मौत हो जाती है

भारती प्रवीण,दिल्ली
चलते चलते जो रुके राह में
ज़िंदगी थक अगर जाती है
तो फिर से चलिये ज़नाब
वरना हौंसलों की मौत हो जाती है।।
निभा रहे हो ज़बरन, ऊबते हुये रिश्तों से
तो मुलाक़ातें भी दूरी पर असर दिखाती हैं
फिर…
दिल बड़ा कीजिये ज़नाब
वरना रिश्तों की मौत हो जाती हैं।।
पैमाने लाख बनाएं रखों तरक़्क़ी में
हक़ीक़त तो ईमानदारी बताती हैं,
जो दबा डाला हक़ किसी का
ऊंचाइयों को छूने के लिये
तो…रुकिये ज़नाब…
ज़िंदगी हैं, कभी तो आईना दिखाती हैं।।
जब मानवता हमारे भीतर मरती जाती है
फिर द्रौपदी की लाज़ भरी सभा में छीनी जाती है
अब तो हर दिन 1
सौ सौ निर्भया कुचल दी जाती है।
मत ललकारो उनके धीरज को
फिर वही सुदर्शन सँग माधव को बुलाती है
अंततः क्रूर दुःशाषन की बलि चढ़ा दी जाती है
जब मानवता की मौत होजाती हे
तब बली चढ़ा दी जाती है