फिर तेरी कहानी याद आई
लेखक: ध्रुव गुप्त
ध्रुव गुप्त जी की किताब फिर तेरी कहानी याद आई ज्ञान,विज्ञान,इतिहास,मिथक सहित संवेदना के अनेकानेक स्तरों को समेटे हुए है । किताब में लिखी कुछ बातों से सहमतियां ,असहमतियां ज़रूर हो सकती हैं लेकिन कुल मिलाकर यह किताब संग्रहणीय,पठनीय ,ज्ञानवर्धक और मनोरंजक है । विभिन्न विषयों पर 35 लेखों का यह संग्रह बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है और हमारी सोच को दिशा देने का कार्य करता है ।बहुत कुछ जो छूट गया है उसे पाने का प्रयास है ,जो टूट गया है या टूट रहा है उसे जोड़ने का प्रयास है और जो गांठे पड़ रही हैं या पड़ चुकी हैं उन्हें तोड़ने का प्रयास है । इन प्रयासों में लेखक करीब- करीब कामयाब भी रहे हैं । क़रीब-क़रीब इसलिए कि जान-अनजाने में कुछ जगहों पर वे मिथक को इतिहास भी कह देते हैं।कई तथ्य हैं जिनका संदर्भ नहीं दिया गया है जैसे नौटंकी की महान कलाकार गुलाब बाई के बारे में लिखते हुए वे पान खाए सैया हमार, नदी नारे न जाओ श्याम पैया ,मोहे पीहर में मत छेड़ जैसे गानों की गीतकार गुलाब बाई को बताते हैं और यह कहते हैं कि कुछ गीतों का इस्तेमाल मुझे जीने दो और तीसरी कसम जैसी फिल्मों में थोड़ा बदलाव के साथ इस्तेमाल हुआ है ।लेखक कहते हैं कि गुलाब बाई को इसके लिए कोई पारिश्रमिक देना तो छोड़िए इनका नाम भी क्रेडिट में नहीं दिया गया । गुलाब को बॉलीवुड के इस सलूक से ज़रूर पीड़ा पहुंची होगी ।
यह सच है कि तीसरी कसम के चरित्र हीरा बाई को गुलाब से प्रेरित कहा जाता है ।अगर ध्रुव गुप्त जी की यह बात सही है तो बॉलीवुड के लिए यह बड़ी शर्म की बात है । ।
ऐतिहासिक लेकिन इतिहास में महत्व न दिए जाने वाले बहुत सारे व्यक्तित्वों में ऊदा देवी पासी जैसे व्यक्तित्व के बारे में चर्चा की गई है ।उनके योगदान,वीरता और चरित्र का वर्णन किया गया है । ” बिना ताज की रानी ” नामक आलेख में ऊदा देवी के चरित्र के बारे में लिखते हुए लेखक बताते हैं कि ऊदा देवी के बारे में देशी इतिहासकारों ने बहुत कम अंग्रेज अधिकारियों और पत्रकारों ने ज़्यादा लिखा है । यह बात पूरी तरह सही भी है । जैसा प्रसिद्ध भाषा विद ,और इतिहासकार डॉ राजेंद्र प्रसाद सिंह कहते हैं कि भारत का इतिहास कहीं पिचका है और कहीं उभरा है ।भारत के इतिहास में वंचित वर्ग के योगदान को दबा दिया गया है और प्रभुत्व वर्ग के योगदान को उभार दिया गया है ।
अनारकली के बारे में मिथ है कि अकबर के दरबार में नर्तकी थीं और इसी अवधारणा पर अनारकली और मुगले आज़म जैसी फिल्में बनी हैं लेकिन इस मिथ को कई तथ्यों और साक्ष्यों द्वारा झुठलाते हुए लेखक यह सिद्ध करते हैं कि अनार कली दरअसल नादिरा बेगम थीं जो अकबर की पत्नी और दानियाल की मां थीं जो ईरान से आईं थीं और बाद में सलीम से इनके प्रेम संबंध बन गए थे ।
प्रसिद्ध गायक कुंदन लाल सहगल के बारे में लिखते हुए वे बताते हैं कि सहगल की गायक के रुप में बड़ी कमजोरी शराब थी ।बिना पिए वे गा नहीं सकते थे । बाद में इस मिथ को संगीतकार नौशाद ने तोड़ा जब उन्होंने बिना पिए हुए ही सहगल से गाने को कहा और दोबारा शराब पीने के बाद भी सहगल ने उसी गाने को गाया । स्टूडियो में उपस्थित सभी लोगों ने माना कि बिना पिए सहगल ने बेहतर गाया था। सहगल ने लगभग रोते हुए कहा था कि नौशाद आप मेरी जिंदगी में पहले क्यों नहीं आए थे ।अत्यधिक शराब पीने के कारण सहगल की 43वर्ष की आयु में ही मृत्यु हो गई थी । आज भी लोग अक्सर कहते हुए मिल जाएंगे बिना पिए कोई लेखक,शायर या आर्टिस्ट,गायक नहीं हो सकता है ।
गायिका छप्पन छुरी के बारे में बताते हैं कि इलाहाबाद की गायिका जानकी बाई एक बार अपने प्रसंशक की अभद्र फरमाइश पर उससे बुरी तरह लड़ पड़ी थीं और उस अपराधी किस्म के व्यक्ति ने उनके चेहरे पर छप्पन बार आक्रमण करके उनका चेहरा पूरी तरस बिगाड़ दिया था और लोग उन्हे जानकी बाई छप्पन छुरी के नाम से जानने लगे ।
कला ,साहित्य,संस्कृति और इतिहास से जुड़े तमाम ऐसे लोगों के बारे में लेखक चर्चा करते हैं और उनके योगदान को याद करते हुए नजर आते हैं । इनके लेखों में तमाम रीति ,रिवाज,तीज , त्यौहार,लोक गायिकी और लोक नृत्य को संरक्षित करने की चिंता प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से दिखाई पड़ती है । देवासुर संग्राम जैसे मिथक को नए तरीके से देखने का प्रयास किया गया है ।
कुल मिलाकर आदमी को आदमी बनाए रखने की कोशिश इस किताब में दिखाई पड़ती है । ध्रुव गुप्त सर को बहुत बहुत बधाई ।
तेज प्रताप नारायण