दुनिया के सामने लाने की प्रेरणा लेखक को दी । यह बताते चलें कि तीसरी कसम को प्रसिद्ध गीतकार शैलेन्द्र ने बनाया था और इसका निर्देशन उस समय एक नौसिखिए निर्देशक वासु भट्टाचार्य ने किया था ।राज कपूर और वहीदा रहमान इस फिल्म के मुख्य किरदारों में थे ।शंकर जय किशन ने संगीतबद्ध किया था ।इस फिल्म के कई गीत जैसे सजन रे झूठ मत बोलो खुदा के पास जाना है ,पान खाए सैंया हमारो आदि बहुत लोकप्रिय हुए थे ।इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक को राष्ट्रीय पुरुस्कार भी मिला था । इस फिल्म के रिव्यू बहुत ही अच्छे थे लेकिन व्यवसायिक रूप से यह फिल्म उतनी सफल नहीं कही गई जबकि कुछ एक थिएटर में यह फिल्म कई हफ्तों तक चलती रही थी ।कहा जाता है कि मुंबईया फिल्मी लॉबी ने इस फिल्म का एक असफल फिल्म के रूप में प्रचार कराया था क्योंकि फिल्म मुंबईया फॉर्मूला से अलग हटकर बनाई गई थी ।
फिल्म में कहानी की साहित्यिक आत्मा को मरने नहीं दिया गया था । बॉलीवुड पर लॉबीबाजी के आरोप गाहे बगाहे आज भी लगते रहते हैं जो कमोबेश सच भी होते हैं । इससे कई प्रश्न उठते हैं कि क्या किसी साहित्यिक कृति के साथ मुंबईया फिल्मों वाले न्याय नहीं करते हैं और कहानी से इतना छेड़छाड़ करते हैं कि वह एक साहित्यिक कृति न रहकर मुंबईया कृति बन जाती है । पहले भी प्रेमचंद जैसे साहित्यकारों का फिल्मों से मोहभंग हुआ है । इस किताब से यह उद्घाटित होता है फिल्मों के निर्माता या फाइनेंसर जो अक्सर सेठ साहूकार टाइप के लोग होते हैं ,का फिल्म बनाने का एक फॉर्मूला है ,फॉर्मूला से इतर वह निर्देशकों को नहीं जाने देना चाहते हैं क्योंकि उनका इससे व्यवसायिक हित जुड़ा हुआ है ।यही कारण है 90 प्रतिशत फिल्मों में मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता,अंग प्रदर्शन ,मारधाड़ और कानफोडू सगीत के अलावा कुछ नहीं मिलता है ।आइटम डांस भी मुंबईया फॉर्मूले का एक पार्ट है ।मुन्नी बदनाम हुई टाइप का गाना जिस तरह से फिल्मों में ठूस दिया जाता है जिसका कहानी से कोई लेना देना नहीं होता है लेकिन संवेदना और मन का रंजन फिल्मकारों का उद्देश्य ही नहीं है,उनका उद्देश्य है पैसा कमाना ।और हमारे ऐसे गानों पर कमर और कूल्हे हिलाने वाली कोई फतेही या अरोड़ा उपलब्ध ही होती है । चीपनेस शायद लोगों को आकर्षित करता है तो फिल्मकार क्या करें ?
शैलेंद्र की बात करें तो वे रेलवे में वो एक मामूली वेल्डर थे लेकिन IPTA टाइप के संगठन से जुड़े थे ।अंदर आग भरी हुई थी ।एक दिन एक कवि सम्मेलन में कविताएं पढ़ रहे थे ,चांस की बात वहां राजकपूर भी थे ।राजकपूर को इस युवा की कविताएं इतनी पसंद आई कि उन्होंने उसे गीत लिखने के लिए आमंत्रित कर दिया ।लेकिन शैलेंद्र फिल्मों के लिए गीत लिखने को राज़ी न हुए। बात आई गई हो गई।कुछ समय बाद शैलेंद्र को पैसे की ज़रूरत पड़ी ,जब कुछ बात नहीं बनी तो वे राजकपूर से मिलकर बोले कि मुझे पांच सौ रूपए की ज़रूरत और मुझे काम चाहिए । राजकपूर ने उन्हें पैसे दे दिए और अपनी फिल्म के लिए गाने लिखवाए ।शैलेंद्र द्वारा लिखित सारे गाने सुपर डुपर हिट हुए ।राजकपूर ने उन्हें अपनी दूसरी फिल्म के लिए भी गाने लिखने का ऑफर दिया जिसे शैलेंद्र ने यह मना कर दिया कि मुझे गाने बेचने नहीं है ,मजबूरी में मुझे पैसे लेकर गाने लिखने पड़े । बाद में बड़ी मान मनुव्वल के उपरांत शैलेंद्र फिल्मों के लिए गीत लिखने को राज़ी हुए और कई सारे कालजयी गीत लिखकर अमर हो गए ।राजकपूर के लिए कई सारे गीत लिखे जिन्हें मुकेश ने अपनी आवाज़ दी । इसी बीच राज कपूर और शैलेंद्र की दोस्ती खूब परवान चढ़ी। तीसरी कसम के लिए जब शैलेन्द्र राज कपूर के पास गए तो राज कपूर ने शर्त रख दी कि तीसरी कसम की फीस एडवांस में देना होगा ।शैलेन्द्र को राजकपूर से यह उम्मीद नहीं थी।शैलेन्द्र की रोनी शक्ल देखकर राज कपूर बोले कि बरखुरदार मुझे फ़िल्म का मेहनताना पूरा एक रूपया चाहिए और वह भी एडवांस में ।शैलेन्द्र मुस्कराए बिना न रह सके ।
रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम शैलेंद्र को इतनी अच्छी लगी कि उन्होंने बिना कुछ देर किए हुए उस पर फिल्म बनाने का निर्णय ले लिया था । फिल्म के निर्देशक चाहते थे कि कुछ नए कलाकारों को लेकर के फिल्म बना ली जाए जो आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त भी होता ।लेकिन शैलेंद्र इस फिल्म को उत्कृष्ट तरीके से बनाना चाहते थे और उसके लिए उत्कृष्ट कलाकारों का चयन करना था जो हीरामन और हीरा बाई के चरित्र में जान डाल सके ।जैसा रेणु ने दिखाया था ,अपनी कहानी में ।शैलेंद्र मूल कहानी से बिना छेड़छाड़ किए हुए फिल्म बनाना चाह रहे थे। मूल कहानी में हीरामन और हीराबाई को अलग होते हुए दिखाया गया है । फाइनेंसर के साथ राज कपूर भी चाहते थे कि हीरामन और हीराबाई को फिल्म के क्लाइमैक्स में मिला देना व्यासायिक रूप से अच्छा रहेगा ।शैलेंद्र ने इसका विरोध किया और अंत में फैसला रेणु पर छोड़ दिया ।रेणु ने यह कहते हुए अपनी बात खत्म की कि अगर कहानी के अंत में बदलाव होता है तो उनका नाम न दिया जाए ।शैलेंद्र तमाम विरोध के बावजूद लेखक के साथ ही रहे लेकिन मुंबईया लॉबी को यह बात स्वीकार्य नहीं थी और जिसका परिणाम हुआ फिल्म को व्यवसायिक रूप से असफल घोषित करवाना । पहले ही जिस फिल्म को को छह महीने में बनना था वह छह वर्ष में बनी थी जिसमे काफ़ी सारा पैसा लगा था और फिर फिल्म की व्यवसायिक असफलता फिल्म के अच्छे रिव्यू मिलने के बाद ।कुल मिलाकर शैलेंद्र के लिए यह फिल्म आर्थिक कंगाली लेकर आई ।लीगल नोटिस मिलने लगी । शैलेंद्र सब झेलते रहे और कैसे भी स्थिति को संभालने का प्रयास करते रहे । लेकिन फिल्म की व्यवसायिक असफलता ने शैलेंद्र को बुरी तरह तोड़ा जरूर होगा ।
इन सारी बातों को तथ्यतमकता से रोचक ढंग से रखा गया ।
विवरण देते वक्त लेखक एक साथ कहानी और फिल्म पर सूक्ष्म नजर रखते हैं और तीसरी कसम के बनने की पृष्ठभूमि को बयां करते हैं । अनंत जी ने जिस अंदाज़ ,जिस गहरी अंतर्दृष्टि से तीसरी कसम और मारे गए गुलफाम को कलमबद्ग किया है , उन्हें तीसरी कसम का चौथा गुलफाम कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी । किताब की सारी बारीकियों को लेख में समेटना संभव नहीं है ,लेकिन किताब का हर चैप्टर कहानी के पीछे की कहानी कहते हुए खुद ही एक रोचक कहानी बनकर उभरा । लेखक को बहुत बहुत बधाई । उम्मीद है इस किताब से साहित्यिक बिरादरी ,साहित्यिक और व्यवसायिक द्वंद के विभिन्न स्तरों को समझ पायेगी । हो सकता है किताब मुंबईया लॉबी को भी आईना दिखाने का काम करेगी ।
बहरहाल अनंत जी को एक बार पुनः बधाई ।