तुम आ जाना
अनिता चंद,दिल्ली
तुम आ आना
निलय जब जगमगाये
कोई कोना ना रहे जाये
दामन में ख़ुशियाँ भर
ख़्वाहिश पूरी करने
तुम आ जाना
निलय अधूरा तुम बिन
बना मिट्टी पत्थर से चिन
उस सूने आशियाने में
प्राण प्रतिष्ठा करने
तुम आ जाना
निलय की अन्नपूर्णा
करे प्रतीक्षा आँखें बिछाये
मिलने बहाने भोग लगाने
तुम आ जाना
निलय का आँगन फूलों भरा
खिलती है फुलवारी यहाँ
मध्य तुलसी आँचल फैलाए
निरोग काया पाने
तुम आ जाना
निलय का प्रार्थना स्थल
भजन-अर्चना को तरसे
प्रार्थनाओं के दीये जलाने
तुम आ जाना
निलय का पुस्तकालय
प्रतियों से सजा है
ज्ञान पाने पन्ने पलटाने
तुम आ जाना
निलय की दीवारों पर
लटकी तस्वीरें मुस्कुरायें
ख़्वाहिश लिए
मिलने निहारने इन्हें
तुम आ जाना
निलय के भीतर शयन
एक कक्ष ऐसा भी है
जहां निद्रा संग जीवन
चैन-सुकून के पल संग
जीवन्त होने
तुम आ जाना
निलय की बैठक
मुँह बाये दरवाज़ा ताकें
कुछ हंस-बोल कर
मन बहलाने साथ निभाने
तुम आ जाना
निलय का हर कोना
आतुर तुम्हें मिलने को
एक झलक दिखाने
ख़ुशियाँ मनाने
तुम आ जाना…..!!