बुद्ध
तेज प्रताप नारायण
जितना अंदर से हम शुद्ध होते हैं
उतनी मात्रा में हम बुद्ध होते हैं
जो हम खोजते बाहर हैं
वह हमारे अंदर है
जिसको हम समझते झील हैं
वह चेतना का समंदर है
जिसमें मिलेगी
बुद्ध की करुणा
चारों आरिय सत्य
अष्टांगिक मार्ग
पंचशील सिद्धांत
मिट जायेंगे सारे भेद
प्रिय हो जायेगी प्रकृति
समस्त जंतु जीव
बड़ा सरल मार्ग है
बुद्धत्व का
सम्यक तत्व का
करुणा हो बस मन में
आस्था हो जीवन में
अपने मार्ग बनाकर
अंदर का दीप जलाकर
हम सब बन जाएं अपने बुद्ध
ज्ञान के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए
धरती पर प्रकाश फ़ैलाने के लिए
धरती को बचाने के लिए ।