मुझे आश्चर्य होता
तेज प्रताप नारायण
उग आयें हैं हर चौराहे पर
कुकुरमुत्ते की तरह बाज़ार
जिसमें है बिचौलियों की भरमार
खरीद केंद्रों पर कमीशनखोरी के अनगिनत अजगर
जो मुँह बाये खड़ें हैं
मेहनत के फल को निगल रहे हैं
सामाजिक ,सांस्कृतिक
राजनीतिक,प्रशासनिक भ्र्ष्टाचार के दबाव में
बिकती रहती हैं फ़सलें सस्ते भाव में
लेकिन
मंडी तक पहुँचते ही फसलों में सुर्खाब के पर लग जाते हैं
फल हो या अनाज सबके दाम उड़ने लगते हैं
उत्पादक और
ग्राहक होता है
हाशिये पर
बिचौलियों की मौज होती है
मुझे आश्चर्य नहीं है कि
नहीं मिलता है अनाज का सही मूल्य
मुझे आश्चर्य होता यदि
किसानों को मिलते कुछ ईमानदार
जो बनते उनके उत्पाद के खरीदार ।