नशा

सीमा पटेल,दिल्ली
आज भी कांता का मन हर बार की तरह से डरा और सहमा हुआ था अंजाना सा डर उसके अंदर बैठ सा गया था , कि फिर कोई तूफान सा आएगा फिर रात की नींद दिन का सुकून उड़ा कर ले जाएगा । लेकिन आज उसके पति का आना मंद हवा के समान था । जिसमे हल्की सी सुगबुगाहट थी तीव्रता लेशमात्र भी नही। आज कांता को तसल्ली सी मिली इस तरह से पति को शान्त सा देख कर।
ईश को धन्यवाद करती है !!!
कांता हिम्मत बटोर के पति से खाने को पूछती है लेकिन वो कुछ जवाब न देकर एक याचक की दृष्टि से उसे निहारता है
कांता बाई दुविधा में कि, दग्ध शरीर पर अपनी देह को समर्पित कर अपनी आत्मा का गला दबा दूँ या फिर अपने अस्तित्व को बचा लूं ।
कुछ क्षण सोचने के बाद कांता ने हमेशा की तरह सुख की आस में अपने को सौंप दिया ..
लेकिन कांता को जिस सुख की तलाश थी वो सुख उसे कभी न मिला ।
उसकी जिंदगी का अंधेरा चीत्कार करता रहा एक उजाले की तलाश में ..