वीरेन्द्र सिंह सजल की कविताएँ

 वीरेन्द्र सिंह सजल की कविताएँ

गृह जनपद :लखीमपुर खीरी
शिक्षा: स्नातक राजनीति शास्त्र
वीरेंद्र सिंह वीरेंद्र सिंह’सजल के नाम से रचनात्मक सृजन करते हैं सरिता,नंदन,कादम्बिनी आदि तमाम पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं सिनेमा में गहरी अभिरुचि होने के कारण फ़िल्म के पटकथा लेखन ,निर्माण और निर्देशन से जुड़ गए ,दिसंबर 2019 में लघु फ़िल्म ‘माँ मुझे मार दे को खजुराहो इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल से पुरस्कृत किया गया । एक फ़ीचर फ़िल्म ,वेब सीरीज व लगभग 80 लघु फिल्मो का निर्माण किया है ।

टिप्पणी: 【कवि वीरेंद्र सिंह सजल ने बिना किसी लागलपेट के अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज को आईना दिखाया है।वे यह यह बताने से नहीं चूकते हैं कि समाज को क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए । उन्हें इस बात की फ़िक़्र नहीं है कि परम्परावादी लोग क्या सोचते हैं ,इसीलिए उनका अपना सच बेबाक़ी से सामने आया है ।इनकी कविताओं में समाज का सच, परत दर परत खुलता जाता है । इनकी कविताएँ समाज के बारे में एक चिंतन की तरह उभर कर सामने आती हैं ।इनके कथ्य में एक नयापन है और शिल्प बनी बनाई लक़ीर से अलग है ।वे अपनी बात अपने तरीके से कहने में यक़ीन रखते हैं ।】

सच

सशंकित होता हुआ सच
अपनी गरिमा खोता हुआ सच
अपने अभिमान के लिए
लड़ता हुआ सच
स्वाभिमान से लिपटा हुआ
झूठ और झूठों के बीच में
अपना अस्तित्व खोता हुआ सच
गले मे
मौत का फंदा लपेटे हुए सच
और
अपना दम तोड़ता हुआ सच
आज भी सक्षम है
अपने आपको बदलने के लिए
समाज को बदलने के लिए
देश को बदलने के लिए
अड़ा है
खड़ा है
ठोकरें खाता हुआ सच
सच हार जाता है
किन्तु
मरता नहीं
ज़िंदा रहता है सदा के लिए
सच क्षणिक अपमान का
कारण तो है
परंतु
हमारे अभियान के लिए लड़ता हुआ सच
हमारे मान-सम्मान के लिए
लड़ता हुआ सच
कभी पराजित न होने वाला सच
चिरविजयी है
अजेय है

【बेटों को स्कूल भेजो】

बेटा बचाओ
बेटा पढ़ाओ
बेटा पढ़ेगा तो आगे बढ़ेगा
ये कहना मुश्किल है
लेकिन बेटा पढ़ेगा तो
बलात्कार ज़रूर रुकेगा
इसलिए
मंदिर ,मस्जिद,गिरिजाघरों से
ज्यादा जरूरी हैं
शिक्षा के मंदिर
मंदिरों की घंटों से
ज़्यादा ज़रूरी हैं
स्कूल की घंटियां
मस्जिद में अजान लगाने से
ज़्यादा ज़रूरी है
पाठशाला का ककहरा
गिरिजाघर की प्रेयर से
ज़्यादा ज़रूरी है
एजुकेशन
ईश्वर अल्लाह और गॉड में
आस्था रखो
किन्तु स्कूलों से सदैव वास्ता रखो
क्योंकि
स्कूल हमें मिलाते हैं
जगाते हैं
और
मंज़िल तक पहुंचाते हैं
इसलिए
बेटों को स्कूल भेजो
उनको दिग्भ्रमित होने से बचाओ

【 3 】

किलकारियां बेटियों की
चीखों में बदल जाती हैं
क्योंकि
इंसानियत हैवानियत में
बदल जाती है
सह कौन दे रहा है
बलात्कारियों को
कौन बचा रहा है
व्यभिचारियों को
हमारी जात का है तो
हम
तुम्हारी जात का है तो
तुम
माँ
बेटी -बेटा पैदा करती है
बलात्कारी नहीं
तो बलात्कारी
कैसे पैदा हो जाते हैं
कुकुरमुत्ते कैसे उग आते हैं
जवाब है
क्योंकि बलात्कारियों के समर्थन में
अब जुलूस निकल आते हैं
कुछ नपुंसक
बलात्कारियों को बचाते हैं
अब तय करना है
हम पुरुष हैं !
महापुरुष हैं
या
पुरुष ही नहीं

【मौन हैं 】

बकरियां
भौंकने लगी हैं

कुत्ते
मौन हैं

सवाल ज़िंदा हैं
जवाब मौन है
पूछिये अपने आप से
आप कौन है

खामोशियाँ
चीखने लगी हैं
आवाज़ें मौन हैं

इसलिए
भेड़िये
मारकर खा रहे हैं
एक के बाद एक को
बड़े आराम से
बड़े सुकून से
क्योंकि उनको पता है
कोई नहीं बोलेगा
तो क्या
अब इंक़लाब नही आएगा
सुलगते हुए प्रश्नों का
जवाब नहीं आएगा

यकीनन
परिवर्तन
आत्ममंथन से
सत्य के समर्थन से
परंतु
मतलबपरस्त भौंक रहे हैं
जागरूक मौन हैं

【सत्ता वाली स्त्री 】

तुम भी स्त्री हो
तुम्हें तो बोलना चाहिए
बेटियों के शोषण पर
बलात्कार पर
उनके ऊपर हो रहे अत्याचार पर

तुम भी तो स्त्री हो
तुम्हें तो उनकी कराह सुनाई देती होगी
आह सुनाई देती होगी

तुम भी तो स्त्री हो
तुम्हारा हृदय नहीं दहलता
तुम्हारा हृदय नहीं दुखता
उनकी निर्मम हत्या पर

शायद
तुम सत्ता वाली स्त्री हो
इसलिए
तुम्हें कोई दर्द नहीं होता
उनकी कराह सुनाई नहीं पड़ती
पीड़ा और सहानुभूति से परे हो
क्योंकि
तुम केवल स्त्री का रूप धरे हो

तुम स्त्री हो तो
तुम्हें स्त्री की महानता अपनानी होगी
एक स्त्री की गरिमा बचानी होगी
वरना
प्रश्न भी शेष रह जाएंगे
उत्तरों के अवशेष रह जाएंगे

तुम स्त्री हो तो बोलो
बेटियों की हत्या पर
उनके शिक्षण पर
उनके शोषण पर
उनके बलात्कार पर ।

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