बिन जुगाड़ सब सून

तेज प्रताप नारायण
कुछ शब्द होते हैं जो इतने पापी होते हैं कि सर्वव्यापी होते हैं । इसे कहेंगे शब्दों की हक़मारी।अब जुगाड़ को ही ले लीजिए। हर आलसी इसका बड़े प्यार से प्रयोग करता है और अपनी करनी को बड़े ढंग से जुगाड़ के पेड़ पर लटका देता है ।आलसी ही क्यों हमारे देश का यह सबसे अधिक प्रचलित शब्द है जैसे जुगाड़ नहीं लग पाना,किस्मत ख़राब होना और भगवान की मर्ज़ी ।अगर शब्दों का कोई लोक तंत्र होता तो यही तीनों शब्द राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बनते । ख़ैर जब लोकतंत्र समाज मे नहीं है तो आख़िर भाषा में कैसे आयेगा ? वैसे भी मुझे जुगाड़ के बारे में लिखना है और सही जगह न हिट करके मैं दायें बायें तीर चला रहा हूँ ।अब मुद्दे की बात पर आते हैं?
कुमार राधेय ऐसे ही एक व्यक्ति हैं नाम भी बड़ा रॉयल और काम का क्या पूछिए ? नाम की रॉयल्टी ही उनके लिए बहुत है ।कुमार राधेय को हम फ़ालतू मे बदनाम कर रहे हैं ।कितने सारे प्रकाशक लेखकों की रॉयल्टी खा लेते हैं ।कितने सारे नाती पोते भी अपने बाप दादाओं की लिखी पुस्तकों की रॉयल्टी या उनकी बनाई प्रॉपर्टी पर मज़े करते हैं ।मज़ा करना भी वंशानुगत होता है परदादा की कमाई परपोते ने उड़ाई ।
कुमार राधेय बड़े ही स्मार्ट हैं वो बड़े आसानी से अपनी हर असफलता का ठीकरा जुगाड़ पर फोड़ देते हैं ।कुमार राधेय के जब दसवीं की परीक्षा में कम नंबर आए तो उन्हे बहुत डांट पड़ी ।कुमार को बड़ा बुरा लगा था कि उन्हें किसी और की ग़लती के लिए डांटा जा रहा है ।वह रोते हुए बोले,”हमारी क्या ग़लती ?नकल का जुगाड़ मास्टर ने करने ही न दिया ।अब इम्तिहान है बिना जुगाड़ के कैसे पास हों ? “
कुमार राधेय ग़लत थोड़े न कह रहे हैं ।अक्सर यह देखा जाता है ।मेरे एक बॉस थे वे हर सफलता का श्रेय अपने नेतृत्वक्षमता और कार्यकुशलता को दे देते थे और हर असफलता का श्रेय अपनी टीम को जिसमें मैं था ।हम ठहरे भोले बाबा, कोई ज़हर भी पिला दे तो उफ़्फ़ न करें ।
कुमार राधेय पिछले कई साल से कंपटीशन की तैयारी कर रहे हैं लेकिन कहीं जुगाड़ नहीं बन पाया है कि नौकरी मिल सके ।घर वाले अच्छे हैं तो खाने पीने का जुगाड़ हो जाता है । अब तो पढ़ना लिखना भी छोड़ दिया है ।कहते हैं जुगाड़ प्राइमरी है , पढ़ाई सेकंडरी तो बैक टू बेसिक्स वाले सिद्धांत को अपनाकर बेसिक या प्राइमरी पर फोकस करते हैं ।जब उनके घर वाले पूछते हैं कि कब अपने पैरों पर खड़े होओगे ? तो वह बिना सकुचाते हुए बोलते हैं अभी जुगाड़ कर रहा हूँ उसी का ।जब तक जुगाड़ नहीं हो जाता है तब तक जुगाड़ लगाने की कोशिश करता रहूंगा ।आप लोगों को वचन देता हूं कि मेरी कोशिश में कोई कमी नहीं होगी और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
उनके इस तर्क के आगे सब घुटने टेक देते हैं। सब ज्ञानी लोग हैं ,उन्हें पता है कर्म किए जा फल की इच्छा मत कर हे इंसान !यह है गीता का ज्ञान । वे ज़िंदगी के मूल दर्शन को समझते हैं।गीता के ज्ञान की बिल्कुल अवहेलना नहीं कर पाते हैं और घर वाले भी अपना कर्म करके चुप हो जाते हैं कि कल उनको पछतावा न हो कि उन्होंने समझाया नहीं । घर वालों को राधेय के जुगाड़ पर पूरा भरोसा है ।जब जुगाड़ से पूरा देश चल सकता है तो उनके प्यारे बेटे की ज़िंदगी क्यों नहीं ?
जुगाड़ बेचारे भी परेशान हैं वे नहीं चाहते हैं कि आलसियों से उनका नाम जुड़े ।वो तो ऐसे लोगों के साथ जुड़ना चाहते हैं जो नींद में भी जुगाड़ लगाने के सपने देखते हैं । जुगाड़ जी का मानना है कि ईमानदारी से काम करने में उतने जुगाड़ की ज़रूरत नहीं है जितना बेईमानी से कमाए पैसे को छिपाने में मेहनत करनी पड़ती है । इसलिए जुगाड़ हमेशा बेईमान के साथ ही रहते हैं , उन्हें कम मेहनत करने वाले लोग नहीं पसंद हैं ।
पढ़ने में मेहनत करने वाले से ज़्यादा जुगाड़ लगाने वाले को मेहनत करनी पड़ती है । जुगाड़ू व्यक्ति चौबीसों घंटे सिर्फ़ जुगाड़ के बारे में सोचता है ।जुगाड़ू व्यक्ति का जुगाड़ से बड़ा प्रगाढ़ प्रेम होता है ।वह जुगाड़ के बिना एक पल नहीं रह सकता है । बिन जुगाड़ सब सून, मई हो या जून ।